यूके और जर्मनी के सांसदों के लिए हिमालयीन ध्यानयोग शिविर का आयोजन
हिमालयीन ध्यानयोग के प्रणेता और संपूर्ण विश्व में समग्र योग के प्रसारक महर्षि शिवकृपानंद नंे हाल ही में यूरोप के दौरे पर यूके की संसद के हाऊस ऑफ लॉर्डस के सदस्यों के लिए हिमालयीन ध्यानयोग शिविर का सत्र किया। यूके के सांसदों ने उन्हें हर साल ऐसा शिविर करने की प्रार्थना की। ज्ञात हो कि लॉर्ड यूके की संसद के वरिष्ठ सदन के स्थाई सदस्य होते हैं।
इस शिविर में स्वामी शिवकृपानंद को हाऊस ऑफ लॉर्डस् के नवनीत ढोलकिया और एशियन वॉयस न्यूज के सीबी पटेल द्वारा ग्लोबल पीस एंड वैलनेस एंबेसडर के रूप में सम्मानित किया गया। इस शिविर में स्वामी शिवकृपानंद ने प्रवचन, ध्यान, प्रश्नोत्तरी के माध्यम से सांसदों के प्रश्नों का सहजता से मार्गदर्शन किया।
इसके अलावा जर्मनी के बर्लिन में कुछ जर्मन सांसदों के लिए हिमालयीन ध्यानयोग शिविर आयोजित किया गया। शिविर में प्रवचन, ध्यान, प्रश्नोत्तरी और अंत में जर्मनी की सर्वांगीण प्रगति के लिए स्वामी शिवकृपानंद ने प्रार्थना की। इन दोनों शिविरों में यूके और जर्मनी के कई सांसदों और मंत्रियों ने लाभ लिया। शिविर में स्वामी शिवकृपानंद ने कहाकि भारतीय संस्कृति हमें वसुधैव कुटुम्बकम की भावना सिखाती है, जिसका अर्थ है, पूरा विश्व एक परिवार है।ष्आश्चर्य की बात है कि भारतीय संस्कृति यह क्यों कहती है कि विश्व एक परिवार है, जबकि विश्व में कोई एक ईश्वर नहीं है, कोई एक भाषा नहीं है, कोई एक आस्था या धर्म नहीं है, जिसका पालन पूरे विश्व में हर कोई करता हो? उन्होंने कहा कि योग के माध्यम से पूरे विश्व को जोड़ा जा सकता है। योग के इस माध्यम से मैंने विभिन्न जातियों, मान्यताओं, संस्कृतियों और देशों के लोगों को जोड़ा है। योग ही पूरे विश्व को जोड़ने का एकमात्र साधन है।
स्वामी शिवकृपानंद ने बताया कि योग का शारीरिक व्यायाम के रूप में गलत अर्थ लगाया जा रहा है। योगासन योग नहीं है। योग केवल आपकी मांसपेशियों और शरीर को मजबूत कर सकता है, लेकिन आपका चित्त कमजोर ही रहेगा। ईश्वर हमारे ही भीतर है। आप कहना शुरू करें कि आप पवित्र आत्मा हैं, भूल जाए कि आप कैसे हैं, जैसे-जैसे आपकी चित्तशक्ति मजबूत होगी, आप अपने जीवन में समूल परिवर्तन का अनुभव करना शुरू कर देंगे।
यात्रा के दौरान स्वामी शिवकृपानंद ने आयरलैंड का भी दौरा किया और वहां के स्थानीय लोगों के साथ एक शिविर भी किया।
कहा कि अनूभूति प्रदान करने वाला हिमालयीन ध्यानयोग संस्कार एक ध्यान संस्कार है, जो लगभग 800 वर्षों से चला आ रहा है। महर्षि शिवकृपानंद स्वामीजी पिछले 30 वर्षों से समाज में इस हिमालयीन ध्यानयोग के अभ्यास को बढ़ावा देने के लिए अथक प्रयास कर रहे हैं। विश्व के 66 से अधिक देशों में हिमालयीन ध्यानयोग संस्कार बिल्कुल निःशुल्क दिया जा रहा है।