हरिद्वार। पंचदशनाम आवाह्न अखाड़े के राष्ट्रीय प्रवक्ता श्री महन्त चेतनानन्द गिरि महाराज ने कहा कि जब हम गुरू के पास दीक्षा ग्रहण करने आते हैं, तो गुरू हमारे समस्त परिवार का पिण्ड दान कराके और उसके बाद खुद हमारा पिण्ड दान करते हैं। इस प्रक्रिया के बाद व्यक्ति को गेरुआ वस्त्र धारण करने के लिए दिया जाता है। परन्तु कुछ समय से कुछ लोग कुम्भ में अपने भक्तों को गेरुआ वस्त्र प्रसाद कि भांति बांट रहे हैं। और अपने भक्तों को अपनी लोलुपता के कारण उनको अपने आसन और सिंहासन पर बैठा रहे है ।
उन्होंने कहा कि विरक्त साधु, नागा संन्यासियों को नीचे बैठा रहे है । श्री महन्त चेतनानन्द गिरि महाराज ने कहा कि मैं शंकर परम्परा का संन्यासी हूं । और यह शंकर परम्परा को नाश होते देखना विधि ने शायद वर्तमान में हमारे भाग्य में लिखा दिया । मन व्यथित हैं और आक्रोश भी, क्योंकि यह सब मौन हो कर देख रहे हैं । यह हमारे नागा संन्यासियों का और संन्यास धर्म का अपमान है। उन्होंने संतों से आग्रह किया कि कृप्या अपने भक्तों को भक्त ही बनाकर रखें। या फिर उनका विधिवत संन्यास करायें । आप उनको अपना इन्वेस्टर बनाकर गेरुआ कपड़ा पहना कर धर्म और संन्यास का नाश मत करिए।