विद्या वाचस्पति की मानद उपाधि से सम्मानित हुए जूनपीठाधीश्वर स्वामी अवधेशानंद गिरि महाराज

जूनापीठाधीश्वर आचार्य महामण्डलेश्वर स्वामी अवधेशानन्द गिरि महाराज को जगद्गुरु रामानन्दाचार्य राजस्थान संस्कृत विश्वविद्यालय जयपुर द्वारा अपने सप्तम दीक्षान्त समारोह में विद्यावाचस्पति (डी. लिट.) की उपाधि से विभूषित किया गया।

जयपुर के राजस्थान इंटरनेशनल सेंटर में संपन्न हुए समारोह में स्वामी अवधेशानन्द को राजस्थान के राज्यपाल एवं विश्वविद्यालय के कुलाधिपति हरिभाऊ किशनराव बागडे एवं लोकसभा के अध्यक्ष ओम बिडला ने विशिष्ट अभिनन्दन पत्र के साथ विद्यावाचस्पति की मानद उपाधि प्रदान की।

यह सम्मान उन्हें संस्कृत भाषा, भारतीय दर्शन, सनातन धर्म और गुरु-शिष्य परम्परा के संरक्षण एवं प्रसार में उनके अद्वितीय योगदान के लिए प्रदान किया गया।

इस अवसर पर अपने उद्बोधन में स्वामी अवधेशानन्द ने कहा कि भारत की कालजयी-मृत्युञ्जयी सनातन वैदिक संस्कृति का आधार ही संस्कृत भाषा है। आज सम्पूर्ण विश्व में भारतीय संस्कृति के प्रति विशेष आकर्षण बढ़ा है। भारत के वैश्विक प्रभाव के मूल में हमारे संस्कृत विश्वविद्यालय ही हैं। भारतीय संस्कृति के उन्नयन और उत्थान के लिए मैं इस विश्वविद्यालय का हार्दिक आभार ज्ञापित करता हूँ और यह सम्मान मै भगवान भाष्यकार आद्य जगद्गुरु शंकराचार्य और गुरु परम्परा को समर्पित करता हूँ।”

इस अवसर पर राजस्थान सरकार के संस्कृत शिक्षामंत्री मदन दिलावर, विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. डॉ. रामसेवक दुबे समेत अनेक जनप्रतिनिधियों, शासन-प्रशासन के अधिकारियों, विश्वविद्यालय के प्राध्यापकों, छात्रों एवं शोधार्थियों समेत अनेक गणमान्य विभूतियों की उपस्थिति रही।

स्वामी अवधेशानंद गिरि जी महाराज संपूर्ण भारत सहित विश्वभर में धर्म, अध्यात्म, योग एवं संस्कृत के प्रचार-प्रसार के लिए विख्यात हैं। यह मानद उपाधि भारतीय ज्ञान-परंपरा को समर्पित उनके निरंतर प्रयासों की सार्थक मान्यता है।

उल्लेखनीय है – स्वामी अवधेशानंद गिरि जी महाराज को वर्ष 2008 में विक्रम विश्वविद्यालय उज्जैन द्वारा भी साहित्य एवं मानवीय दृष्टिकोण के क्षेत्र में उनके असाधारण कार्यों के लिए मानद डि.लिट्. (डॉक्टर ऑफ लिटरेचर) की उपाधि से भी सम्मानित किया जा चुका है।

प्रेषक-
संवाद केंद्र, श्री हरिहर आश्रम
कनखल, हरिद्वार

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