अविमुक्तेश्वरानंद का विरोध तो बहाना, मकसद अपने को पद पर बैठाना!

हरिद्वार। ज्योतिष पीठ पर स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद सरस्वती के पट्टाभिषेक पर सुप्रीम रोक लग चुकी है। जिस कारण से ज्योतिष पीठ पर होने वाले पट्टाभिषेक समारोह को अभिनंदन समारोह का नाम देना पड़ा। वहीं अविमुक्तेश्वरानंद सरस्वती के पट्टाभिषेक का विरोध कर रहे कुछ संत सुप्रीम निर्णय से खासे खुश हैं। जहां वे सुप्रीम निर्णय को अपनी जीत बता रहे हैं वहीं अविमुक्तेश्वरानंद सरस्वती के शिष्य भी इस निर्णय का स्वागत कर रहे हैं। उनका कहना है कि निर्णय उनके पक्ष में है। पट्टाभिषेक तो उनका पहले ही हो चुका है।


खैर पट्टाभिषेक हुआ या नहीं यह कोर्ट का विषय है। ज्योतिष पीठ पर अविमुक्तेश्वरानंद की ताजपोशी कितनी सही है और कितनी गलत इसका निर्णय भी सुप्रीम कोर्ट करेगा। किन्तु जिस प्रकार से पीठ पर बैठने को लेकर प्रक्रिया की गई वह मठाम्नाय व मठानुशासन के विपरित कही जाएगी। जिस कारण से विरोध किया जा रहा है। विरोध करने वाले सभी अपने-अपने तर्क दे रहे हैं। यदि आदी शंकराचार्य द्वारा प्रतिपादित नियमों और शंकर दिग्दर्शन पर नजर डाले तो उसमें स्पष्ट लिखा है कि पीठ पर आसन्न होने की आसक्ति रखने वाला भी पीठ पर बैठने के लिए अयोग्य है। किन्तु यहां हालत तो एक अनार सौ बीमार वाले हैं।


वहीं सूत्र बताते हैं कि विरोध करने वाले खेमे कुछ लोग स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद सरस्वती को ज्योतिष पीठ का शंकरचार्य मानने को तैयार है। उनकी शर्त है कि स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद सरस्वती सरस्वती नामा का त्याग कर गिरि नामा को अंगीकार कर लें। दूसरी अस्पष्ट शर्त यह कि लिफाफा उनके लिए बड़े वजन का होना चाहिए। यदि ऐसा होता है तो पहले से दो फाड़ हो चुकी अखाड़ा परिषद के तीन फाड़ होने में पल भर की देरी नहीं लगेगी। वहीं विरोध का एक अन्य कारण यह कि कुछ लोग ज्योतिष पीठ पर अपने मुताबिक व्यक्ति को बैठाने के इच्छुक हैं। जिस संत को बैठाने के लिए रणनीति पर कार्य किया जा रहा है, उनका बैठना भी नामुमकिन है। बावजूद इसके विरोध का सिलसिला जारी है। जिस प्रकार के हालात ज्योतिष पीठ को लेकर बने हुए हैं उसको देखते हुए इस पीठ के अभी और विवादांे में बने रहने की उम्मीद है।

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