बीते रोज तांड़व करने संबंधी बयान देने वाली हेमांगी सखी ने संतों को दे डाली नसीहत

बोली मुझे नहीं पता की कुमार स्वामी के कार्यक्रम में हुई थी अजान
हरिद्वार।
कुमार स्वामी ऊर्फ कुमारानंद सरस्वती महाराज के एक वायरल वीडियो पर उनके खिलाफ मोर्चा खोलने वाली किन्नर अखाड़े की महामण्डलेश्वर हेमांगी सखी माता ने बीते रोज प्रेसवार्ता के दौरान मामले का पटाक्षेप कर दिया। उनके मुताबिक गलतफहमी के कारण उन्होंने कुमार स्वामी के खिलाफ मोर्चा खोला था। स्थिति स्पष्ट होने पर विवाद समाप्त हो गया है। उनका कहना था कि जो भी संतों और सनातन के खिलाफ अनर्गल बयानबाजी और करेगा उसके खिलाफ वह तांडव करने से पीछे नहीं हटेंगीं।


वहीं प्रेसवार्ता के दौरान वहां मौजूद सभी संतों ने प्रयागराज कुंभ में गैर हिन्दू के प्रवेश पर प्रतिबंध लगाने की मांग की।
बता दें कि जिन कुमार स्वामी को लेकर प्रेसवार्ता का आयोजन किया गया और संतों व सनातन की रक्षा का संकल्प दोहराया वही कुमार स्वामी कनखल में कुछ वर्ष पूर्व अपने धार्मिक आयोजन में सर्वाजनिक रूप से अजान करवा चुके हैं। उस समय उन्हें गैर हिन्दू का ख्याल नहीं आया। वहीं अपने कार्यक्रम के दिए गए विज्ञापन में कुमार स्वामी ने स्वंय को 16 कलाओं से परिपूर्ण बताया था। सनातन का परिहास करवाने वाले कुमार स्वामी को इस बात का ज्ञान नहीं रहा कि संत में 10 कलाएं होती है, जबकि सिद्ध 12 कलाओं से परिपूर्ण होता है। जानवर में 4 और मनुष्य 8 कलाओ ंसे पूर्ण होता है। 16 कलाओं से परिपूर्ण तो केवल योगेश्वर श्रीकृष्ण ही है।


कुल मिलाकर कुमार स्वामी ने अपने को एक तरह से योगेश्वर ही बताया। उस समय सनातन का कैसे उपहास नहीं उड़ा यह समझ से परे हैं। वहीं तीर्थनगरी में भगवा वेषधारी एक से बढ़कर एक सनातन को कलंकित करने वाले पड़े हुए हैं उनके खिलाफ किसी ने मोर्चा खोलने की बात तो दूर एक बयान तक जारी नहीं किया। बीते दो रोज साध्वी संग बलात्कार करने के आरोप में पकड़ा गया बाबा इसका जीता जागता उदाहरण है।


इस संबंध में संतों और सनातन के खिलाफ तांड़व करने वाला बयान देने वाली किन्नर अखाड़े की महामण्डलेश्वर हेमांगी सखी माता ने फोन पर वार्ता के दौरान बताया कि उन्हें इस बात की जानकारी नहीं है कि कुमार स्वामी ने अपने मंच से अजान का कार्यक्रम करवाया और विदेश में पत्नी संग केक काटकर जन्मदिन मनाया। वहीं हरिद्वार में कुछ कथित बिगडैल भगवाधारियां के संबंध में उनका कहना था कि संत को संत की भांति अपनी मर्यादा में रहकर आचरण करना चाहिए। कहाकि भगवाधारण करने के बाद ऐसा कोई भी कार्य नहीं करना चाहिए जिससे समाज में संतों का अपयश हो, सनातन की साख को बट्टा लगे और विधर्मियों द्वारा सनातन को टारगेट किया जा सके।

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