तोरई (गिल्की) स्वादिष्ट, पथ्यकर व औषधीय गुणों से युक्त सब्जी है। आयुर्वेद के अनुसार यह स्वाद में मीठी, स्निग्ध, ठंडी (शीत), पचने में थोड़ी भारी होती है। यह पित्त विकृति को दूर करती है। उष्ण प्रकृतिवालों के लिए एवं पित्तजन्य व्याधियों तथा सूजाक (गनोरिया), बवासीर, रक्तमूत्र, रक्तपित्त, खाँसी, बुखार, कृमि आदि में विशेष पथ्यकर है।
तोरई में जस्ता (जिंक), लौह तत्त्व, मैग्नेशियम, थायमीन और रेशे (फाइबर) प्रचुर मात्रा में पाये जाते हैं। तोरई के बीजों का तेल कुष्ठ और त्वचा के विविध रोगों में लाभदायी है।
तोरई की सब्जी
तोरई की सब्जी भोजन में रूचि उत्पन्न करती है। स्निग्ध व ठंडी होने के कारण तोरई शरीर में तरावट लाती है। इसकी सब्जी को सुपाच्य व अधिक स्वादिष्ट बनाने के लिए नींबू का रस और काली मिर्च का चूर्ण मिलाकर खाना चाहिए।
तोरई के लाभ
1ः- बालक व श्रमजीवियों को शक्ति देती है।
2ः- शुक्र धातु की क्षीणता से आनेवाली शारीरिक, मानसिक दुर्बलता व चिड़चिड़ापन दूर करने के लिए तोरई की सब्जी, सूप अथवा तोरई डालकर बनायी गयी दाल का एक हफ्ते तक सेवन करने से लाभ होता है।
3ः- सुखी खाँसी में जब कफ न छूट रहा हो तब इसका सेवन करने से कफ निष्कासित होकर खाँसी में राहत मिलती है।
4ः- मूत्र-विकार व पेशाब की जलन दूर होती है। मूत्र खुलकर आता है।
5ः- बवासीर की तकलीफ में तोरई की सब्जी खाने तथा तोरई के ताजे पत्ते पीसकर मस्सों पर लगाने से लाभ होता है।
6ः- वजन कम करने व मधुमेह में काफी फायदेमंद होती है। तोरई का रस पीलिया में हितकारी है।
7ः- रक्त को शुद्ध करती है। मुँहासे, एक्जिमा, सोरायसिस और अन्य त्वचा संबंधी रोगों में पथ्य के रूप में फायदेमंद है।
8ः- नेत्रज्योति बढ़ाती है। अम्लपित्त में खूब लाभदायी है।
9ः- कब्ज की शिकायत में शाम के भोजन में इसका उपयोग करना हितकर है। इसके लिए सब्जी रसदार बनानी चाहिए।
10ः- बुखार में तोरई का सूप शक्ति व तरावट देता है।
11ः- जिन्हें बार-बार कृमि हो जाते हों, वे हफ्ते में 2-3 बार तोरई की सूखी सब्जी खायें।
सावधानी- वर्षा ऋतू में इसका प्रयोग कम मात्रा में करें। पेचिश, मंदाग्नि, बार-बार मलप्रवृत्ति की समस्या में इसका सेवन नहीं करना चाहिए।
Dr.(Vaid) Deepak Kumar
Adarsh Ayurvedic Pharmacy
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