कुंभ समाप्ति की घोषणा करने वाले संत कलनेमी के समानः आनंद स्वरूप

कुंभ समाप्ति की घोषणा पर शांभवी पीठाधीश्वर ने जताई नाराजगी
हरिद्वार।
देश भर में कोरोना के बढ़ते संक्रमण और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अपील बाद जूना अखाड़ा और उसके सहयोगी अखाड़े अग्नि एवं आह्वान ने देवता विसर्जित कर कुंभ समापन की घोषणा कर दी है, जिसके विरोध में कई संत उतर आए हैं।
शंकराचार्य परिषद के सर्वपति शांभवी पीठाधीश्वर स्वामी आनंद स्वरूप ने जूना अखाड़े द्वारा कुंभ समाप्ति की घोषणा पर सवाल उठाते हुए कहा है कि कुंभ समाप्त करने वाले साधु-संत जो शास्त्र नहीं जानते वो कालनेमि के समान हैं। क्योंकि कुंभ एक नियत तिथि से शुरू होकर नियत तिथि पर ही समाप्त होता है। यह किसी व्यक्ति विशेष के कहने पर शुरू या समाप्त नहीं होता।
बता दें कि पांच अखाड़ों द्वारा कुंभ समाप्ति की घोषणा के बाद मामला तूल पकड़ता जा रहा है। जहां बैरागी संत इस पर अपना विरोध दर्ज करा चुके हैं। वहीं आज शंकराचार्य परिषद के सर्वपति शांभवी पीठाधीश्वर स्वामी आनंद स्वरूप ने कुंभ समाप्ति की घोषणा करने वाले संतों को कालनेमि के समान बताया है। उनका कहना है कि जूना पीठाधीश्वर आचार्य महामंडलेश्वर को कोई हक नहीं है कि वह कुंभ समाप्ति की घोषणा करें। उन्होंने कहा कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से फोन पर हुई वार्ता के बाद आचार्य महामंडलेश्वर इतने उत्साहित हुए कि उन्होंने कुंभ स्नान को प्रतीकात्मक रूप से किए जाने के सुझाव पर कुंभ समाप्ति की घोषणा ही कर दी। जिसका उनको कोई अधिकार नहीं है। उन्होंने कहा कि धार्मिक मान्यताओं के अनुसार आचार्य महामंडलेश्वर का कोई पद नहीं होता है। यह पद केवल शंकराचार्य की अनुपस्थिति के कारण ही बनाया गया था, जिसका अब कोई औचित्य नहीं रह जाता है। उन्होंने कहाकि संतों को राजनेताओं की चाटुकारिता बंद करनी चाहिए। कुंभ के संबंध में अगर किसी को कुछ करने का अधिकार है तो वह शंकराचार्य को ही हैं। अखाड़ों को चाहिए था कि अपना सुझाव शंकराचार्य के पास भेजते और फिर जब शंकराचार्य कोई निर्णय लेते हैं। उसी के बाद कोई तिथि घोषित कर इस तरह का निर्णय लिया जाना उचित था। बता दें कि संन्यासियों के पांच अखाड़ों निरंजनी, आनन्द, जूना, आवाह्न, अग्नि ने कुंभ समाप्ति की घोषणा की है। जबकि संन्यासियों के दो अखाड़े निर्वाणी और उसके सहयोगी अटल ने अभी कुंभ समाप्ति पर अपना कोई निर्णय नहीं दिया है। ऐसा ही हाल उदासीन के दोनों और निर्मल अखाड़े का भी है। जबकि बैरागी के तीनों अखाड़े इसका विरोध कर चुके हैं।

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