अश्विनी सैनी
धर्मनगरी हरिद्वार में आयोजित धर्म संसद अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर चर्चा का विषय बन गई है। आयोजन और संख्या के स्तर से देखें तो यह कोई बहुत बड़ा आयोजन नहीं था और न ही वक्ताओं की दृष्टि से इसे भव्य व विशाल कहा जा सकता है, लेकिन इस धर्म संसद में वक्ताओं ने जो बिन्दु उठाये गये उससे विश्व में सनातन धर्म के मानने वालों के दिलों को तो छुआ ही है विरोधियों में भी खलबली मचा दी है। इसे मां गंगा का आशीर्वाद कहा जाये या आयोजनकर्ताओं का सौभाग्य इस धर्म संसद को सनातन धर्म के समर्थकों और विरोधियों ने जाने-अनजाने जो अन्तर्राष्ट्रीय पहचान दिला दी उससे आयोजनकर्ताओं का उद्देश्य कहीं न कहीं सफल होता दिखाई दे रहा है। राज्य सरकार के सनातन विरोधी रवैया के कारण संतों को जेल में जो पीड़ा झेलने पड़ रही है उससे यह बात स्पष्ट हो गयी है उत्तराखण्ड की कथित हिन्दुवादी राज्य सरकार सनातन धर्म, सभ्यता और संस्कृति के ऊपर मंडराते खतरे के प्रति कितनी अदूरदर्शी व लापरवाह है और उसका जिला पुलिस प्रशासन सुप्रीम कोर्ट द्वारा परिभाषित कानून को कितना समझता है और उसका सम्मान करता है? धर्म संसद के वक्ताओं को हरिद्वार जिला पुलिस प्रशासन ने जिस प्रकार जेहादियों के दबाव में आकर सुप्रीम कोर्ट द्वारा परिभाषित हेट स्पीट, ‘फेक स्पीट’ और ’फ्री स्पीच’ के अर्थ को समझे बिना गिरफ्तार किया उससे उनकी कानून के प्रति अज्ञानता और मनमानी का भी पर्दाफाश हो गया है। पुलिस की इस असंवैधानिक कार्यवाही ने भी हरिद्वार धर्म संसद को राष्ट्रीय स्तर पर चर्चा का विषय बनाने में अपना सहयोग प्रदान किया जिससे हरिद्वार जनपद की पुलिस की कार्यवाही की निन्दा हो रही है और उस पर सोशल मीडिया पर सवाल उठाये जा रहे है।
धर्मसंसद मंें वक्ताओं ने सनातन धर्म और राष्ट्र के ऊपर मंडराते खतरे के प्रति देशवासियों में जनजागरण चलाने का आह्वान किया गया था। वक्ताओं ने इतिहास को उद्धृत करते कहा कि किस प्रकार पूर्वकाल में बाहरी आक्राताओं ने भारत में आकर यहां की संस्कृति, सभ्यता का विनाश किया और मानवों पर अत्याचार किये। तलवार के बल पर धर्म परिवर्तन करने के लिए बाध्य किया गया और लाखों लोगों का कत्लेआम किया गया था और महिलाओं के प्रति जो अनाचार किया गया उसकी दुनिया में कोई अन्य मिसाल नहीं मिलती। भारत का विश्वविख्यात नालन्दा विश्वविद्यालय जिसमें दुनिया भर से लोग शिक्षा ग्रहण करने आते थे जिसमें सभी विषयों की बहुमूल्य लाखों पुस्तकें थी आक्राताओं द्वारा आग लगा दी गई थी और जो लगातार तीन महीने तक जलता रहा था। देश की सनानतनी संस्कृति के प्रतीक मन्दिरों को किस प्रकार लूटा और तोड़ा गया इससे जानने के लिए इतिहास को पढ़ने और जानने के लिए कहा गया जिससे वर्तमान पीढ़ी को यह पता चल सके कि हमारे देश कितना भव्यशाली था। यही नहीं भारत विभाजन के समय जेहादियों ने जो नरसंहार किया गया और 1990 में अपने ही देश के कश्मीर राज्य में ढाई हजार कश्मीरी पंडितों की जिस प्रकार हत्यायें कर तीन लाख कशमीरियों को उनके मूल स्थान से बेदखल कर खुले आसमान में रहने के लिए मजबूर कर दिया गया बताया गया था। इस प्रकार इतिहास का संदर्भ देकर वक्ताओं ने यह जनाने का प्रयास किया कि किस प्रकार से सच्चे पैगम्बर के अनुयायियों को दबाकर मार कर इस्लामी कट्टरपंथियों ने कुरान में कही गई बातों की मनमानी व्याख्या कर दुनिया में मारकाट मचा रखी है और जेहाद के नाम पर तरह-तरह के आतंकी संगठन बना कर दुनिया पर अपना हुक्म चलाने की वकालत करते चले आ रहे है उससे सावधान रहने की आवश्यकता है।
धर्म संसद में यह भी जानकारी दी गई कि किस प्रकार वर्तमान समय में भारत में हिन्दू अल्पसंख्यक होता जा रहा है? डेमोग्राफी में परिवर्तन होने से देश को किन-किन खतरों का सामना करना पड़ सकता है। देश के 9 राज्यों में सनातन धर्म के मानने अल्पसंख्यक हो गये है इसके बावजूद बहुसंख्यकों (गैर हिन्दुओं) को अल्पसंख्यक मानकर उन्हें अतिरिक्त संसाधन मुहैया कराये जा रहे हैं जो देश के संविधान की खुल्लम खुला तौहीन है। यहां यह ध्यान देने वाली बात यह है कि संविधान में कई भी इस बात को परिभाषित नहीं किया गया है कि ‘अल्पसंख्यक’ किसे कहा जाये? मात्र धर्म के आधार पर किसी वर्ग विशेष को ‘अल्पसंख्यक’ मान लेने का कोई औचित्य है। यदि संयुक्त राष्ट्र संघ के संदर्भ में देखे तो कहा गया है कि यदि किसी देश में कुल आबादी में से किसी वर्ग की आबादी का 2 प्रतिशत या इससे कम है तो उसे अल्पसंख्यक का दर्जा दिया जाना चाहिए। इतनी स्पष्ट व्याख्या किये जाने के बावजूद भारत में संविधान की बात करने वाले आज तक यह नहीं बता पा रहे है कि लक्षद्वीप में 80 प्रतिशत, कशमीर में 70 प्रतिशत, पश्चिम बंगाल में 30 प्रतिशत, उत्तर प्रदेश में 22 प्रतिशत, केरल में 60 प्रतिशत आबादी वाला मुस्लिम वर्ग, मिजोरम में, 70 प्रतिशत ईसाई वर्ग कैसे अल्पसंख्यक माना जा रहा है और उसके लिए विशेष योजनाओं के तहत अन्य वर्ग से ज्यादा सुविधायें क्यों दी जा रही है? देश को विभाजन की और ले जाने वाली संविधान विरोधी कार्य किस प्रकार खुले आम किये जा रहे है? इस विषय पर न तो कोई सरकार बोलने को तैयार है और न ही माननीय सर्वोच्च न्यायालय इसे बताने को तैयार है कि केन्द्र सरकार इस प्रकार की संविधान विरोधी कार्य को कैसे अंजाम दे रही है।
मौजूदा दौर में देश के सामने जो खतरे नजर आ रहे है धर्मसंसद में उस पर भी चर्चा की गई और उससे किस प्रकार बचाव किया जाना चाहिए इसका जिक्र भी किया गया। कहा यह गया कि मौजूदा दौर में जिस प्रकार का खतरा दिखायी दे रहा है उसके लिए आत्मरक्षा की तैयारी की जानी चाहिए। यदि आपके ऊपर कोई हमला करता है तो आत्मरक्षा के लिए हथियार उठाना जरूरी है। भारतीय संस्कति, शास्त्रों में यही शिक्षा दी गई है। किसी व्यक्ति क्या की बात तो दूर, किसी भी राष्ट्र की रक्षा नीति यही होती है कि जब भी कोई दूसरा देश उसके ऊपर आक्रमण करें तो उसका प्रतिकार हथियारों से ही करना चाहिए। वर्तमान दौर में तो कई राष्ट्र इससे आगे जाकर संभावित खतरे का अनुमान लगाकर दुश्मन को तबाह कर देने की रणनीति पर काम कर रहे है। अन्तर्राष्ट्रीय आतंकी लादेन को इसी रणनीति के तहत अमेरिका द्वारा पाकिस्तान में धुसकर मार डाला गया था। ऐसी स्थिति में यदि भारत में भारत का संत समाज धर्म संसद में यह कहता है कि आत्मरक्षा में हथियार उठाकर दुश्मन को मारडालना आपका कर्तव्य व अधिकार है तो इसमें विरोध किस बात पर किया जाना चाहिए। इसमें संविधान विरोधी कोई बात कहां दिखाई दे रही है। धर्म संसद में संतों द्वारा कहीं गई इन बातों को लेकर जिस प्रकार एक वर्ग विशेष के लोग वामपंथियों और कट्टरपंथियों के उकसाने में आकर संतों पर मुकदमें दर्ज करा रहे है वह उचित नहीं है। वामपंथी और कांग्रेस के लोग जो 2014 के बाद जनता द्वारा हाशिये पर धकेल दिये गये है देश में अराजकता पैदा करने की कोशिश कर रहे हैं और कट्टरपथियों को भड़काकर सनातनियों को डराने का काम कर रहे है। देश की जनता को ऐसी देश विरोधी ताकतों से सतर्क रहने की आवश्यकता है। धर्म संसद भारत में अनादिकाल से आयोजित होती चली आ रही है।उत्तराखण्ड पुलिस प्रशासन संतों का जिस प्रकार अनावश्यक रूप से उत्पीड़न कर रहा है उत्तराखण्ड सरकार को उसका संज्ञान लेना चाहिए। विचार मंथन करने पर किसी प्रकार प्रतिबन्ध लगाना संविधान की मूल भावना से खिलवाड़ करना है जिसे किसी स्थिति में स्वीकार किये जाने की गुजांईश नही है। (लेखक स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं।)


धर्म संसद पर इतनी हाय तौबा क्यों!
