हरिद्वार। लोकसभा चुनाव 2024 का बिगुल बज चुका है। अबकी बार 400 पार के लक्ष्य को लेकर चुनावी रण में उतरी भारतीय जनता पार्टी अपने प्रत्याशियों के चयन में इस बार बेहद संवेदनशीलता बरत रही है। यही कारण है कि उसकी अब तक घोषित दो सूची में कई सिटिंग सांसदों के पत्ते कट चुके हैं, तो कई ऐसे चेहरों को उम्मीदवार बनाया गया जो या तो पूर्व सीएम रहे या फिर विधायक थे इनमें कुछ ऐसे चेहरे भी है जिन पर पहली बार पार्टी भरोसा जताने जा रही है।
बात उत्तराखंड कि करें तो यहां की पांच में से तीन पर पार्टी हाईकमान ने पुराने चेहरों पर ही दांव खेला, जबकि हरिद्वार व पौड़ी सीट पर पार्टी ने सिटिंग सांसदों के पत्ते काट दिए। पार्टी ने पौड़ी सीट पर राज्यसभा सांसद रहे अनिल बलूनी व हरिद्वार से पूर्व मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत को चुनावी मैदान में उतारा है। अब ऐसे में प्रदेश की सबसे हॉट सीट हरिद्वार पर सबकी निगाहें टिकी हैं, क्योंकि पूरे प्रदेश में हरिद्वार ही एकमात्र सीट ऐसी है जहां राजनीतिक समीकरण अन्य सीटों से सबसे अलग होने के साथ-साथ यहां मुस्लिम व बहुजन समाज के मतदाताओं की संख्या भी अन्य सीटों की तुलना में सबसे ज्यादा है। हालांकि धर्मनगरी हरिद्वार की इस संसदीय सीट पर ज्यादा समय तक भाजपा का ही कब्जा रहा।
त्रिवेंद्र रावत के आगे चुनौती कौन
आगामी लोकसभा चुनावों में अगर हालिया स्थिति देखी जाए तो भाजपा उम्मीदवार त्रिवेंद्र रावत के सामने विपक्ष की ओर से कोई बड़ी चुनौती नजर नहीं आ रही। यह बात अलग है कि कांग्रेस की ओर से अभी कोई चेहरा सामने नहीं हुआ है, फिर भी माना जा रहा है कि कांग्रेस के पास भाजपा उम्मीदवार को शिकस्त देना तो दूर फाईट करने के लिए भी कोई चेहरा नहीं है।
वहीं बसपा व सपा जैसी पार्टियों में इतना दम नहीं दिखता कि वह इस चुनावी रण में भाजपा के सामने टिक पाए। ऐसे में केवल भाजपा के सामने एकमात्र चुनौती के रूप में उमेश कुमार नजर जरूर आते है लेकिन उनकी जिस तरह मुस्लिम मतदाताओं में ज्यादा सक्रियता है उसके चलते हिन्दू बाहुल्य इस सीट पर उमेश कुमार कोई बड़ा करिश्मा कर पाएं, इसकी संभावना भी बेहद कम है। हालांकि उमेश कुमार का कांग्रेस के टिकट पर चुनाव लडने की खबरें भी हवा में खूब तैरती रहीं, लेकिन खुद कांग्रेस के अंदर ही उनके विरोध होने के स्वर नजर आए। यह बात भी जगजाहिर है कि टिकट को लेकर सबसे ज्यादा खींचातानी कांग्रेस के अंदर ही देखने को मिलती रही है। यही वजह है कि कांग्रेस लाख मंथन के बाद भी अभी तक हरिद्वार से अपने उम्मीदवार की घोषणा नहीं कर पाई है। इस बात की संभावनाओं से भी इंकार नहीं किया जा सकता कि कांग्रेस हरिद्वार से जिसे भी उम्मीदवार बनाए उसका पार्टी में विरोध ना हो।
बेदाग छवि व कुशल चुनावी प्रबन्ध से राह आसान
त्रिवेंद्र सिंह रावत के पक्ष में एक बड़ी बात उनकी राह और आसान बनाती है वो यह कि उनके सीएम रहते हुए भी और जब वह सीएम नहीं थे तब भी उनकी हरिद्वार में सक्रियता कम नहीं हुई। उन्होंने लगातार हरिद्वार से अपना नाता बनाए रखा। इसके साथ ही उनकी बेदाग छवि के साथ साथ कुशल प्रशासक की उनकी भूमिका भी उनकी जीत की राह को और आसान बनाती है। इसके अलावा त्रिवेंद्र सिंह रावत कुशल रणनीतिकार भी है उन्हें कब कौन सा कदम कहा उठाना है वह भलीभांति जानते है। कुशल चुनावी प्रबन्धन के माहिर माने जाने वाले त्रिवेंद्र अपने विरोधियों को भी अपने पक्ष में करने का मादा रखते है। फिलहाल की स्थित पर नजर डालें तो त्रिवेंद्र सिंह रावत की राह आसान होती ही नजर आ रही है।