प्रयागराज। पंच दशनाम जूना अखाड़े के महामंडलेश्वर स्वामी यतीन्द्रानन्द गिरी कुंभ मेला व्यवस्थाओं से खिन्न दिखाई दिए। उन्होंने शासन, प्रशासन पर व्यवस्थाओं को लेकर कई सवाल खड़े किए।
स्वामी यतीन्द्रानन्द गिरी महाराज ने कहा कि दिखने में पूरी चमक धमक पूरा कुंभ क्षेत्र में शहर के प्रमुख चौराहा रास्तों पर भव्य दिव्य लाइटिंग हो चुकी है बाह्य जगत को तो सरकार और प्रशासन ने रोशन कर दिया है, बाकी साधु संतों को अपने शिविर पंडाल अपनी साधना और तपस्या आत्म ज्योति के प्रकाश से प्रकाशित करने चाहिए। उसके लिए बिजली विभाग नहीं है। वह केवल बाहय जगत को प्रकाशित करने के लिए
एक निश्चित संगम नोज एरिया, कुछ अखाड़े जो प्रशासन से लॉलीपॉप पाकर प्रसन्न हो जाते हैं, क्योंकि संत भोले होते हैं। कुछ विशेष धनपति कुबेर साधु संत क्योंकि कलयुग की माया ही निराली होती है । जिसके पास भौतिक वैभव समृद्धि आधुनिक सुख सुविधा दिखावट बनावट मिलावट सजावट यह सारी सरवटे ना हो तो वह साधु कैसा।
कहा कि कभी राजा संतो को पूजते थे, अब संतों की बारी है कि वह राजा को पूजते घूम रहे हैं।
स्वामी यतीन्द्रानन्द गिरी ने कहा कि अभी तक के कुंभ मेले में राजा, अधिकारी कर्मचारी एक-एक बाबा महात्मा के शिविर में जा जा कर पूछते रहते थे, क्या सेवा की जाए। किंतु अब युग समय बदल गया है और बदलना भी चाहिए क्योंकि समय परिवर्तनशील है। भगवान को खोजना सरल है पर, सरकारी व्यवस्था सुविधा अधिकारी को खोजना सामान्य साधुजन के लिए सपना है । किंतु कुछ विशेष साधु संतों के दरबार में यह सरकारी अमला तमला हाथ जोड़े खड़ा रहता है, क्योंकि वह उनके ट्रांसफर मनचाही मलाईदार पोस्टिंग करने की….. उससे मलाई का कुछ हिस्सा श्रद्धा भेंट स्वरूप भी अर्पित हो जाता है आखिर गुरु दक्षिणा जो है।
स्वामी यतीन्द्रानन्द गिरी ने कहा कि बाकी कुंभ बजट की चमक दमक देखनी हो तो सरकारी अफसरों के टेंट को जाकर देखो, कार्यालय को देखो, बड़े से बड़ा व्यवसायी उद्योगपति के ऑफिस ड्राइंग रूम भी फीके पड़ जाएंगे, जैसे यहां मात्र टेंपरेरी 45 दिन के लिए बने हैं। आखिर सरकार का खजाना बजट भरपूर है कहीं तो खर्च करना है।
कहा कि कुंभ की जगमग देखने के लिए एक निश्चित वीआईपी एरिया को देखो । उससे बाहर जाने की क्या आवश्यकता है आखिर दुनिया में इतना प्रचार प्रसार कर क्यों खर्च किया गया है और जिन्हें दिखना है उनको उस निश्चित क्षेत्र से बाहर प्रशासन जाने भी नहीं देगा। क्योंकि कुंभ केवल कुछ विशेष VIP सरकारी मेहमान तथा सरकारी अधिकारी लोग तथा जो ₹1 लाख टेंट सिटी का किराया दे सकते हो उनकी विशेष सेवा के लिए है। और आखिर कुंभ का बजट कुछ लीपा पोती तथा कुछ ब्यूटी पार्लर आखिर देखने में सुंदर तो लगना चाहिए चमक धमक तो होनी चाहि
कहा कि बाकी साधु संतों का क्या है उनको सादगी सरलता और तपस्या यहां करनी चाहिए उनको सुख सुविधाओं की अपेक्षा भी नहीं होनी चाहिए और अपेक्षा भी करें तो मिलने नहीं चाहिए इसी में उनकी साधुता है, उनका यह त्याग वैराग्य तपस्या बनी रहे इसका प्रशासन सरकार पूरा ध्यान रखे हैं ।
किसी-किसी साधु संत को प्रशासन ने दया करके लल्लू जी के पुराने जमाने के हारे थके कई जगह से सिले हुए फटे हुए विशेष खुशबू दे रहे एक-एक दो दो टेंट भी कृपा पूर्ण प्रदान किए हैं। क्योंकि नए और आधुनिक वाटरप्रूफ टेंट पहले से ही सरकारी और वीआईपी व्यवस्था के लिए आरक्षित हो जाते हैं आखिर देश मे आरक्षण व्यवस्था किसके लिए है ।
कहा कि क्या आवश्यकता है कि साधु संतों के टेंट में सीधे पानी का नल दिया जाए। सरकार ने बाहर सड़क चौराहे पर लगा दिया है वहां से बाल्टी भर भर के ले आए भोजन भंडारा करें । स्नान के लिए गंगा और यमुना तो है, जगह-जगह अस्थाई शौचालय लाइन लगाकर रख दिए गए हैं, जहां तक शायद ही मेला पहुंचे वहां वहां तक सैकड़ो की संख्या में रख दिए गए हैं इस बात का विशेष ध्यान रखना चाहिए और रखा भी गया है की सरकारी क्षेत्र और वीआईपी के यहां हर कमरे में आधुनिक सुख सुविधा वाला शौचालय रहे उनके ऑफिस में बने शौचालय जहां कोई स्नान नहीं करने वाला वहां भी बढ़िया कजरिया टाइल शावर गीजर लगे स्नान घर बनाए हुए हैं, क्या पता कब किस अधिकारी का गर्म पानी के बाथटब में बैठने का हो जाए। किंतु साधु संतों के पंडाल में शुद्धता पवित्रता बनी रहे इसलिए शौचालय को उनके शिविर पंडालों से दूर रखा जाए ।
कहा कि मेले की पूर्णता तक नल भी वहां तक पहुंच जाएंगे वैसे कही-कही 100 -50 शौचालय के बीच में एक नल पानी की सुविधा के लिए लगा दिया है । डब्बा बाल्टी आप अपने साथ लेकर जाएं।
श्रद्धालु भक्तों का क्या है उनको तो ट्रैफिक जामों में फंसना है कम से कम 8 -10 किलोमीटर तो पैदल चलना ही होगा कुछ सामाजिक संस्थाओं भक्तों तथा साधु संतों ने स्थान स्थान पर चाय भोजन के भंडारे लगा दिए हैं उसकी कोई कमी नहीं रहेगी तथा साधु संतों ने अपने शिवरों में कुछ पंडाल भी बना दिए हैं जहां रात पुआल के ऊपर लेट कर कंबल ओढ़ कर भजन करते बिताई जा सकेगी । और हां जन सामान्य को यह भोजन आवास की सुविधा VIP क्षेत्र में अथवा तथा कथित VIP साधु के परिसर में नहीं मिलेगी क्योंकि वहां के मुख्य द्वार की सिक्योरिटी बड़ी टाइट रहेगी उधर उनका प्रवेश वर्जित रहेगा।
स्वामी यतींद्रानंद गिरी महाराज ने कहा कि कुंभ साधु संत और श्रद्धालु जनों का मेला है इसलिए साधारण और परंपरावादी संतो को आधुनिक भौतिक सुख सुविधा और सरकारी तन्त्र से वैसे भी दूर ही रहना चाहिए।
प्रत्येक कुंभ में सरकार का एक प्रभारी मंत्री होता था जिस तक सामान्य साधु संत आराम से पहुंच सकते थे किंतु इस बार कौन प्रभारी है। किसी को कुछ नहीं मालूम और अगर किसी को बनाया भी होगा तो उसको शायद खुद भी ना पता होगी। वह प्रभारी है वह यह सोचकर यहां नहीं आ रहा होगा कि आखिर में जाकर क्या करूंगा और कर ही क्या सकता हूं तिजोरी तो है पर चाबी तो कहीं और है।
हां सरकार का मुखिया सप्ताह में दो बार जरूर प्रयाग आ जाते हैं, पूरा प्रशासन सारे काम धाम छोड़कर क्योंकि काम धाम तो बाद में भी होते रहेंगे। हाजरी और प्रोटोकॉल तो बहुत जरूरी है उनकी आव भगत तथा इस घेराबंटी करने जरूर सफल रहते हैं की जो कुंभ का एक निश्चित घेरा उन्होंने बनाया है, उससे बाहर प्रदेश का मुखिया भटक कर ना निकल जाए क्योंकि मुखिया वही देखे जो हम दिखाना चाहते हैं। मुखिया की संतुष्टि जरूरी है या बाकी काम जरूरी है काम तो कुंभ के बाद भी हो जाएंगे।
कहा कि क्योंकि कुंभ सत्य है शाश्वत है इसलिए यहां सब कुछ अस्थाई है। ना कुंभ से पहले दिखता था ना बाद में दिखेगा और जिस कार्य का अस्तित्व ही नहीं रहने वाला वह किया ही क्यों जाए प्रशासन के इस सिद्धांत को आखिर स्वीकार करना पड़ेगा।