हरिद्वार में लगातार दो वर्ष भी बना पूर्ण कुंभ का योग

हरिद्वार। भारतीय प्राच्य विद्या सोसायटी कनखल के संस्थापक पं. प्रतीक मिश्रपुरी ने कहाकि पूर्व में जिस प्रकार से आज साधु-संयासियों का प्रभाव सरकार पर दिखाई देता है। आजादी से पहले यही आलम यहां के तीर्थ पुरोहितों का था। उनसे बिना कुछ सलाह लिए कोई कार्य नहीं होता था। गुरु की गति के कारण 1 अप्रैल 1072 तथा 1 अप्रैल 1073 दोनों वर्षो में गुरु कुंभ राशि में थे तथा मेष में सूर्य भी थे, परंतु तीर्थ पुरोहितों ने पहले वर्ष 1072 को ही मान्यता प्रदान की। ठीक इसी प्रकार से 5 अप्रैल 1334 सोमवार को मेष संक्रांति थी। तब भी और 5 अप्रैल 1335 को भी मेष संकृंति थी। दोनों वर्षों में गुरु कुंभ में तथा सूर्य मेष में थे, परंतु यहां के तीर्थ पुरोहितों ने 1334 वाले कुंभ को ही मान्यता प्रदान की। इसी प्रकार 6 अप्रैल 1416 तथा 6 अप्रैल 1417 दोनों वर्षो में कुंभ योग था परंतु 1416 के वर्ष ही कुंभ हुआ। उन्होंने बताया कि 11 अप्रैल 1760 तथा 11 अप्रैल 1761 में भी दो वर्ष लगातार कुंभ योग था, परंतु यहां के विद्वान तीर्थ पुरोहित ने प्रथम वर्ष के कुंभ को ही मान्यता प्रदान की। ये दुर्लभ योग कभी-कभी ही देखने में आता है।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *