दूसरे की जमीन बेचकर संत बचा रहे इज्जत, कर रहे कुंभ में खर्चा

जमीन के सौदागर ने रुपया देने से किया इंकार, असली मालिक को रुपया देने पर अड़ा
हरिद्वार।
यूं तो कुंभ पर्व समूचे सनातन धर्मावलम्बियों को पर्व है। किन्तु राजनीति के चलते कुंभ को केवल संतों का पर्व बना दिया गया है। जिस कारण आम जनता को दरकिनार कर सरकारें भी केवल संतों की सुविधाओं का ही ख्याल रखने लगी हैं। जब कुभ पर्व संतों का पर्व ही बनकर रह गया है तो ऐसे में संतों को खर्च करना भी जरूरी हो जाता है। कुछ संत भजन, पूजन व सेवा में धन को खर्च करते हैं किन्तु कलियुग के प्रभाव से ग्रसित कुछ कथित संत अपने ऐशोआराम, शान-शौकत व पद पाने के लिए धन का अपव्यय करते हैं। ऐसे संतों से तीर्थनगरी भी अछूती नहीं है।
आलम यह है कि झूठी शान दिखाने और पद पाने के लिए कथित संतों को छल-कपट, झूठ व अन्य हथकंड़ों को अपनाना पड़ रहा है। बताया जाता है कि एक संत ऐसे भी हैं जो दूसरे की जमीनों को बेचकर कुंभ का आनन्द उठा रहे हैं। पहले पद पाने के लिए की गयी सौदेबाजी के चलते लोगों को फंसाकर धन इकट्ठा किया और दूसरे की 22 सौ फुट जमीन 3500 रुपये फुट के भाव से बेचकर पद की कीमत चुकायी। सूत्र बताते हैं कि इसके अतिरिक्त कुंभ के अन्य खर्चाें के लिए वे लोगों से रुपया मांगते फिर रहें हैं। इसी चक्कर में दूसरे की एक और जमीन का उन्होंने सौदा कर दिया। जमीन का सौदा इसलिए करना पड़ा की पद की कीमत के अभी भी 2 करोड़ रुपये शेष बताए जा रहे हैं। जिसे उन्हें 10 अप्रैल तक का वक्त दिया गया है। ऐसे में यदि रुपये न दिए गए तो पद हाथ से जा सकता है।
वहीं जिस व्यक्ति के द्वारा जमीन का सौदा किया गया था वह भी अब रुपये देने में आनाकानी करने लगा है। जिस कारण से कथित संत की परेशानी बढ़ गयी है। जमीन का सौदा करने वाले व्यक्ति का कहना है कि वह जमीन के पैसे तो देगा, किन्तु जो जमीन का असली मालिक है उस पैसे का वह उनके नाम फिक्स डिपाॅजिट करेगा। किसी अन्य को एक रुपया भी नहीं देगा। जिसके बाद से दोनों के बीच रार पैदा हो गयी है। संत के सामने समस्या है की वह कुंभ का खर्च कैसे करे और 10 अप्रैल तक 2 करोड़ की व्यवस्था कैसे करे।

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