रेशम गुट को अपने साथ लेने के लिए लोलीपोप दिया हुआ है
हरिद्वार। पहले से ही दो फाड़ हो चुकी अखाड़ा परिषद का एक गुट कई गुटों में बंटता नजर आ रहा है। जिससे इसका अस्तित्व खतरे में पड़ता दिखायी दे रहा है। यही कारण है कि एक गुट सुलह-समझौते के लिए लालयित है।
बता दें कि नववर्ष पर प्रथम संन्यास दीक्षा समारोह का धूमधाम से आयोजन किया गया। जिसमंें दो फाड़ हो चुकी अखाड़ा परिषद के एक गुट के संत ही शामिल थे। यह गुट भी अपने पास बहुमत के जादूई आंकड़े 7 अखाड़े साथ होने के दावे करता है। जबकि दूसरा गुट भी सात अखाड़े होने का दावा करता है। किन्तु इस समारोह में सात अखाड़े के साथ होने के दावे की असलियत दिखायी दी। समारोह में दो अखाड़ों के अतिरिक्त किसी अन्य अखाड़े का बड़ा संत शामिल नहीं हुआ। जबकि निर्मल गुट के रेशम सिंह को खास तवज्जों दी गयी। जिसे निर्मल अखाड़े से पूर्व में ही बाहर कर दिया गया था और उस पर निर्मल अखाड़े की ओर से मुकद्मा भी दर्ज कराया हुआ है। सूत्र बताते हैं कि रेशम गुट को अपने साथ लेने के लिए निर्मल अखाड़े पर उसका कब्जा करवा देने का लोलीपोप दिया हुआ है। जिस कारण से रेशम सिंह गुट के हौंसले बुलंद हैं। वहीं सात अखाड़ों का दावा करने वाले दूसरे गुट में न तो अग्नि अखाड़ा, और न ही आनन्द व आवाह्न अखाड़े का कोई बड़ा संत मौजूद नजर आया। इतना ही नहीं जिन बैरागी संतों के साथ होने की बात कही गयी थी वह भी समारोह से दूर ही रहे। हालातों को देखते हुए अखाड़ा परिषद के दूसरे गुट में केवल तीन अखाड़े ही नजर आए। जिससे अनुमान लागाया जा सकता है की संतों की राजनीति में क्या खिचड़ी पक रही है। जबकि सूत्र बताते हैं कि दूसरे गुट की अखाड़ा परिषद में से सन्यासियों से एक और एक अन्य सम्प्रदाय का अखाड़ा इस गुट से दूरी बना सकता है। जिस कारण से दूसरी अखाड़ा परिषद मात्र तीन अखाड़ों की रह जाएगी। यही कारण है कि दोनों गुटों को फिर से एक करने की रणनीति पर काम किया जा रहा है। यदि ऐसा होता है तब भी सभी अखाड़ों के एक होने पर संशय के बादल मंडराते रहेंगे। सूत्र बताते हैं कि जिस एक संत के कारण अखाड़ा परिषद दो फाड़ हुई अधिकांश संत उस संत के पक्ष में नहीं हैं। और दूसरा गुट उस संत को छोड़ना नहीं चाहता और न ही वे किसी कीमत पर स्वंय को परिषद से अलग कर सकते हैं। यही कारण है कि दोनों गुटों को पूर्ण रूप से एक होना असंभव सा प्रतीत हो रहा है। यदि एक संत विशेष को परिषद से बाहर का रास्ता दिखा दिया जाए और पद की लोलुपता को छोड़ दिया जाए तो परिषद के दोनों गुटों में एक राय बन सकती है। जो की संभव नहीं है। प्रथम संन्यास दीक्षा कार्यक्रम ने एक गुट विशेष की एकता की पोल खोल दी। कहा जा सकता है कि अपनों ने ही अपनो से दूरी बनाकर एक विशेष संदेश समाज का दिया है।