उत्तराखंड वन विभाग में निलंबित आईएफएस अधिकारी किशन चंद की मुश्किल और बढ़ सकती हैं। सरकार ने उन्हें तमाम अनियमितताओं और जांच के बाद निलंबित किया था। जिसके बाद उत्तराखंड वन प्रमुख विनोद कुमार सिंघल ने भी विभागीय जांच करवाई। जिसके बाद इस पूरे मामले की जांच के लिए सीएजी को पत्र भी लिखा गया। इस पूरे मामले की अपने स्तर से जांच करवाने के लिए भी वन प्रमुख ने कहा। मामले की गंभीरता को देखते हुए सीएजी ने भी इस पूरे मामले को हाथों हाथ लिया है। अब विनोद कुमार सिंघल सहित विभाग से इस मामले के तमाम कागजात मांगे हैं।
उत्तराखंड वन विभाग में बीते दिनों कॉर्बेट टाइगर रिजर्व के कालागढ़ और लैंसडाउन प्रभागों में कथित तौर पर भारी अनियमितताएं पाई गई थी। जिसके बाद विभाग ने इसकी जांच करवाई तो पाया गया कि किशनचंद सहित कुछ और कर्मचारी सरकारी पैसे का दुरुपयोग कर रहे हैं। विभागीय जांच में यह भी सामने आया था कि जो पैसा विभाग में अन्य कार्यों के लिए सरकार से स्वीकृत हुआ था, उन पैसों को किशन चंद सहित कुछ कर्मचारियों ने सही मद में नहीं लगाया। इस पैसे से फ्रिज, एसी और दूसरे ऐशोआराम के संसाधन खरीदे गये। यह रकम लगभग 1.43 करोड़ रुपए थी। अनियमितताएं मिलने के बाद उन्हें सरकार ने तत्काल प्रभाव से निलंबित भी कर दिया था।
ुबता दें किशनचंद पर पहले भी राष्ट्रीय बाघ संरक्षण प्राधिकरण के द्वारा जांच चल रही है। इसके साथ ही कालागढ़ में अन्य मामलों की जांच भी उनके ऊपर चल रही थी। कई मामलों का संज्ञान लेकर उत्तराखंड हाईकोर्ट ने भी इस मामले की जांच के आदेश दिए थे। अब किशनचंद से जुड़ा पूरा मामला सुप्रीम कोर्ट पहुंच गया है। इस मामले में तत्कालीन रेंजर ब्रज बिहारी शर्मा, डीएफओ किशनचंद और मुख्य वन्यजीव वार्डन जेएस सुहाग निलंबित चल रहे हैं।