गोखरू पुरूषों और महिलाओं के रोगों के लिए रामबाण औषिधि

गोखरूः- भारत में सभी प्रदेशों में पाये जाने वाला पौधा है। यह जमीन पर फैलने वाला पौधा होता है, जो हर जगह पाया जाता है। वर्षा के आरम्भ में ही यह पौधा जंगलों, खेतों के आसपास के उग आता है। गोखरू छोटा और बड़ा दो प्रकार का होता है लेकिन इसके गुणों में समानता होती है। गोखरू की शाखाएं लगभग 90 सेंटीमीटर लंबी होती है जिसमें पत्ते चने के समान होते हैं। हर पत्ती 4 से 7 जोड़ों में पाए जाते हैं। इसकी टहनियों पर रोयें और जगह-जगह पर गाठें होती हैं। गोखरू के फूल पीले रंग के होते है जो सर्दी के मौसम में उगते हैं। इसके कांटे छूरे की तरह तेज होते हैं इसलिए इसे गौक्षुर कहा जाता है। इसके बीजों से सुगंधित तेल निकलता है। इसकी जड़10 से 15 सेंटीमीटर लम्बी होती है तथा यह मुलायम, रेशेदार, भूरे रंग की ईख की जड़ जैसी होती है। उत्तरभारत मे, हरियाणा, राजस्थान मे यह बहुत मिलता है। गोखरू का सारा पौधा ही औषधीय क्षमता रखता है। फल वजड़ अलग से भी प्रयुक्त होते हैं।

गोखरू की प्रकृति गर्म होती है। यह शरीर में ताकत देने वाला, नाभि के नीचे के भाग की सूजन को कम करने वाला, वीर्य की वृद्धि करने वाला, वल्यरसायन, भूख को तेज करने वाला होता है, कमजोर पुरुषों व महिलाओं के लिए एक टॉनिक भी है। यह स्वादिष्ट होता है। यह पेशाब से सम्बंधित परेशानी तथा पेशाब करने पर होनेवाले जलन को दूर करने वाला, पथरी को नष्ट करने वाला, जलन को शान्त करने वाला, प्रमेह (वीर्य विकार), श्वांस, खांसी, हृदय रोग, बवासीर तथा त्रिदोष (वात, कफ और पित्त) को नष्ट करने वालाहोता है।
तथा यह मासिकधर्म को चालू करता है। यह दशमूलारिष्ट में प्रयुक्त होने वाला एक द्रव्य भी है। यह नपुंसकता तथा बार-बार होने वाले गर्भपातमें भी सफलता से प्रयुक्त होता है।

गोखरू सभी प्रकार के गुर्दें के रोगों को ठीक करने में प्रभावशाली औषधि है। यह औषधि मूत्र की मात्राको बढ़ाकर पथरी को कुछ ही हफ्तों में टुकड़े-टुकड़े करके बाहर निकाल देती है।

गोखरू का फल बड़ा और छोटा दो प्रकार का होता है। दोनों के फूल पीले और सफेद रंग के होते हैं। गोखरू के पत्ते भी सफेद होते हैं। गोखरू के फल के चारों कोनों पर एक-एक कांटा होता है। छोटे गोखरू का पेड़ छत्तेदार होता है। गोखरू के पत्ते चने के पत्तों के समान होते हैं। इसके फल में 6 कांटे पाये जाते हैं। कहीं कहीं लोग इसके बीजों का आटा बनाकर खाते हैं।

वैद्यक में इन्हें शीतल, मधुर, पुष्ट, रसायन, दीपन और काश, वायु, अर्श और ब्रणनाशक कहा है। यह शीतवीर्य, मुत्रविरेचक, बस्तिशोधक, अग्निदीपक, वृष्य, तथा पुष्टिकारक होता है।

विभिन्न विकारों मंे वैद्यवर्ग द्वारा इसको प्रयोग किया जाता है।मुत्रकृच्छ, सोजाक, अश्मरी, बस्तिशोथ, वृक्कविकार, प्रमेह, नपुंसकता, ओवेरियन रोग, वीर्य क्षीणता में इसका प्रयोग किया जाता है।

गर्भाशय को शुद्ध करता है तथा वन्ध्यत्व को मिटाता है। इस प्रकार यह प्रजनन अंगों के लिए एक प्रकार की शोधक, बलवर्धक औषधि है।

यह ब्लैडर व गुर्दे की पथरी का नाश करता है तथा मूत्रावरोध को दूर करता है। मूत्र मार्ग से बड़ी से बड़ी पथरी को तोड़कर निकाल बाहर करता है।

इसका प्रयोग कैसे करें।

इसके फल का चूर्ण 3 से 6 ग्राम, दिन में 2 या 3 बार। पंचांग क्वाथ- 50 से 100 मिली लीटर।

पथरी रोग में गोक्षुर के फलों का चूर्ण शहद के साथ 3 ग्राम की मात्रा में सुबह शाम दिया जाता है। मूत्र के साथ यदि रक्त स्राव भी हो तो गोक्षुर चूर्ण को दूध में उबाल कर मिश्री के साथ पिलाते हैं।

सुजाक रोग (गनोरिया) में गोक्षुर को घंटे पानी में भिगोकर और उसे अच्छी तरह छानकर दिन में चार बार 5-5 ग्राम की मात्रा में देते हैं। किसी भी कारण से यदि पेशाब की जलन हो तो गोखरु के फल और पत्तों का रस 20 से 50 मिलीलीटर दिन में दो-तीन बार पिलाने से वह तुरंत मिटती है।

प्रमेह शुक्रमेह में गोखरू चूर्ण को 5 से 6 ग्राम मिश्री के साथ दोबार देते हैं। तुरंत लाभ मिलता है।

मूत्र रोग संबंधी सभी शिकायतों यथा प्रोस्टेट ग्रंथि बढ़ने से पेशाब का रुक-रुक कर आना, पेशाब का अपने आप निकलना (युरीनरी इनकाण्टीनेन्स), नपुंसकता, मूत्राशय की पुरानी सूजन आदि में गोखरू 10 ग्राम, जल 150 ग्राम, दूध 250 ग्राम को पकाकर आधा रह जाने पर छानकर नित्य पिलाने से मूत्र मार्ग की सारी विकृतियाँ दूर होती हैं।

प्रदर में, अतिरिक्त स्राव में, स्री जनन अंगों के सामान्य संक्रमणों में गोखरू एक प्रति संक्रामक का काम करता है। स्री रोगों के लिए 15 ग्राम चूर्ण नित्य घी व मिश्री के साथ देते हैं।

गोक्षरू मूत्र पिण्ड को उत्तेजना देता है, वेदना नाशक और बलदायक है। इसका सीधा असर मूत्रेन्द्रिय की श्लेष्म त्वचा पर पड़ता है।

गोक्षुर चूर्ण प्रोस्टेट बढ़ने से मूत्र मार्ग में आए अवरोध को मिटाता है, उस स्थान विशेष में रक्त संचय को रोकती तथा यूरेथ्रा के द्वारों को उत्तेजित कर मूत्र को निकाल बाहर करता है।

बहुसंख्य व्यक्तियों में गोक्षुर के प्रयोग के बाद ऑपरेशन की आवश्यकता नहीं रह जाती। इसे योग के रूप न देकर अकेले अनुपान भेद के माध्यम से ही दियाजाए, यही उचित है, ऐसा वैज्ञानिकों का व सारे अध्ययनों का अभिमत है।

इसका सेवन आप दवा के रूप में या सब्जी के रूप में भी कर सकते हैं।

गोखरू के फल का चूर्ण 3 से 6 ग्रामकी मात्रा में दिन में 2 या 3 बार सेवन कर सकते हैं। इसका काढ़ा 50 से 100 मिलीलीटर तक सेवन कर सकते हैं।

गोखरू की सब्जी तबियत को नर्म करती है, शरीर में खून की वृद्धि करती है और उसके दोषों को दूर करती है। यह पेशाब की रुकावट को दूर करती है तथा मासिकधर्म को शुरू करती है। सूजाक और पेशाब की जलन को दूर करने के लिए यह लाभकारी है।

सावधानीः-
गोखरू का अधिक मात्रा में सेवन ठण्डे स्वभाव के व्यक्तियों के लिए हानिकारक हो सकता है। गोखरू का अधिक मात्रा का सेवन करने से प्लीहा और गुर्दों को हानि पहुंचती है और कफजन्य रोगों की वृद्धि होती है।

गोखरू की सब्जी का अधिक मात्रा में सेवन प्लीहा (तिल्ली) के लिए हानिकारक हो सकता है।

Vaid Deepak Kumar
Adarsh Ayurvedic Pharmacy
Kankhal Hardwar
aapdeepak-hdr@gmail-com
9897902760

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *