हरिद्वार कुंभ 1998 का खूनी इतिहास 2021 में दोहराने से बाल-बाल बचा

हरिद्वार। हरिद्वार में प्रत्येक कुंभ के दौरान शाही स्नानों में अखाड़ों के स्नान करने की एक व्यवस्था निश्चित रहती है, जिसमें प्रत्येक अखाड़े के शाही स्नान के लिए अपनी छावनी से निकलने के समय से लेकर हरकी पैड़ी पर स्नान कर वापस होने तक का समय तय रहता है। सभी अखाड़ों का एक बाद एक स्नान का क्रम भी निर्धारित रहता है।
प्रत्येक अखाड़े के पदाधिकारियों और हजारों साधुओं को शाही स्नान हेतु तय की गई स्नान व्यवस्था का कड़ाई से पालन करना पड़ता है। शाही स्नान के दिन हरकी पैड़ी के मुख्य घाट पर आम श्रद्धालुओं को स्नान की मनाही होती है और सिर्फ अखाड़ों के द्वारा ही हरकी पैड़ी पर स्नान किया जाता है। हर एक अखाड़े के जाने के बाद घाट की सफाई होती है और तब अगले अखाड़े को भेजा जाता है। यही व्यवस्था और क्रम शाही स्नान के दिन अंतिम अखाडे के स्नान तक लगातार चलता रहता है।
वर्ष 1998 में हरिद्वार में कुम्भ का आयोजन हुआ और शाही स्नान का कार्यक्रम हमेशा की तरह तय किया गया। परन्तु निरंजनी अखाड़े के हजारों नागाओं को स्नान में देरी हो गई। स्नान के अगले क्रम में अपनी बारी का इंतजार कर रहे जूना, अग्नि और आह्वान अखाड़ों के तमाम नागा बिफर उठे और हरकी पैड़ी पर जबरदस्त संग्राम और मारकाट शुरू हो गई। इस खूनी संघर्ष में अनेक साधु और पुलिसकर्मी घायल हुए। उसके बाद इस घटना से सबक लेते हुए देश में आज तक जहां भी कुम्भ का आयोजन किया गया वहां के पुलिस प्रशासन ने हमेशा इस बात का प्राथमिकता के आधार पर ध्यान रखा कि अखाड़ों के शाही स्नान की तय व्यवस्था को लागू करने में लेशमात्र कोताही न होने पाए। हरिद्वार में आयोजित होने वाले कुम्भ मेलों में तो तब से इस बात का विशेष ध्यान रखा जाने लगा।
हरिद्वार में वर्तमान में चल रहे कुम्भ मेला 2021 में 11 मार्च को शिवरात्रि शाही स्नान में परम्पराओं के अनुसार सिर्फ 07 सन्यासी अखाड़ों के द्वारा शाही स्नान किया जाना था। सभी अखाड़ों के जुलूस का अपनी छावनी से हरकी पैड़ी तक पहुंचने और स्नान कर अपनी छावनी में वापस आने तक का मार्ग हरिद्वार शहर के बीचों बीच स्थित अपर रोड निर्धारित था। अखाड़ों के स्नान का क्रम, स्नान का समय और आने जाने का मार्ग हर तरह से निश्चित हो चुका था।
शिवरात्रि प्रथम शाही स्नान के दिन सभी कार्यक्रम पूर्व निर्धारित समय और व्यवस्थाओं के अनुसार प्रारंभ होकर सुव्यवस्थित तरीके से चलने लगा। जूना अखाड़ा के शाही स्नान का जुलूस अपने पूर्व निर्धारित क्रम और समय पर पूरी भव्यता के साथ मायादेवी प्रांगण स्थित छावनी से निकल हर की पैड़ी की ओर चल पड़ा। जूना द्वारा अपने निर्धारित समय पर हर की पैड़ी पहुँच कर स्नान प्रारंभ कर दिया गया परन्तुं जूना अखाड़े के ही जुलूस का हिस्सा किन्नर अखाड़ा विलंब से छावनी से निकला। विलंब से निकलने के कारण किन्नर अखाड़े के पदाधिकारी अपने अनुयायियों सहित हरकी पैड़ी पर स्नान हेतु उस समय पहुंचे जिस समय निरंजनी अखाड़ा अपने निर्धारित समय पर छावनी से निकलकर हरकी पैड़ी की और बढ़ चुका था। समय सीमा के इस अतिक्रमण के कारण दोनों अखाड़ों का अपर रोड पर किसी भी जगह एक दूसरे के आमने-सामने पडऩा और 1998 के रक्त रंजित इतिहास का दोहराया जाना तय था।
शाही स्नान के दौरान बनी इस परिस्थिति की जानकारी जैसे ही पुलिस-प्रशासन के अधिकारीगण को हुई तो भयावह परिणाम की कल्पना से ही सबके हाथ पांव फूल गए। आनन फानन में आईजी कुम्भ संजय गुंज्याल अपने कुछ अनुभवी और कुशल पुलिस अधिकारियों को लेकर तुलसी चौक पहुंचे जहां से निरंजनी अखाड़े को मुड़कर अपर रोड पर पहुंचना था और जूना से आमना-सामना होने की परिस्तिथि बननी थी।
हमेशा शांतचित्त रहने वाले और विषय की गहराई को समझ कर अपने विचार व्यक्त करने वाले आईजी कुम्भ की समझदारी और प्रजेन्स ऑफ माइंड इस बेहद संवेदनशील और गम्भीर मौके पर काम आया और उन्हें इस टकराव को टालने का एक बेहतरीन उपाय सूझ गया। दरअसल नवनियुक्त माननीय मुख्यमंत्री उत्तराखंड तीरथ सिंह रावत के द्वारा शाही स्नान के दौरान सभी अखाड़ों के जुलूस के ऊपर हेलीकॉप्टर से पुष्पवर्षा का आदेश दिया गया था। मुख्यमंत्री के आदेश पर हेलीकॉप्टर पुलिस द्वारा दिये गए दिशा-निर्देशों और कॉर्डिनेट्स के आधार पर शाही स्नान के लिए निकल रहे अखाड़ों के जुलूस पर 03 बार पुष्पवर्षा कर रहा था।
आईजी कुम्भ के द्वारा हरकी पैड़ी की और अग्रसर निरंजनी अखाड़े के पदाधिकारियों से आग्रह किया गया कि मुख्यमंत्री के आदेश पर आपके शाही स्नान के जुलूस पर पुष्पवर्षा किया जाना है जिसके लिए तुलसी चौक का चयन किया गया है इसलिए आप अपने जुलूस की तुलसी चौक पर ले जाकर थोड़ी देर के लिए रोक दें, ताकि हेलीकॉप्टर आपके जुलूस पर पुष्पवर्षा करके उत्तराखंड सरकार की ओर से आपका स्वागत सम्मान कर सके। आईजी कुम्भ के इस आग्रह को अखाड़े के पदाधिकारियों द्वारा सहर्ष स्वीकार कर लिया गया। इसी दौरान आईजी कुम्भ के द्वारा किन्नर अखाड़े के साथ जुलूस ड्यूटी पर लगे पुलिसबल को निर्देशित किया गया कि जितना जल्दी हो सके किन्नर अखाड़े को वापस अपनी छावनी में पहुंचा दिया जाए। निरंजनी अखाड़े का जुलूस आग्रह के अनुसार तुलसी चौक पर पहुंच कर रुक गया और इधर जूना के जुलूस में लगा पुलिस बल किन्नर अखाड़े को जल्द से जल्द उनकी छावनी में पहुंचाने की मशक्कत पर लग गया। लेकिन किन्नर अखाड़े को छावनी में पहुंचाने में समय लगना तय था और ज्यादा देर तक निरंजनी अखाड़े को तुलसी चौक पर रोके रखना भी टेढ़ी खीर था।
मौके की नजाकत को भांपते हुए आईजी कुम्भ के द्वारा हेलीकॉप्टर के पायलट से बात की गई और उसको बताया गया कि तुलसी चौक के ऊपर चक्कर लगाता रहे परन्तुं पुष्पवर्षा तभी करें जब उसे कहा जाए। इस पर हेलीकॉप्टर के पायलट द्वारा तुलसी चौक पर आकर निरंजनी अखाड़े के जुलूस के कभी ऊपर कभी नीचे जाकर चक्कर लगाना शुरू कर दिया गया। इधर पुलिसबल किन्नर अखाड़े को लेकर छावनी में प्रवेश कराने के नजदीक पहुंच गया। तुलसी चौक पर निरंजनी अखाड़े के जुलूस के ऊपर चल रही हेलीकॉप्टर की कलाबाजियों के दौरान थोड़ी देर में ही मैसेज आया कि किन्नर अखाड़ा अपनी छावनी में सकुशल प्रवेश कर गया है। इस संदेश के प्राप्त होने के साथ ही सबने राहत की सांस ली और आईजी कुम्भ के निर्देश पर हेलीकॉप्टर ने निरंजनी अखाड़े के जुलूस पर धुंआधार पुष्पवर्षा शुरू कर दी। आकाश से बरसते गुलाब के फूलों की पंखुडिय़ों से पूरा रास्ता गुलाबी रंग से रंग गया लेकिन कुम्भ पुलिस के अधिकारियों के दिल को सबसे बड़ा सुकून यही था कि शुक्र है कि ये रास्ता गुलाबी रंग से रंगा है न कि किसी और रंग से…

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