स्वामी अविमुक्तेश्वरानदं की ताजपोशी के विरोध में आई शंकराचार्य परिषद
हरिद्वार। शंकाराचार्य परिषद के अध्यक्ष व शांभवी पीठाधीश्वर स्वामी आनन्द स्वरूप ने ज्योतिष्पीठ के नव नियुक्त शंकराचार्य अविमुक्तेश्वरानंद के पद ग्रहण पर प्रश्नचिह्न खड़ा किया है। स्वामी आनंद स्वरूप ने कहा कि इतनी भी क्या जल्दी थी कि एक ओर जगद्गुरु शंकाराचार्य स्वरूपानंद जी का शव पड़ा था और दूसरी ओर नए शंकराचार्य की ताजपोशी हो रही थी। उन्होंने कहाकि जिस तरह से गांव के प्रधान से लेकर देश के प्रधानमंत्री तक के चयन का एक निश्चित मानक और प्रक्रिया है उसी तरह भगवान आदि शंकराचार्य द्वारा निर्मित मठाम्नाय महानुशासन द्वारा निर्धारित प्रक्रिया से शंकराचार्य पद हेतु चयन होता रहा है और इस बार भी होना चाहिए। जब हिन्दू विद्वान अनुमोदन करें और शेष पीठों के शंकराचार्य अभिषेक करें तभी नए शंकराचार्य अपना पद ग्रहण कर सकते हैं।
स्वामी आनन्द स्वरूप ने कहाकि स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद को न तो किसी विद्वत संस्था ने अनुमोदित किया है और न ही दोनांे शंकराचार्यों का समर्थन प्राप्त है। यहां तक कि पूरी पीठ के शंकाराचार्य स्वामी निश्चलानन्द महाराज खुलकर अपना विरोध प्रकट कर चुके हैं। ब्रह्मलीन शंकाराचार्य स्वामी स्वरूपानंद जी अजीवन कहते रहे कि उनका कोई उत्तराधिकारी नहीं है। यह कितना हास्यास्पद है कि हिन्दुओं के सर्वोच्च धर्मगुरु की नियुक्ति एक सचिव करता हो और चार गिने चुने बिके लोग इसका समर्थन करते हों।
उन्होंने कहाकि आज पूरे विश्व के सनातन धर्मावलंबी आहत हैं। अविमुक्तेश्वरानंद जन्मना ब्राह्मण हैं की नहीं इस बात पर भी संदेह है। वैसे तो धर्मसंघ को भी शंकाराचार्य बनने का अधिकार नहीं है, किन्तु शाङ्कर परम्परा अनुसार यदि पूर्व शंकाराचार्य किसी को शंकाराचार्य बनाकर नहीं गए तो मठ का सारा कार्य भार अन्य शंकाराचार्य करते हैं और अन्य शंकाराचार्य को ही अधिकार है कि वह उन के शिष्यों में से या अपने शिष्यों में से या फिर कोई अन्य योग्य व्यक्ति को शंकाराचार्य बनाएं। शाङ्कर परम्परा प्राप्त सर्व शास्त्र विशारद ब्राह्मण सन्यासी हो वही शंकाराचार्य बनने का अधिकारी है। केवल शंकाराचार्य पट्टाभिषेक करने के अधिकारी हैं अन्य किसी का भी पट्टाभिषेक मान्य नहीं हो सकता। उन्होंने कहाकि भारतीय सनातन परम्परा में आचार्य वही माना जाता है जो श्रीमद्भगवद्गीता, ब्रह्मसूत्र व उपनिषदों का स्वतंत्र भाष्य कर चूका हो, इस मानक पर भी अविमुक्तेश्वरानंद कहीं नहीं टिकते। ऐसी दशा में इनको शंकराचार्य बना देना किसी भी दशा में उचित नहीं है।


