हरिद्वार। स्वामी ज्योतिर्मयानंद गिरि शिष्या ब्रहमलीन महामण्डलेश्वर स्वामी गणेशानंद गिरि ने श्री पंचायती अखाड़ा निरंजनी के सचिव श्री महंत रविन्द्रपुरी महाराज पर उत्तरी हरिद्वार स्थित आश्रम पर कब्जा कर लेने का आरोप लगाते हुए दावा किया कि उक्त आश्रम का महंत उन्हें बनाया गया है। लेकिन उनके हरिद्वार से बाहर जाने के दौरान अखाड़े के सचिव श्रीमहंत रविन्द्रपुरी ने षडयंत्र कर करोड़ो के आश्रम पर कब्जा कर लिया है। आरोप लगाया कि इस सम्बन्ध में अखाड़ा परिषद भी किसी प्रकार की कोई कारवाई नहीं कर रही है। प्रेस क्लब में पत्रकारों से वार्ता करते हुए स्वामी ज्योर्मियानंद गिरि ने कहाकि मैने 7 अप्रैल 1986 को हरिद्वार के पूर्ण कुम्भ मेला में श्री मोहनानंद आश्रम भीमगोड़ा में स्वामी गणेशानंद महाराज से सन्यास दीक्षा ली थी। गुरूदेव के साथ रहकर कथा कर सभी संस्थाओ को चलाया। 16फरवरी 1996 को पटियाला पंजाब में कथा हो रही थी। स्वामी गणेशानंद महाराज पूर्णाहूति के समय महाशिवरात्रि को ब्रह्मलीन हो गए। पटियाला से पार्थिव शरीर हरिद्वार भीमगोड़ा लाया गया। श्री निरंजनी अखाड़े के मुख्य महंत शंकर भारती, रामकिशन गिरि व अन्य संत मण्डली के साथ ज्योतिमयानंद ने समस्त विधि से नीलधारा में जलसमाधि दी थी। गुरू भाई ब्रह्मलीन सुदर्शनानंद महाराज हरिद्वार में रहते थे। गुरूदेव का स्वास्थ्य ठीक ना होने के कारण वे भरूच में मुख्य संस्था में रहते थे। 23 जून 2014 को गुरू भाई का शरीर शान्त हो गया। उस समय मै हरिद्वार आयी, किन्तु मुझे कोई कागजात नहीं दिया गया और सभी कागजात निरंजनी अखाड़े ले गए। हरिद्वार से मुरादाबाद के पास राजा का सहसपुर में अपनी संस्था में जाकर षोडसी भण्डारा किया। तब से आज तक मेरी संस्थाओं में कथित रूप से अखाड़ा सचिव श्री महंत रविन्द्रपुरी ने अपना नाम लिख दिया है। जबकि निरंजनी अखाडे का प्रमाण पत्र, सभी कुम्भ मेले में दी गई दक्षिणा की रसीद मेरे पास है। उन्होने आरोप लगाया कि अखाड़े के सचिव द्वारा जबरन आश्रम को अपने नाम कराकर खुर्द-बुर्द करने का प्रयास किया जा रहा है। उन्होंने चेतावनी दी कि वे आश्रम को खुर्द-बुर्द नही होने देंगी।


निरंजनी अखाड़े के सचिव रविन्द्र पुरी पर लगाया जबरन आश्रम पर कब्जा करने का आरोप


