हरिद्वार में कोरोना विस्फोट के लिए भी प्रशासन की लापरवाही जिम्मेदार
हरिद्वार। कुम्भ का मुख्य शाही स्नान सम्पन्न हो गया है। इसी के साथ संन्यासियों का कंुभ भी समाप्त हो गया। छावनियों से नागा संन्यासियों के तम्बू अब उखड़ने भी लगे हैं। हालांकि यदि कुंभ भव्यता के साथ होता तो संन्यासियों के तंबु उखड़ना शुरू नहीं होते। संन्यासियों के तंबु उखड़ने का प्रमुख कारण कोरोना तो है ही साथ ही भक्तों के न आने से आमदनी में भी काफी असर पड़ना है। कोरोना के कारण मुख्य शाही स्नान पर श्रद्धालुओं की भारी कमी रही। यदि देखा जाए तो जो भीड़ दिखायी दी वह अखाड़ों के स्नान के कारण ही दिखायी दी। उसके इतर कुछ नजर नहीं आया। जो संत अब अपना सामान समेटने लगे हैं उन्हें कोरोना की चिंता सता रही है। बीते तीन दिनों में हरिद्वार में करीब 13 सौ मामले कोरोना के आ चुके हैं। ऐसे में सभी इसी सोच में हैं की कहीं वे कोरोना की गिरफ्त में न जा जाएं। वैसे अखाड़ों में कई संत कोरोना पाॅजिटिव मिल चुके हैं। हालांकि अभी कुंभ की औपचारिक घोषणा नहीं हुई है। कुंभ का पर्व 30 अप्रैल तक चलेगा। साथ ही बैरागी, उदासी व निर्मल अखाड़े के संतों के डेरे लगे रहेंगे। बैरागी अखाड़े 27 अप्रैल को चैत्र पूर्णिमा का शाही स्नान करने के बाद ही विदा होंगे।
कुंभ के दौरान कोरोना का विस्फोट होने के पीछे प्रशासन की लापरवाही की साफ नजर आयी। प्रशासन ने आम आदमी पर कोरोना की गाइड लाइन का शिंकजा कसा जबकि संतों से इसका पालन करवाने में प्रशासन ने हीलाहवाली की।
शाही स्नान के दौरान अधिकांश बिना मास्क के दिखायी दिए और सामाजिक दूरी की तो जमकर धज्जियां उड़ी। बार्डर पर आम आदमी को बिना रिपोर्ट के आने पर वापस भेज दिया गया, जबकि संतों पर इसे लागू नहीं किया गया। यही कारण रहा की कुंभ में कोरोना का विस्फोट इन्ही की देन है। इतना ही नहीं मेला प्रशासन और सरकार ने कुंभ के आयोजन को केवल संतों का आयोजन भर बना दिया। जबकि कुंभ सभी सनातन धर्मावलम्बियों का पर्व है। जिस प्रकार से वैशाखी का मुख्य स्नान पर्व मेला प्रशासन ने तमाम इंतजामो ंके साथ सम्पन्न करवाया और कुंभ की सफलता के लिए स्वंय अपनी पीठ थपथपायी, देखे तो हरिद्वार में बिना कुंभ के आयोजित होने वाले लक्खी मेलों के कहीं इससे अधिक भीड़ जुटती थी, जिसमें न के बराबर इंतजाम होते थे और आम जनता को कोई खास परेशानी नहीं उठानी पड़ती थी। जितनी भीड़ का मेला प्रशासन ने दावा किया वह कहीं नजर नहीं आयी। यदि प्रत्येक अखाड़ों के स्नान में संतों व भक्तों की संख्या मिलाकर दस हजार मान लिया जाए तो भी 13 अखाड़ों के हिसाब से यह संख्या एक लाख 30 हजार से अधिक नहीं बैठती। वहीं स्थानीय व बाहरी श्रद्धालुओं की संख्या दो लाख और मान ली जाए तो भी जितना प्रशासन ने दावा किया उतना नहीं होता है। जिस प्रकार से हरिद्वार की सड़के स्नान पर्व के दौरान खाली पड़ी रहीं उसको देखते हुए स्नान करने वालों की संख्या का आंकड़ा किसी भी लिहाज से 5 लाख से अधिक नहीं बैठता। जबकि कुंभ के बिना पड़ने वाली सोमवती व अन्य स्नान पर्वों पर यह संख्या कहीं अधिक हो जाती है।