जयराम विद्यापीठ आश्रम कुरुक्षेत्र में जग ज्योति दरबार के श्रीमहंत स्वामी राजेन्द्र पुरी की अध्यक्षता में पांच दिवसीय माँ बगलामुखी और महादेव के महायज्ञ के साथ ही दो दिवसीय श्रीमद्भगवद्गीता ज्ञानयज्ञ आरम्भ हुआ। कार्यक्रम का संचालन यति सत्यदेवानंद सरस्वती ने किया। कार्यक्रम में कई प्रान्तों के सन्तो और विद्वानों ने भाग लिया।
कार्यक्रम में उपस्थित भक्तों को सम्बोधित करते हुए महामंडलेश्वर यति नरसिंहानंद गिरी ने कहा कि सम्पूर्ण विश्व और मानवता के इतिहास में श्रीमद्भगवद्गीता ही एकमात्र ऐसा ग्रन्थ है जो युद्ध के मैदान में अवतरित हुआ है। महाभारत जैसे भयंकर महायुद्ध जिसे टालने के लिये योगेश्वर श्रीकृष्ण ने बहुत प्रयत्न किया, परन्तु जब दुष्ट राजसत्ताधारी चाटुकारों की मीठी और हानिकारक बातों और अपने क्षुद्र स्वार्थ और अहंकारों से प्रेरित होकर महाविनाश के लिये तैयार हो जाते हैं तो उन्होंने यह सिद्धांत प्रतिपादित किया कि सात्विक और धार्मिक शक्तियों को उनसे लड़ना ही पड़ता है। कहाकि धर्म की विवशता और अधर्म की पाश्विकता के संघर्ष में धर्म की विजय के लिये उत्प्रेरक तत्व का नाम श्रीमद्भगवद्गीता है। श्रीमद्भगवद्गीता की व्यापकता को इसी तथ्य से समझा जा सकता है कि श्रीमद्भगवद्गीता के अवतरण के बाद से आज तक जितने भी धार्मिक, आध्यात्मिक व दार्शनिक ग्रन्थ लिखे गए हैं उनमें श्रीमद्भगवद्गीता की छाप बिल्कुल स्पष्ट है। हमको समझना ही पड़ेगा की सम्पूर्ण विश्व और मानवता की रक्षा का एकमात्र मार्ग केवल श्रीमद्भगवद्गीता का ही मार्ग है।
कार्षि्ण स्वामी अमृतानंद ने कहा कि आज सारे विश्व के हर विश्वविद्यालय में श्रीमद्भगवद्गीता का पठन पाठन अनिवार्य रूप से होना चाहिये ताकि सम्पूर्ण विश्व धर्म और अधर्म के अंतर को समझ सके। आज सम्पूर्ण विश्व धर्म और अधर्म के अंतर को भूल चुका है। यदि विश्व इस अंतर को नही समझेगा तो सम्पूर्ण विश्व और मानवता का विनाश सुनिश्चित ही है। निरंजनी अखाड़े की महामंडलेश्वर साध्वी अन्नपूर्णा भारती, बालयोगी ज्ञाननाथ महाराज ने अपना सम्बोधन दिया।
कार्यक्रम में स्वामी कृष्णानन्द, स्वामी सत्यानंद सरस्वती, यति निर्भयानंद, स्वामी नारद गिरी, संदीप शर्मा, अंकुर चावला, अश्वनी शर्मा, ब्रिज मोहन, पण्डित सनोज शर्मा, कृष्णा शर्मा, सिकन्दर शर्मा, पंकज राणा, अक्षय राठी, राजकुमार पांचाल, धर्मेंद्र शर्मा, डीडी शर्मा, विजय राठी, बिल्लू गिल तथा अन्य उपस्थित थे।