दूसरों को सत्य का अनुसरण का उपदेश देने वाले स्वंय कर रहे असत्य का पालन
हरिद्वार। स्वामी रूद्रानंद गिरि महाराज ने कहा है कि सनातन धर्म के हा्स का जिम्मेदार हम आज तक विधर्मियों को ठहराते आए हैं। वास्तव में देखा जाए जो सनातन के सर्वनाश के लिए मूल रूप से भगवा ही जिम्मेदार है। जो असत्य का आचरण कर जनता को सत्य के मार्ग का अनुसरण करने का संदेश देते हैं।
उन्होंने कहाकि झूठे पद की लोलुपता के कारण भगवे का रूप आज भगवाधारियों के कारण ही बदलता जा रहा है। उन्होंने स्वंय को जगद्गुरु शंकराचार्य कहने वाले स्वामी राजराजेश्वराश्रम महाराज पर हमला बोलते हुए कहा कि 1 जनवरी को होने वाले समारोह में उन्हें शारदा पीठीधीश्वर शंकराचार्य स्वामी राजराजेश्वराश्रम कहकर सम्बोधित किया गया है। जबकि शारदा पीठ के शंकराचार्य जगद्गुरु शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती जी महाराज हैं। फिर स्वामी राजराजेश्वराश्रम अपने आपको शारदा पीठ का शंकराचार्य कैसे कह सकते हैं। उन्होंने कहाकि वे ही लोग फजी तरीके से पद का इस्तेमाल करते हैं जो अधर्म के मार्ग का अनुसरण कर रहे हैं।
स्वामी रूद्रानंद गिरि महाराज ने उच्च पदों पर बैठे संतों को भी आड़े हाथों लेते हुए कहाकि जो सनातन के रक्षक स्वंय को कहते हैं वे क्यों ऐसे मसलों पर चुप्पी साधे हुए हैं। आज देश में शंकराचार्य के कुकुरमुत्ते की भांति हर गली-मोहल्ले मंें पैदा हो रहे हैं। उनकी चुप्पी केे कारण ही भगवे में अधर्म की प्रवृत्ति बढ़ती जा रही है। स्थिति यह है कि दूसरों को सत्य के मार्ग पर चलने की सीख देने वाले स्वंय असत्य का अनुसरण कर रहे हैं तो ऐसे में सनातन धर्म की रक्षा कैसे की जा सकती है। उन्होंने कहाकि जो वास्तविक रूप से पदों पर आसीन हैं और वे चुप हैं तो इसका अर्थ यह हुआ की वे भी अधर्म के साथ खड़े हुए हैं। जबकि ऐसे लोगों को इसके खिलाफ आगे आना चाहिए था। उन्होंने कहाकि जो सत्य की पताका को लेकर चलने का दंभ भरते हैं जब वहीं उसके विपरीत आचरण कर रहे हैं तो धर्म के सर्वनाश को कैसे रोका जा सकता है। उन्होंने 1 जनवरी को होने वाले प्रथम संन्यास दीक्षा समारोह पर सवाल खड़े करते हुए कहाकि आज तक 1 जनवरी को जन्मोत्सव का आयोजन होता चला आ रहा था, आज संन्यास दीक्षा कैसे हो गयी। कहाकि यदि प्रथम संन्यास दीक्षा समारोह का आयोजन किया जाना था तो उस एक वर्ष पूर्ण होने पर आयोजन किया जाना चाहिए था। उन्होंने कहाकि फर्जीवाड़ा कर धर्म को कलंकित करने के साथ जनता को भ्रमित करने का कार्य किया जा रहा है। ऐसी स्थिति में धर्म के सर्वनाश को होने से नहीं बचाया जा सकता। और यह तब तीव्र गति से होता है जब स्वंय धर्म के रक्षक उसके विनाश के कारक हों।