संत, सम्पत्ति, विवाद और हत्या के लिए सरकारी उदासीनता जिम्मेदार

हरिद्वार। स्वंय के त्यागी होने का दावा करने वाले कथित भगवाधारी पद और सम्पत्ति के पीछे इस कदर पड़े हुए हैं की इन्हें सनातन और भगवे की मान-मर्यादा की कोई चिंता तक नहीं है। कथित संतों के सम्पत्ति को लेकर होने वाले आए दिन विवाद के कारण सही संतों की भी छवि धूमिल हो रही है। संतों के सबसे अधिक सम्पत्ति को लेकर ही विवाद चल रहे हैं। हाल ही में गिरिनार गुजरात के अंबा जी मंदिर को लेकर चल रहे की बयानबाजी हरिद्वार तक पहुंच गई है। इसको लेकर एक-दूसरे पर आरोप-प्रत्यारोप का सिलसिला जारी है। दोनों की पक्ष एक-दूसरे को गलत साबित करने में जुटे हुए हैं।


विदित हो कि संतों के बीच सम्पत्ति को लेकर विवाद कोई नहीं बात नहीं हैं। कई संतो की तो सम्पत्ति को लेकर हत्या तक की जा चुकी है। ऐसे विवादों और हत्याओं को लेकर न तो संत समाज और न ही सरकारें गंभीर नजर आ रही हैं।


सम्पत्ति को लेकर हुए विवाद और हत्याओं पर तीर्थनगरी हरिद्वार की बात करें तो यहां भी स्थिति भयावह है। सम्पत्ति को लेकर हुए विवाद और हत्याओं पर नजर डालें तो भगवाधारियों की स्थिति का स्वतः की अनुमान लगाया जा सकता है।


हाल ही में कनखल क्षेत्र में 17 अक्टूबर 2024 को श्रद्धा भक्ति आश्रम के बैरागी संत की हत्या का खुलासा हुआ। जहां सम्पत्ति को लेकर संत की हत्या कर दी गई, जिनका शव आज तक नहीं मिल पाया।
25 अक्टूबर 1991 को रामायण सत्संग भवन के संत राघवाचार्य आश्रम से निकलकर टहल रहे थे. तभी स्कूटर सवार लोगों ने उन्हें घेरकर पहले गोली मारी, फिर चाकूओं से गोद दिया था. इस मामले में 21 दिन बाद एक की गिरफ्तारी की गई थी। 09 दिसम्बर 1993 को रामायण सत्संग भवन के ही स्वामी राघवाचार्य आश्रम के साथी रंगाचार्य की ज्वालापुर में हत्या कर दी गई। अब सत्संग भवन में सरकारी पहरा है और उस पर रिसीवर तैनात है। सुखी नदी स्थित मोक्षधाम की करोड़ों की संपत्ति को लेकर 1 फरवरी 2000 को ट्रस्ट के सदस्य गिरिश चंद अपने साथी रमेश के साथ अदालत जा रहे थे, तभी पीछे से एक जीप ने टक्कर मारी, जिसमें रमेश की मौज हो गई। पुलिस ने स्वामी नागेन्द्र ब्रह्मचारी को सूत्रधार मानते हुए जेल भेज दिया था।

बेशकीमती कमलदास की कुटिया पर भी कई लोगों की नजर रही। लोगों के बीच झगडे भी हुए, लेकिन वो संपत्ति आज तक किसी को भी नहीं मिल पाई। चेतनदास कुटिया में तो अमेरिकी साध्वी प्रेमानंद की दिसंबर 2000 में लूटपाट कर हत्या कर दी गई। कुछ स्थानीय लोग पकड़े गये गए थे। आज भी मामला चल रहा है। वहीं, 5 अप्रैल 2001 को बाबा सुरेन्द्र बंगाली की हत्या की गई थी।

इसके अलावा 16 जून 2001 को हरकी पैड़ी के सामने टापू में बाबा विष्णु गिरी समेत चार साधुओं की हत्या हुई थी। 26 जून 2001 को ही एक अन्य बाबा ब्रह्मानंद की हत्या हुई थी। इसी साल पानप देव कुटिया के बाबा ब्रह्मदास को दिनदहाड़े गोली मार कर हत्या की गई थी। 17 अगस्त 2002 बाबा हरियानंद व उनके चेले की हत्या कर दी गई। एक अन्य संत नरेन्द्र दास की भी हत्या की गई। इस मामले में पुलिस ने एक व्यक्ति को गिरफ्तार किया था। 06 अगस्त 2003 को संगमपुरी आश्रम के संत प्रेमानंद उर्फ भोले बाबा की हत्या की गई। सात सिंतबर 2003 को पुलिस ने हत्या का खुलासा हुआ और आरोपी गोपाल शर्मा पकड़ा गया। अब आश्रम सील है। 28 दिसम्बर 2004 को संत योगानंद की हत्या कर दी गई। हत्यारों का पता आज तक पता नहीं चला। 15 मई 2006 को पीली कोठी के स्वामी अमृतानंद की हत्या की गई।

25 नवंबर 2006 को सुबह इंडिया टेम्पल के बाल स्वामी की गोली मारकर हत्या की गई, जिसमें तीन लोग गिरफ्तार हुए। 08 फरवरी 2008 को निरंजनी अखाड़े के 7 साधुओं को जहर दिया गया था। जहर देने वाला साधु की था, जो जेवरात व नगदी लेकर फरार हो गया। हालांकि रामकृष्ण मिशन अस्पताल में सभी को समय रहते भर्ती कराया गया, जिस कारण से उनकी जान बच गई।
14 अप्रैल 2012 निर्वाणी अखाड़े के महंत सुधीर गिरि की गोली मारकर हत्या कर दी गई। इस हत्याकांड में स्थानीय व्यक्ति और कुछ भू माफिया गिरफ्तार हुए थे। 26 जून 2012 तिहरे हत्याकांड में हरिद्वार के लक्सर में हनुमान मंदिर के अंदर देर रात तीन संतों की हत्या की गई। पुलिस इस मामले को भी सम्पति विवाद बता रही थी। इसमें दो गिरफ्तारी हुई थी। वहीं साल 2018 में पंचायती बड़ा उदासीन अखाड़ा के कोठारी महंत मोहन दास गायब हुए थे, जिनका आज तक कुछ पता नहीं चल पाया। पुलिस आज तक उनकी तलाश कर रही है। कोठारी के पास अखाड़े की पूरी संपत्ति का लेखा-जोखा मौजूद रहता था। हालांकि संतों की मांग पर प्रदेश सरकार ने सीबीआई जांच कराने की बात कही थी तो संतों ने की जांच कराने से इंकार कर दिया था।

वहीं कई ऐसे मठ-मंदिर हैं, जहां संतों के बीच ही विवाद चल रहा है। कुछ संतों ने दूसरे के मठों पर कब्जा किया हुआ है। कुछ मठ ऐसे हैं जहां कागजों में हेराफेरी कर कुछ भगवाधारी कुण्डली मारकर बैठे हुए हैं। स्थानीय प्रशासन और सरकार भी ऐसे संतों के खिलाफ वोट बैंक के चलते कार्यवाही करने से कतराती है।


एक संत ने नाम न छापने की शर्त पर बताया कि जिस भी धार्मिक सम्पत्ति पर विवाद की स्थिति उत्पन्न हो सरकार को उसे अधिग्रहण कर लेना चाहिए, तथा सभी संतों का सत्यापन किया जाना चाहिए। जिससे की सम्पत्ति को लेकर होने वाले विवाद पर लगाम लगायी जा सके। वहीं ऐसे संतों के खिलाफ कार्यवाही करनी चाहिए जो विवादित हैं और दूसरों की सम्पत्तियों पर कब्जा किए बैठे हैं। कहा कि यदि सरकार आपराधिक किस्म के संतों के खिलाफ सख्त कदम नहीं उठाती तो इस प्रकार के अपराधों और विवादों पर अंकुश लगाना मुमकिन नहीं होगा। सरकारों की उदासीनता और वोट बैंक के चलते ही इस प्रकार के विवादों को बढ़ावा मिल रहा है।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *