सनातन धर्म में गोत्रों की संख्या आठ है, जो निम्न महान ऋषियों के नाम पर जाने जाते हैं।
विश्वामित्र, जमदग्नि, भारद्वाज, गौतम, अत्रि, वशिष्ठ, कश्यप। इन सप्तऋषियों और आठवें ऋषि अगस्त गोत्रों का अपना एक विशेष महत्त्व होता है आपस्तम्ब धर्मसूत्र कहता है कि ‘संगौत्राय दुहितरेव प्रयच्छेत्” (समान गौत्र के पुरुष को कन्या नहीं देनी चाहिए)।
देश के अन्तरराष्ट्रीय ख्याति प्राप्त वैज्ञानिक और सीसीएमबी (सेंटर आफ सेलुलर एण्ड मोलीक्यूलर बायोलाजी) हैदराबाद के पूर्व निदेशक डा. लालजी सिंह ने एक ही गोत्र में विवाह को वैज्ञानिक आधार पर अमान्य करते हुए कहा कि यदि समगोत्र विवाह को रोका न गया तो आने वाली पीढि़यों को हम बड़ी आनुवंशिक बीमारियों से नहीं बचा सकते हैं। अपने व्याख्यान में बताया कि हर जाति और गोत्र के जीन अलग-अलग होते हैं। मनुष्य में पांच हजार बीमारियों की संभावनाएं रहती हैं।
उन्होंने यह डीएनए और अन्य जांचों के आधार पर सिद्ध किया है कि एक ही गोत्र में विवाह से शारीरिक रोग, अल्पायु, कम बुद्धि, रोग निरोधक क्षमता की कमी, मस्कुलर डिस्ट्रॉफी, अपंगता, विकलांगता सामान्य विकार होते हैं। मेडिकल अनुसंधानो द्वारा, कोरोनरी हृदय रोग, स्ट्रोक, कैंसर, गठिया, द्विध्रुवी अवसाद (डिप्रेशन), दमा, पेप्टिक अल्सर, और हड्डियों की कमजोरी. मानसिक दुर्बलता यानी कम बुद्धि का होना भी ऐसे विकार हैं जो प्रजनन से जुडे पाए गए हैं।
इसलिए हिन्दू विवाह अधिनियम 1955 की धारा 11 के तहत समगोत्रीय शादी मान्य नहीं मानी जाती। अतः हिन्दू अपने गोत्र के सदस्यों से शादी करना वर्जित मानते हैं।
Dr. (Vaid) Deepak Kumar*
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