अखाड़ा परिषद की रार पर बोले श्रीमहंत गोपाल गिरि, एका करें संत, आवाहन का हो अध्यक्ष और निर्माेही का सचिव

चेतावनी: नहीं सभले तो कुंभ में फिर से दुर्दशा होना तय

हरिद्वार। श्री शंभू दशनाम पंचायती अखाड़ा आवाह्न के श्रीमहंत गोपाल गिरि महाराज ने अखाड़ा परिषदों को लेकर बड़ा बयान दिया है। उन्होंने दोनों अखाड़ा परिषद को आपस में बैठकर एका करने की सलाह दी है।


श्रीमहंत गोपाल गिरि महाराज ने कहाकि पद पर लगातार बने रहना उचित नहीं हैं। कहाकि दोनों परिषद मिलकर फैसला करें और पुनः एक एक परिषद बनाये। जो अखाड़ा परिषद को पदाधिकारी बन चुका है उसे हटाया जाए नये को अवसर दिया जाए।


श्रीमहंत गोपाल गिरि महाराज ने कहाकि तीन अखाड़े ही प्राचीन हैं, जिनमें सर्वप्रथम आवाहन अखाड़े की स्थापना हुई। उसके बाद अटल और महानिर्वाणी अखाड़ा अस्तित्व में आया। फिर आनन्द, निरंजनी, अग्नि, जूना अखाड़े अस्तित्व में आए।
कहाकि बैरागी अखाड़ों की तीन अणियों, दो उदासी, एक निर्मल अखाड़े को मिलाकर 13 अखाड़े बनते हैं। जिसमंे से जूना अखाड़े का सन् 2004 से सचिव बना हुआ है। इस सचिव पद से उन्हें हटाया जाना चाहिए।


कहाकि श्री पंचायती अखाड़ा तपोनिधि श्री निरंजनी के श्रीमहंत शंकर भारती 26 वर्ष तक अखाड़ा परिषद अध्यक्ष रहे। उनके बाद फिर नरेन्द्र गिरि रहे। ऐसे में निरंजनी अखाड़े को इस पद को त्याग देना चाहिये तथा आवाहन अखाड़े का अध्यक्ष तथा निर्मोही अखाड़े का सचिव बनाया जाना चाहिए।


कहाकि प्रयागराज कुंभ में अखाड़ों की दुर्दशा किसी से छिपी नहीं है। यदि ऐसे की संतों में बिखराब रहा तो आने वाले उज्जैन व नासिक कुंभ में सरकार और मेला अधिकारी लूटते रहेंगे और साधुओं और अखाड़ों को कुंभ में कुछ नहीं मिलेगा।
श्रीमहंत गोपाल गिरि महाराज ने कहाकि स्थितियों को देखते हुए एका होना जरूरी है और पुराने पदाधिकारियों को भी हटाया जाना जरूरी है।

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