गंगा का जल करता है वैक्सीन का कार्य
हरिद्वार। शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती के शिष्य स्वामी अवमुक्तेश्वरानंद सरस्व्ती महाराज ने कहाकि कुंभ समाप्ति की घोषणा एक षडयंत्र है। कुंभ को बदनाम करने के लिए ऐसा किया जा रहा है।
प्रेस को जारी अपने संदेश में उन्होंने कहाकि कुंभ जब होता है तो उस काल में गंगा का जल वैक्सीन जैसा कार्य करता है। यह अमृतत्व इसी रूप में दिखायी देता है। गंगा का जल संक्रामक बिमारियों से लड़ने की शरीर को शक्ति देता है। उन्होंने कहाकि हरिद्वार कुंभ क्षेत्र है। यहां अमृत की बूंदे छलकी हुई है। ऐसे में यहां कोई व्यक्ति कैसे बीमारी से ग्रसित होकर मर सकता है।
उन्होंने प्रयागराज के विगत कुंभ में 35 वैज्ञानिकों द्वारा किए गए शोध के परिणामों से अवगत कराते हुए कहाकि कुंभ स्नान एक प्रकार से प्राकृतिक टीकाकरण है। अतः देखा जाए तो कुंभ स्नान से संक्रमण बीमारियों का रोकथाम होता है। यह संक्रमण बीमारियों पर नियंत्रण करता है। इस बात को डॉक्टर वाचस्पति त्रिपाठी ने शोध व प्रमाणों के आधार पर सिद्ध किया और तीसरे विश्व वेद विज्ञान सम्मेलन पुणे में एक शोध पत्र पढ़ । पूरे शोध पत्र को प्रयागराज में संपन्न हुए कुंभ के लिए बनाए गए वेबसाइट में दुनिया को बताने के लिए सरकार ड्वार्ट सम्मिलित किया गया। उन्होंने कहाकि शोध में पाया गया कि कुंभ स्नान करने वालों की इम्युनिटी स्तर, रक्त परीक्षण के बाद बहुत ज्यादा बढ़ गया। इसी कड़ी में जब डॉक्टर वाचस्पति ने अपनी जांच करायी कुंभ स्नान के पहले और बाद में, तो पाया कि लगभग 50 फीसदी की इम्यूनिटी लेवल में वृद्धि हुई।
उन्होंने कहाकि आज समाचार पत्रों और टीवी चैनल से पता चला कि अखाड़ा परिषद के सर्वोच्च संत करोना पॉजिटिव हो गए, कई संत करोना पॉजिटिव हो गए परंतु मैं दावे के साथ कह सकता हूं किसी को गंभीर लक्षण या खतरनाक लक्षण नहीं होगा। कुंभ स्नान के जल को परीक्षण किया जाए उसमें करोना वायरस के सभी स्ट्रेन मौजूद मिलेंगे, परंतु वह टीकाकरण के लिए तो पर्याप्त हैं, परंतु इनफैक्ट करने के लिए, व्यक्ति को बीमार करने के लिए पर्याप्त नहीं है। उन्होंने देश के वैज्ञानिक, योजनाकार, नीति निर्धारण कर्ता, प्रमुख नेताओं, मुख्यमंत्री, प्रधानमंत्री एवं राष्ट्रपति को कुंभ स्नान से अमृत लाभ की बात पर ध्यान देकरं इस विषय पर शोध को आगे बढ़ाने की अपील की।
उन्होंने कहाकि पाश्चात्य दर्शन पर शोध तो विकसित देशों ने किया है, परंतु भारतीय दर्शन पर शोध भारत में तो होना ही चाहिए। आईसीएमआर संस्थान पाश्चात्य दर्शन आधारित सोच सिद्धांतों का समर्थन करती है यह एक गंभीर व विचारणीय तथ्य है।