हरिद्वार। स्वंय को धर्म का झंडाबरदार कहने वाले कथित भगवाधारी ही धर्म को कलंकित करने के काम करने में जी जान से लगे हुए हैं। ऐसे में धर्म का उत्थान कैसे संभव है। बस इनका एक ही धर्म है पैसा, पैसा और पैसा। वह किसी भी तरीके से आए केवल इनको धर्म की आड़ लेकर पैसा ही चाहिए। इसी पैसे की चाह में कोई पुरी से गिरि बन जाता है तो कोई बिना संन्यास धारण किए संन्यासी हो जाता है। बच्चांे वाला वरिष्ठ संत हो जाता है। परिवार से दूर रहने का फरमान जारी करने वालों के चेले-चपाटे घर बसाए हुए हैं। यहां तक ही ऐसे कथित भगवाधारियों के बच्चे भी घर-आंगन की शोभा बढ़ा रहे हैं। यहां तक की कुछ ऐसे हैं, जिन्होंने संतान तो पैदा कर दी, किन्तु आज वह सड़कों पर आवारा की भांति घूमने को मजबूर हैं। ऐसा नहीं की सभी भगवाधारी इसी श्रेणी के हैं। कुछ भगवाधारी ऐसे हैं जिन्होंने समूचे भगवे को कलंकित करने का कार्य किया है।
उससे भी बड़ा सवाल की सब कुछ जानने के बाद भी अच्छे संत ऐसे लोगों के खिलाफ कुछ बोलने को तैयार नहीं होते, जिससे ऐसे भगवाधारियों के हौंसले बुलंद हो रहे हैं। और जनता का बेवकूफ बनाकर ऐसे संत-महंत ऐश का जीवन यापन कर रहे हैं। कभी अखाड़ों की सम्पत्ति को बेचकर अपना उल्लू सीधा कर लिया जाता है तो कभी लोगों को ठग कर। ऐसे भगवाधारी भी यहां पर मौजूद हैं जो जिसका एक बार ले लें फिर उसे लौटाने का नाम नहीं लेते। ऐसे संतों के सताए हुए कपडे़ के व्यापारी, फूल-माला वाले, दूध वाले, ना जाने कितने ऐसे हैं जो अपने द्वारा दिए गए सामान का पैसा मिलनंे की आस लगाए हुए बैठे हैं, किन्तु भगवाधारी ऐसे की शर्म तो उन्हें आती नहीं। इतना ही नहीं कई एक ऐसे हैं जो दूसरों की सम्पत्ति व जमीनों पर कब्जा करने में सबसे आगे रहते हैं। जो पैसा ये लोग अखाड़ों व लोगों से लूटकर कमाते हैं, उसके प्रभाव से ये ऐसे लोगों को भी अपने माया जाल में फंसा लेते हैं की इन पर कोई कार्यवाही तक नहीं होती। अब अखाड़ों की जमीनों पर बने अर्पाटमेंट का ही मामला ले लीजिए। 100 रुपये के स्टाप्म पर लिख दिया संत जी ने पूरा फ्लैट और लगा दिया सरकार को लाखों का चूना और ज्ञान ऐसा देंगे की मानों इनके जैसा धर्मात्मा दूसरा कोई पैदा ही नहीं हुआ होगा।
एक तो ऐसे भगवाधारी हैं जिनको सन्यास किसने दिया, कब भगवा धारण किया, पता ही नहीं। कभी लड़की को भगा ले जाने वाले ये बाबा आज बड़े ट्रस्ट का आनन्द ले रहे हैं। आलम यह है कि किसी को झूठे मुकद्में में जेल भिजवाना, हत्या तक करवा देना तो इनके बांए हाथ का खेल है। मजेदार बात तो यह की ऐसे भी इस भीड़ में शामिल हैं जो दूसरे की सम्पत्ति को दूसरे के नाम खिलने में भी संकोच नहीं करते। बावजूद इसके ये स्वंय को सबसे बड़ा धर्मसुधारक व धर्म धुरंधर कहने से थकते नहीं। यदि ज्ञान की बात करें तो ये ज्ञान के मामले में शून्य ही हैं। बिडम्बना यह कि जो सच्चे संत हैं, ज्ञानी हैं, उपासक हैं और धर्म के मार्ग का अनुसरण कर रहे हैं, उन्हें ये लोग अपने पास बैठाना तक भी पसंद नहीं करते। यहां तक की उन्हें पूछने वाला तक कोई नहीं। आश्रम-अखाड़ों में भी उनकी दुर्गति है।
ऐसा नहीं की शासन-प्रशासन को ऐसे कालनेमियों के बारे में जानकारी नहीं है। बस कोई अपने ट्रासंफर से डरता है तो किसी को अपना वोट बैंक खिसकने का डर है। इसका फायदा उठाकर कालनेमि आनन्द का जीवन यापन कर रहे हैं। जो की सनातन के लिए सबसे बड़ा खतरा है। जो