उदासीन बड़ा अखाड़ाः निष्कासन के बाद अब स्थान खाली करने को लेकर बढ़ सकता है विवाद!

हरिद्वार। धर्मनगरी को संतों की नगरी भी कहा जाता है। यहां बहु संख्या में संतों के आश्रम व अखाड़े हैं। जिन आश्रम-अखाड़ों से वेद ऋचाओं व घंटे-घडियाल तथा शंख ध्वनि की आवाजें सुनाई देनी चाहिए थी, अधिकांश में वहां से अब तू-तूं, मैं-मैं का कोलाहल सुनाई देने लगा है। कारण धन की लालसा और अखाड़े तथा आश्रम की सम्पत्तियों का दुरूपयोग। उदासीन सम्प्रदाय का प्रमुख अखाड़ा श्री पंचायती अखाड़ा बड़ा उदासीन इन दिनों उदासीन कम तू-तू, मैं-मैं का अखाड़ा अधिक हो गया है। दो गुटों में बंट चुके अखाड़े के संत बैठक कर अपने-अपने विरोधी के खिलाफ निंदा प्रस्ताव पारित करने के साथ शह-मात का खेल खेलने में मग्न हैं।


अखाड़े से चार संतों को निष्कासित किए जाने के बाद तू-तूं, मैं-मैं और बढ़ गई है। साथ ही काफी समय से अंदरखाने चल रही आपसी कलह अब सड़कों पर आ गई है। इतना ही नहीं कोर्ट में भी मामला पहुंच चुका है। इसी के चलते निष्कासित किए गए कोठारी महंत दामोदार दास महाराज को अखाड़े के कोठारी के पद की जिम्मेदारी स्थानीय समिति को सौंपनी पड़ी। सूत्र बताते हैं कि अखाड़े की स्थानीय समिति को चार्ज देने के बाद अब समिति के लोग निष्कासित कोठारी दामोदर दास से स्थान खाली करने के संबंध में भी कई बार कह चुके हैं। सूत्र बताते हैं कि जिस स्थान पर दामोदर दास वर्तमान में रह रहे हैं वह स्थान पदाधिकारियों का है। अब जबकि दामोदर दास को निष्कासित किया जा चुका है और वह अपनी जिम्मेदारी स्थानीय समिति को सौंप चुके हैं तो उन्हें अब स्थान खाली कर देना चाहिए। संतों का कहना है कि यदि चार्ज नहीं सौंपा जाता तो स्थान खाली न करने का औचित्य समझ में आता है, किन्तु जार्च देने और कहने के बाद स्थान खाली न करना हठधर्मिता है।


निष्कासन के बाद अब स्थान खाली कराने को लेकर जिस प्रकार से संतों के बीच विवाद की खाई और गहराती जा रही है उसको देखते हुए अखाड़े में रण होने की संभावना से इंकार नहीं किया जा सकता।

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