क्रिसमस —वह दिन जब जीसस क्राइस्ट का जन्म हुआ। क्रिसमस और जीसस एक-दूसरे से गहराई से जुड़े हुए हैं, क्योंकि जीसस आए, तभी क्रिश्चियन आए। आज हम कहते हैं—यह क्रिश्चियन है। लेकिन जीसस से पहले क्रिश्चियन नाम की कोई पहचान नहीं थी। एक व्यक्ति आया, और उसके जीवन से एक पूरी परंपरा जन्म ले गई।
संसार में कहीं भी जब कोई फूल खिलता है, तो उसकी सुगंध पूरे संसार में फैल जाती है। फूल अपने लिए नहीं खिलता, उसकी खुशबू अपने आप ही फैल जाती है। जिसने यह जान लिया कि मैं इस नश्वर शरीर के भीतर अमर आत्मा हूँ—जीसस ने जिसे ‘वॉटर’ कहा—उसका फूल खिल गया। और ऐसे ही खिले हुए फूलों में से एक अत्यंत प्यारा फूल थे जीसस।
जीसस ने अपने पूरे जीवन में बार-बार एक ही बात कही—प्रेम ही परमात्मा है। “लव योर नेबर”, यानी अपने पड़ोसी से प्रेम करो। ये उनके सबसे प्रिय शब्द थे। जब कोई ऐसा व्यक्ति, जिसने जीवन का सत्य जान लिया हो, संसार में आता है, तो उसकी खुशबू फैलने में समय लगता है। क्यों? क्योंकि वह जिस धर्म की बात करता है, उसे संसार तुरंत समझ नहीं पाता।
जीसस ने साफ कहा—अगर तुम्हारे मन में किसी के लिए नफरत है, तो तुम मेरे क्रिश्चियन नहीं हो सकते। यही जीसस की शिक्षा थी। लेकिन जब उन्होंने यह घोषणा की कि मैं परमात्मा का बेटा हूँ, तो बहुतों को इससे कष्ट हुआ। लोगों ने कहा—अगर परमात्मा का बेटा सजीव होकर सामने आ गया, तो फिर मूर्ति पूजा का क्या होगा?
अक्सर धर्म के भीतर वही लोग असहज हो जाते हैं, जो धर्म को साधन नहीं, बल्कि माया बना लेते हैं। ऐसे लोगों ने एक षड्यंत्र रचा। उस समय के रोमन गवर्नर के पास जाकर कहा गया कि जीसस धर्म का अनादर कर रहा है, अपने को भगवान का बेटा और यहूदियों का राजा कहता है, इसलिए उसे दंड दिया जाए।
गवर्नर ने कहा—मुझे इसमें कोई अपराध नहीं दिखता। लेकिन भीड़ के दबाव में एक प्रथा के अनुसार निर्णय लिया गया। उस दिन ‘पास ओवर डे’ था, जब दो कैदियों में से एक को जनता माफ कर सकती थी। एक ओर था अत्याचारी बाराबास, दूसरी ओर जीसस। उम्मीद थी कि जनता जीसस को चुनेगी, लेकिन आश्चर्यजनक रूप से भीड़ ने कहा—बाराबास को छोड़ दो और जीसस को सूली पर चढ़ाओ।
यहीं से जीसस की सूली का मार्ग तय हुआ। जब उन्हें सूली पर ले जाया जा रहा था, तो कहा जाता है कि ब्रह्मांड ने पूछा—तुम क्या चाहते हो? जीसस का उत्तर था—पिता, इन्हें माफ कर दो, ये नहीं जानते कि ये क्या कर रहे हैं। जिस दिन इन्हें समझ आएगी, उस दिन ये पछताएँगे।
आज दो हजार साल बाद भी सवाल वही है—क्या हमने जीसस की सूली से कुछ सीखा? उन्होंने “लव योर नेबर” और “लव इज़ गॉड” के लिए अपने प्राण दिए। आज जीसस का परिवार सवा सौ करोड़ से भी अधिक है, लेकिन क्या उनका प्रेम हमारे भीतर है?
आज जागने का दिन है। आज जीसस का दिन है। केक काटो, फूल चढ़ाओ, खुशियाँ मनाओ। लेकिन सच्चा क्रिसमस तभी होगा, जब हम स्वयं फूल बनें—प्रेम, क्षमा और करुणा का फूल।
इस अधर्म से ऊपर उठो। जीसस के प्रेम को जानो। जब हर व्यक्ति में वही एक आत्मा दिखने लगे, वही एक ‘वॉटर’ सबमें बहता दिखाई दे—तभी जीसस से, परमात्मा से सच्चा मिलन होगा। और तभी हमारा जीवन वास्तव में सफल होगा।
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