हरिद्वार। स्वामी रूद्रानंद गिरि महाराज शिष्य स्वामी परमेश्वरानंद गिरि महाराज ने बताया कि नील पर्वत के नीचे स्थापित सिद्धपीठ श्री दक्षिण काली मन्दिर का कौल परम्परा में अपना विशिष्ट स्थान है। इस पीठ की स्थापना तंत्र सम्राट स्वामी कामराज महाराज ने की थी। तब से लेकर इस पीठ पर कौलाचार्य के ही पीठ को संभालने की परम्परा रही है। महाराज बामाखेमा, तोतापुरी महाराज, स्वामी रामकृष्ण परमहंस जैसे महान संतों की परम्परा इस पीठ से जुड़ी रही।

उन्होंने कहाकि कौलाचार्य कामराज जी महाराज के द्वारा स्थापित और पूजित श्री दक्षिण काली मन्दिर तत्कालीन उत्तर प्रदेश सरकार के गजट नोटिफिकेशन सं 1285/13/5 नवम्बर1927 के अनुपालन में श्री दक्षिण काली मन्दिर हेतु 99 वर्ष का स्थाई पट्टा पर्वत तलहटी में नीलधारा तट चण्डीघाट हरिद्वार के तत्कालीन महन्त कौलाचार्य श्री कालिका नंदजी ब्रह्मचारी महाराज के नाम पर हुआ था। सन् 1935 मंे श्री कालिका नंद जी ब्रह्मचारी महाराज का स्वर्गवास हो गया।कौलाचार्य कालिका नंदजी के बाद श्रीदक्षिण काली मन्दिर हरिद्वार के कौलाचार्य परंपरानुसार देवीनंद ब्रह्मचारी उनके बाद तारानंद ब्रह्मचारी उनके बाद कृष्णानंद ब्रह्मचारी महन्त बनें। कृष्णानंद ब्रह्मचारी के 3 कौल परंपरा के शिष्य रामचरित्रानंद ब्रह्मचारी, केशवानंद ब्रह्मचारी व सुरेशानंद ब्रह्मचारी थे। कृष्णानंद ब्रह्मचारी के बाद रामचरित्रानंद ब्रह्मचारी को महन्त बनाया गया। कुछ समय बाद रामचरित्रानंद ने कौल परंपरा को त्यागकर दूसरी परंपरा में दीक्षा लेकर श्यामानंद सरस्वती हों जाने से केशवानंदजी ब्रह्मचारी को महन्त बनाया गया। सुरेशानंद ब्रह्मचारी को श्रीपंच अग्नि अखाड़े में विशेष जरुरत होने से सेवा में भेजा गया। जब केशवानंद ब्रह्मचारी की हत्या हो गयी तब सुरेशानंद ब्रह्मचारी को इस पीठ का महन्त बनाया गया। उन्होंने बताया कि सुरेशानंद ब्रह्मचारी बहुत समय तक श्रीपंच अग्नि अखाड़े की कार्यकारिणी के सदस्य भी रहे हैं। उन्होंने अपने जीवन काल में कौल परंपरा के शिष्य भी बनाए थे। सुरेशानंद ब्रह्मचारी का 2 अगस्त 2006 को हरिद्वार में निधन हो गया। उन्होंने बताया कि यह उन्होंने सुरेशानंद महाराज के साथ काम किया था। संन्यास लेने से पूर्व उनका नाम रूद्रानंद ब्रह्मचारी था। उन्होंने ही इस पीठ के इतिहास की उन्हें जानकारी दी थी। इससे स्पष्ट है कि इस पीठ पर कौल परम्परा का संत ही पीठ का संचालन कर सकता है, किन्तु वर्तमान में पीठ के नियमों की अवहेलना कीजा रही है। उन्होंने कहाकि वर्तमान में पीठ पर विराजमान स्वामी कैलाशानंद गिरि बताएं की वह कौन सी परम्परा से हैं।