टपकेश्वर मंदिर में शिवरात्रि पर्व पर बही भक्ति की धारा

टपकेश्वर महादेव मंदिर में महाशिवरात्रि के पर्व पर विशेष अनुष्ठान आयोजित किए जाते हैं। यूं तो वर्ष भर ही बाबा की पूजा आराधना का सिलसिला निरंतर जारी रहता है। बावजूद इसके शिवरात्रि के महापर्व को विशेष रूप से मनाया जाता है। महाशिवरात्रि के दिन भोले बाबा की विशेष पूजा आराधना की जाती है। इस दिन बड़ी तादाद में श्रद्धालु बाबा के दर्शन के लिए यहां पहुंचते हैं। वहीं, टपकेश्वर मंदिर परिसर में एक विशेष मेले का भी आयोजन किया जाता है। यह मेला एक हफ्ता तक आयोजित होता है। पौराणिक मान्घ्यता के अनुसार महाशिवरात्रि के दिन ही शिव पहली बार प्रकट हुए थे। मान्यता है कि शिव अग्नि ज्योर्तिलिंग के रूप में प्रकट हुए थे, जिसका न आदि था और न ही अंत। शास्त्रों के अनुसार भोले बाबा के अभिषेक की वस्तु अलग-अलग है। लेकिन भगवान शंकर इतने दयालु है कि श्रद्धा मात्र से चढ़ाया गया एक लोटा जल ही भोले बाबा को प्रसन्न कर सकता है। जिससे सारी मनोकामना पूर्ण होती है। टपकेश्वर मंदिर के श्रीमहंत किशन गिरि महाराज ने बताया कि भोले बाबा की प्रिय वस्तु पंचामृत, भांग, धतूरा, बेल पत्री और पंच पुष्प हैं जो अर्पित किया जाता है। बताया कि भोले बाबा के शिवलिंग पर दूध, शहद से अभिषेक कराने से सभी मनोकानाए पूरी हो जाती हैं। अभिषेक करते समय ओम नमः शिवाय का जाप करना चाहिए।
देहरादून स्थित टपकेश्वर महादेव मंदिर की कई पौराणिक मान्यताएं है। मान्यता है कि सतयुग में गुरु द्रोणाचार्य ने भोले बाबा की आराधना, तमसा नदी के किनारे टपकेश्वर महादेव मंदिर वाले स्थान पर गुफा में की थी। धार्मिक ग्रंथों में मान्यता है कि भोले बाबा भू-मार्ग से यहां पहुंच गुरु द्रोणाचार्य को धनुर विद्या का ज्ञान दिया करते थे। इसके बाद दूसरे युग यानि त्रेता युग में टपकेश्वर के स्थान पर गुरु द्रोणाचार्य के पुत्र अश्वत्थामा ने तप किया और जरूरत पड़ने पर जब उन्होंने भोले बाबा की आराधना की तो भगवान से अश्वत्थामा को दूध की धारा का आशीर्वाद प्राप्त हुआ था। जिसके बाद यह स्थान दूधेश्वर मंदिर के नाम से विख्यात हुआ। इसके बाद तीसरे युग यानि द्वापर युग में जब अन्य भक्तों ने बाबा की पूजा आराधना की और समय बदला तो फिर टपकेश्वर महादेव के इस पावन धाम में पहाड़ से टपकने वाला दूध का स्वरूप बदल गया और अब मौजूदा समय में पहाड़ से भोले बाबा के ऊपर पानी की बूंदे टपकती है। जिस मंदिर को अब टपकेश्वर मंदिर के रूप से जाना जाता है। श्रीनगर में भी महाशिवरात्रि की धूम दिखाई दी।

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