शिशु में वाक क्षमता का विकास-अविभावक स्वयं करें परीक्षण

हरिद्वार। वर्तमान समय, विशेषकर उन माता-पिता के लिए चुनौती भरा है, जिनके पहले बच्चे का जन्म हुआ है। क्योकि इस समय में वह बच्चे की सामान्य वृद्धि और विकास के परीक्षण के लिए डाक्टर के पास नहीं जा पा रहे हैं।
बच्चों के विकास में एक मुख्य सोपान है, उनकी सुनने और बोलने की प्रक्रिया का विकास। यह कब और कैसे होता है और इसे हम कैसे जान सकते हैं।
श्रवण क्षमता का विकासः- हम उसी भाषा का उच्चारण करते हैं, जिसे हम सुनते हैं अर्थात बोलने के लिए सुनना बहुत जरूरी है। इसका परीक्षण शिशु में आसानी से किया जा सकता है। जैसे यदि एक माह का शिशु सोया हुआ है और अचानक से तेज आवाज हो जाती है, तब वह जाग जाता है या फिर चैंकने जैसा व्यवहार करता है। चार माह का होते-होते वह अपने सिर को आवाज की दिशा में घुमाना सीख जाता है। दस माह में जिस चीज से आवाज आ रही है, उसको देखता है। यह इस बात को दर्शाता है कि शिशु में श्रवण क्षमता का विकास सामान्य रूप से हो रहा है।
वाक् क्षमता का विकासः- यह एक निरन्तर विकास की प्रक्रिया है। इसका विकास जन्म के तीसरे माह से ही प्रारंभ हो जाता है।
खुश हो कर आवाज निकालनाः- ३ माह
हंँसना शुरू करना — ५ माह
एक वर्ण उच्चारण जैसे मां,पा,बा — ६माह
दो वर्ण एक साथ जैसे मामा,दादा- 9 माह
दो वर्ण अर्थ युक्त जैसे मम दो, दूध दो- 1 वर्ष
छोटे छोटे वाक्य -2 वर्ष
कहानी या कविता सुना सकता है -३-४ वर्ष
लेकिन वर्तमान समय में कुछ बच्चों में देखा जा रहा है कि श्रवण क्षमता सामान्य होने पर और कोई जन्मजात मानसिक विकार न होने पर भी बच्चे देर से बोलना शुरू कर रहे हैं या कुछ बच्चे पहले बोलना शुरू किए थे लेकिन अचानक उन्होंने बोलना बंद कर दिया। इसके कारण हैंः- बच्चे को शुरू से ही मोबाईल फोन की आदत डाल देना, चाहे वह खाना खिलाने के लिए हो या रोने से चुप कराने के लिए यह बच्चंे के विकास के लिए अंत्यंत हानिकारक है। इसके कारण बच्चे का सामान्य विकास रूक जाता है।
बच्चे को पर्याप्त समय नहीं देनाः- बच्चें के मानसिक विकास के लिए ज रूरी है कि आप बच्चे के मानसिक स्तर पर जाकर ही उनकी विकास प्रक्रिया में सहायक हों। उन्हें अपने कार्य समय के साथ करने दें, जिससे उनमें आत्मविश्वास की भी वृद्धि होगी और वह अपने जीवन के विकास के विभिन्न सोपानों को आसानी से हासिल भी कर पाएंगे। जहां मां और पिता दोनों कामकाजी हैं, वह यदि बच्चे को पर्याप्त समय नहीं दे पा रहे हैं जब उन्हें स्पंय की दैनिक कार्य पर भी ध्यान देना आवश्यक है कि वह एक नियमित दिनचर्या का पालन करने में कहीं चूक तो नहीं कर रहे हंैं।
डा. रीना पाण्डेय
वरिष्ठ बालरोग विशेषज्ञ
ऋषिकुल आयुर्वेदिक चिकित्सालय हरिद्वार।

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