बल्जिंग डिस्क होना बताता है कि परेशानी स्पाइन यानी रीढ़ की हड्डी के इर्द-गिर्द है।
बल्जिंग डिस्क रीढ़ की हड्डी से जुड़ी बीमारी है। बल्जिंग डिस्क उस स्थिति को कहते हैं जब कशेरुकी डिस्क (Vertebrate disk) की भीतरी परत, बाहर की ओर निकलने लगती है। ये डिस्क पर ज्यादा प्रेशर की वजह से बनती है।
बल्जिंग डिस्क की वजह, डिस्क का रिजनरेट होना भी है। जिसकी वजह उम्र में तबदीली भी माना जाता है। डिस्क रिजनरेट होने से परेशानी तब बनती है, जब ये बाहर की ओर बढ़कर किसी अन्य टिश्यू और नर्व्स के संपर्क में आती है। ये परेशानी लोअर बैक और गर्दन में हो सकती है। इसके लक्षण हर्नियेटेड डिस्क की तरह होते हैं। इसलिए बहुत लोग इसे हर्नियेटेड डिस्क भी कह देते हैं। बल्जिंग डिस्क से होने वाली परेशानी को vertebral डिस्क भी कहते हैं।
हर्नियेटेड डिस्क तब माना जाता है जब डिस्क की अंदर की सेल्स की वजह से बाहरी सेल्स टूटता है।
बल्जिंग डिस्क क्या है
बल्जिंग डिस्क, रीढ़ की हड्डी में तीन जगह पर होने के चांसेज होते हैं।
1- लोअर बैक (lumbar spine)
2- अपर एंड मिड बैक (thoracic spine)
3- नेक (cervical spine)
-लोअर बैक में होने पर हिप्स और जांघों में दर्द होता है।
-गर्दन में होने पर कंधों और हाथों में दर्द होता है।
बल्जिंग डिस्क होने की वजहों को डॉक्टर्स ने तीन हिस्सों में बांटा है।
1. Accumulated Microtrauma इसके अंतर्गत बैठने, खड़े होने का गलत तरीका, जिससे स्पाइन पर जोर पड़ता हो। पीछे की ओवर स्ट्रेचिंग करना, जिससे रीढ़ की हड्डी प्रभावित हो। रीढ़ की हड्डी के डिस्क के बाद वाले फाइब्रोकार्टिलेज (ऐन्यलस) का कमजोर होना मानी गई है।
इससे बचने के लिए सलाह दी जाती है कि रोज़ाना अपने बैठने का तरीका बदलें. सही पोश्चर में बैठने में मदद के लिए Bassett spine support या back brace की मदद भी ले सकते हैं। ये दोनों चीज़ें स्पाइन के सही कर्व यानी lordotic curve को मेंटेंन रखने में मदद करेंगी।
2. Sudden Unexpected Load
ये हालात सिर्फ दर्दनाक परिस्थितियों में पैदा होता है. किसी एक्सीडेंट के दौरान भी ऐसा हो सकता है। इस दौरान ऐन्यलस फाइबर का टूटना डिस्क इंज्यरी की वजह बनता है। इससे बचने के लिए सही पोश्चर में रहकर वजन उठाने, मुड़ने, झुकने की सलाह दी जाती है।
3. Genetic Factors
डिस्क इंजरी होने का ताल्लुक जेनेटिक प्रीडिसपोजिशन भी बताया गया है।
बल्जिंग डिस्क की पहचान
स्पाइनल डिस्क इंज्यरी चोट लगने, उसके लक्षणों के आधार पर आंकी जाती है। जिसके लिए स्पाइन का MRI या CT स्कैन किया जाता है। इस स्थिति में X-रे डिस्क की एक्यूरेट बल्ज को नहीं दिखा पाता।
बल्जिंग डिस्क ट्रीटमेंट
बल्जिंग डिस्क इंज्यरी का ट्रीटमेंट ज्यादातर बिना किसी सर्जरी के किया जाता है। इस दौरान डिस्क के ऐन्यलस में हुए बदलाव को वापस सही पोश्चर में लाया जाता है। बल्जिंग डिस्क का इलाज फीजियोथेरेपी से किया जाता है। इससे मांसपेशियों में लचीलापन आता है। फीजियोथेरेपिस्ट स्पाइन को सही पोजीशन में रखने की सलाह देता है। जो पोश्चर रिकवरी में रोक पैदा करे, उससे अवेयर कराया जाता है। स्कार टिश्यू फॉर्मेशन नॉर्मल होने में कम से कम छह हफ्ते का वक्त लग जाता है। इस दौरान aggravating postures से दूरी बरतने की सलाह दी जाती है।
aggravating postures में झुककर पंजे छूना, पीछे की ओर झुकना। दौड़ ना लगाना। छोटे कदमों से चलना शामिल है। इसके इलाज को चार हिस्सों में बांटा गया है।
1. Pain Relief & Protection
इसमें फीजियोथेरेपिस्ट ऊपर बताई गई सावधानियां बरतने की सलाह देता है। कई तरीकों से दर्द में आराम दिलाता है। जिसमें बर्फ की सिकाई, इलेक्ट्रोथेरेपी, एक्यूपंक्चर, अनलोडिंग टैपिंग टेक्नीक्स, सॉफ्ट टिश्यू मसाज और बैठने के दौरान बैक ब्रेक इस्तेमाल की सलाह देना शामिल है। कुछ वक्त के लिए पेन किलर दवा भी दे सकता है।
2. Bulging Disc Exercises
दर्द कम होने पर फीजियोथेरेपिस्ट जॉइन्ट अलाइनमेंट को नॉर्मल स्थिति में लाने पर ध्यान देता है। जिसके लिए लोअर एब्डोमिनल कोर स्टेबिलीटी प्रोग्राम के मसल्स को मजबूत करने पर ध्यान दिया जाता है। जिस दौरान स्ट्रेचिंग और रिमेडिकल मसाज मसल्स को टाइट करने का हिस्सा होते हैं।
3. Restoring Full Function
बैक डायनामिक कंट्रोल इंप्रूव होने पर फीजियोथेरेपिस्ट स्पाइन अलाइनमेंटे की मज़बूती पर ध्यान देता है। इसके लिए वे कोई न कोई स्पोर्ट्स एक्टीविटी की सलाह देता है।
4. Preventing a Recurrence मसल्स कंट्रोल के बाद वे जनरल एक्सरसाइज रोजाना करने की सलाह देते हैं। जिसमें योगा, स्वीमिंग, वॉकिंग, हाइड्रोथेरेपी और जिम प्रोग्राम भी शामिल है।
Dr. (Vaidhya) Deepak Kumar
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