एक पत्नि, पांच बच्चे, गोगापीर का उपासक, बना हुआ है आचार्य मण्डलेश्वर

हरिद्वार। अखाड़ों में आचार्य बनने के कुछ नियम हैं। आचार्य महामण्डलेश्वर को शंकराचार्य के समकक्ष मान्यता है। आचार्य को अखाड़े के गुरु के रूप में मान्यता दी जाती है। जिस कारण से आचार्य महामण्डलेश्वर बनाने के लिए अखाड़ों ने कुछ नियम प्रतिपादित किए हुए हैं। बावजूद इसके स्वंय के बनाए हुए नियमांे को धन के लालच में पलीता लगाते हुए सनातन संस्कृति को गर्त में पहुंचाने का कार्य किया जा रहा है।


हास्यास्प्रद यह कि गर्त में गिराने का कार्य उन्हीं के द्वारा किया जा रहा है, जिन्हें सनातन संस्कृति का धर्मध्वज वाहक कहा जाता है।


किसी भी अखाड़े में आचार्य बनने के लिए उसका ब्राह्मण कुल में जन्म होना आवश्यक है। वह वेद, मीमांसा, न्याय, दर्शन आदि में पारंगत होना चाहिए। किन्तु धन की लोलुपता के चलते इन सभी नियम कायदों को वर्तमान में ताक पर रख दिया गया है। अब विद्वता की परीक्षा न लेकर व्यक्ति की योग्यता का आंकलन उसके धन से किया जाने लगा है, जिस कारण से सनातन को गहरा आघात जानबूझ कर पहुंचाया जा रहा है।


सूत्र बताते हैं कि अखाड़ों के आचार्यों में से एक आचार्य ऐसे हैं, जिनकी पत्नि भी है, पांच बच्चे भी हैं और वह ब्राह्मण भी नहीं हैं। बावजूद इसके वे आचार्य बने हुए हैं। इतना ही नहीं वे गोगापीर के उपासक भी बताए जा रहे हैं। और न ही उन्हें वेद, वेदांग, उपनिषद, न्याय, धर्म, मीमांसा आदि का श्रेष्ठ ज्ञान भी नहीं है। केवल धन के चक्कर में उन्हें आचार्य पद पर सुशोभित कर दिया गया। सवाल यह है कि ऐसे में सनातन की रक्षा कैसे हो।

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