हरिद्वार। विश्व हिन्दू परिषद की हरिद्वार में चली दो दिवसीय बैठक में कई महत्वपूर्ण मुद्दों पर चर्चा की गयी। बैठक में संतों ने अपनी बात भी रखी। संस्कार, संस्कृति, कुटुम्ब समेत वर्तमान के ज्वलंत मुुद्दों पर खुलकर चर्चा हुई, कई प्रस्ताव भी पास किए गए। अमुमन कुछ मुद्दे बैठक मंे ऐसे थे, जो प्रत्येक बैठक में होते हैं। किन्तु कुछ महत्वपूर्ण मुद्दे ऐसे भी हैं जिन पर कभी भी चर्चा नहीं की और जानकर भी इन मुद्दों को बैठक से दूर रखा। जबकि कुछ मुद्दों पर चर्चा करना वर्तमान हालातों में आवश्यक है।
विहिप हमेशा से ही संतों को साथ लेकर चला है। प्रत्येक बैठक संतों की मौजूदगी में ही होती है। बैठक में ज्वलंत मुद्दों पर निष्कर्ष के लिए संतों की राय ली जाती है। उसके बाद विहिप आगे कदम बढ़ाती है।
सनातन संस्कृति में संतों का विशेष स्थान है। संस्कृति को अक्षुण्ण बनाए रखने में संतों ने महती भूमिका का निर्वहन किया है। संस्कृति व सनातन को बचाने के लिए आवश्यकता पड़ने पर संतों से शास्त्र के साथ शस्त्र भी उठाए हैं। कई लड़ाईयां भी लड़ी हैं। इसी कारण से अखाड़ों की स्थापना की गयी।
संतों की पीठ को न्याय पीठ भी कहा जाता था। पूर्व में जब भी कोई विवाद की स्थिति उत्पन्न होती थी, तो संत उसका समाधान करते थे। संतों में विवाद होने पर शंकराचार्य पीठ न्याय पीठ के रूप में कार्य करती थी और अपना निर्णय सुनाती थी। आज हालात यह है कि संतों की सर्वोच्च शंकराचार्य पीठ न्याय पीठ होते हुए भी न्यायालय की शरण लेने को मजबूर है, फिर आम संत की तो बात ही क्या। हालात यह है कि आज न्यायालय में जितने भी मुकद्में हैं उनमें से अधिकांश संतों के विवाद से जुड़े हुए हैं। ऐसे में संतों से न्याय की उम्मीद आज के हालातों में करना भी बेमानी है।
वहीं आज भगवा धारण कर कुछ कालनेमि बड़े संतों की श्रेणी में स्वंय को रखने लगे हैं। स्थिति यह है कि जिन संतों पर सनातन, संस्कृति, संस्कार आदि की रक्षा की जिम्मेदारी है वह ही इनको पलीता लगाने का काम कर रहे हैं। बात हरिद्वार नगरी की करें तो कोई मठ-मंदिर ऐसा बचा होगा, जहां विवाद न हो। सम्पत्ति के लिए दर्जनों संतों की अब तक हत्या की जा चुकी है। कई धार्मिक सम्पत्तियों पर भगवाधारण करने वालों ने कब्जा किया हुआ है। दूसरे की सम्पत्ति पर कब्जा कर उसको बेच देना इनके बाएं हाथ का खेल बनकर रह गया है। प्रापर्टी डीलर, रियल स्टेट, दलाली, ठेकेदारी, दूसरों की सम्पत्तियों पर कब्जा करना, भजन छोड़ राजसत्ता की चमचागिरि करना, बहला फुसलाकर लोगों से धन ऐंठना, सत्ता से नजदीकी बनाकर दूसरों को मुर्ख बनाकर धन ऐंठना आदि जो काम एक गृहस्थ के लिए भी वर्जित हैं वह भागवा धारण कर किए जा रहे हैं। शराब, शबाब, कबाब में भी यह पीछे नहीं हैं। इन हालातों में सबसे अधिक संस्कृति का नाश तो भगवा की आड़ लेकर कुछ कालनेमि कर रहे हैं। यहां तक की लोगों ने धन कमाकर अपना परिवार तक पालने का काम भगवे की आड़े लेकर किया जा रहा है। संन्यासी होते हुए भी भरा-पूरा परिवार कथित भगवाधारी पाल रहे हैं। ऐसे में संस्कृति की रक्षा की दुहाई वह भी ऐसे लोगों की उपस्थिति में कैसे संभव है। संस्कृति की रक्षा की बात इन हालातों में करना भी बेमानी है। ऐसे में विहिप क्यों नहीं इन मुद्दों को अपने एजेंडे में शामिल करती, जिससे इन पर चर्चा हो और सनातन तथा संस्कृति को गर्त में ले जाने वालों का पर्दाफाश हो और इनके खिलाफ कार्यवाही कर सनातन की जड़ों को और मजबूत किया जा सके।
हास्यासप्रद यह है कि बैठक में उपस्थित रहकर बड़ी-बड़ी संस्कृति और सनातन के संबंध में बातें करने वालों की असलियत जानने के बाद भी उन्हें तवज्जो दी जाती है। कुल मिलाकर बैठक में दूध की रखवाली बिल्ली के जिम्मे सौंपने वाली कहावत को चरितार्थ करने के सिवाय कुछ नहीं हैं। जो वास्तव में संत हैं। उनकी बातों को ना तो सुना जाता है और ना ही उनको तवज्जो दी जाती है। ऐसे में संस्कृति, सनातन और हिन्दुत्व की दुहाई देना स्वंय से ही बेमानी करने जैसा है। इस पर विशेष मंथन की आवश्यकता है। आज हम सनातन को दूसरों से खतरा बताकर उसकी रक्षा करने की बात करते हैं, वास्तव में देखा जाए तो सनातन को खतरा किसी बाह्य से नहीं अपने ही अंदर बैठे कालनमियों से है। जब तक इनका इलाज नहीं होगा सनातन और संस्कृति को मजबूत नहीं किया जा सकता।


