जमीन किसी की, कब्जा किसी का, बेच डाली तीसरे ने, दो महंतों ने माल बांटकर खाया

हरिद्वार। तीर्थनगरी में अखाड़ों की सम्पत्ति को खुदबुर्द कर अपना उल्लू सीधा करने की प्रथा पुरानी है। भगवे की आड़े लेकर सम्पत्तियों पर कब्जा, विक्रय करना अमूमन हरिद्वार में आम बात हो गयी है। संतों की दर्जनों ऐसी सम्पत्तियां हैं, जिनको जबरन कब्जाया हुआ है या फिर उनको गैरकानूनी तरीके से बेचा जा चुका है।


ऐसा ही एक मामला तीर्थनगरी के शिवमूर्ति के समीप एक सम्पत्ति का सामने आया है। सूत्रों के मुताबिक उक्त सम्पत्ति को दो महंतों ने मिलकर बेच दिया और रकम को आपस में बांट लिया। करीब सवा करोड़ में विक्रय की गयी सम्पत्ति का एक रुपया भी अखाड़े में जमा ना कर अपने ही अखाड़े को चूना लगाने का काम भी किया। सूत्र बताते हैं कि जो सम्पत्ति बेचकर धन लिया गया वह सब 2 नंबर में हुआ।


सूत्र बताते हैं कि बेची गयी सम्पत्ति के स्वामी कनखल स्थित एक अखाड़े के संत हुआ करते थे और वह उनकी निजी सम्पत्ति थी। उनकी मृत्यु के बाद दूसरे अखाड़े के संतों ने उस पर कब्जा कर दूसरे संत को काबिज करवा दिया। अब उनके जाने के बाद उक्त सम्पत्ति को सवा करोड़ में गुपचुप तरीके से बेच दिया गया है और सम्पत्ति की बिक्री से आयी रकम को दो महंतों ने आपस में बांटकर जहां अपना उल्लू सीधा किया वहीं अपने की अखाड़े को चूना लगाया।
सूत्र बताते हैं कि कनखल स्थित अखाड़े के जिस संत की वह सम्पत्ति थी अब अखाड़े के संत उसके कागजात एक त्रित कर कार्यवाही करने के मूड में हैं।

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