हरिद्वार। अखिल भारतीय अखाड़ा परिषद के दो फाड़ होने व नई कार्यकारिणी का गठन हो जाने के बाद कुछ संतों के अरमानों को करारा झटका लगा है। दूसरे गुट के अल्पमत मत में आ आने के बाद अब वे असहाय महसूस कर रहे हैं। कारण की वर्षों से चला आ रहा पद अब चला गया है।
बता दें कि परिषद के संतों में परिषद पदाधिकारियांे की मनमर्जी के चलते रोष व्याप्त था। इसी मनमर्जी के कारण बैरागी संतों की उपेक्षा की गयी। जिस कारण से उन्होंनें कुंभ के दौरान परिषद से स्वंय को अलग कर लिया। उसके बाद बदले समीकरणों के चलते बैरागी परिषद में शामिल होने के लिए राजी हो गए। बैरागी अखाड़ांे का कहना था कि जब शुरू से परिषद में अध्यक्ष व महामंत्री पद में से एक बैरागी व एक पद संन्यासी अखाड़ों के पास रहता चला आया है तो उसी परम्परा का निर्वहन किया जाना चाहिए। जिसके चलते पद की लोलुपता के कारण बैरागी संतों को दूर रखने की रणनीति पर कार्य किया गया। वहीं सूत्र बताते हैं कि दूसरे गुट के संतों ने परिषद के अध्यक्ष पद पर भी नए अध्यक्ष का चयन कर लिया था। जिसकी भनक अन्य संतों को लग गयी और वे परिषद के विरोध में आ खड़े हुए। अखाड़ा परिषद के दो फाड़ हो जाने से कई संतों के अरमानों पर पानी फिर गया है। एक तो वर्षों से चला आ रहा पद गया दूसरा यह कि जिस व्यक्ति को अध्यक्ष बनाने की रणनीति पर कार्य किया जा रहा था उस पर भी पानी फिर गया है। ऐसे में अब सभी का एक साथ आने के अलावा कोई दूसरा विकल्प शेष नहीं रहा है। वहीं कुछ और अखाड़े भी अब नयी परिषद में शामिल हो सकते हैं।

अखाड़ा परिषदः- दिल के अरमां आसूंओ………


