हरिद्वार। श्री पंचायती अखाड़े के पूर्व आम मुख्यतयार वयोवृद्ध महंत मदन मोहन गिरि महाराज ने कहाकि वर्तमान में अखाड़े का स्वरूप बदल गया है। परम्पराएं ताक पर रखी जा चुकी हैं। यही कारण है कि उन्होंने अखाड़े से किनारा कर लिया है। उन्होंने कहाकि अखाड़े में आचार्य मण्डलेश्वर बनाने की एक परम्परा रही है। मण्डलेश्वर बनाने से पूर्व व्यक्ति को संन्याय दिया जाता था। उसके बाद सभी कार्य पूर्ण करने के बाद उज्जैन कुंभ में आचार्य बनाया जाता था। उन्होंने बताया कि निरंजनी अखाड़े में सबसे पहले सूरतगिरि बंगला के श्रीमहंत नृसिंह गिरि जी महाराज को आचार्य मण्डलेश्वर बनाया गया था। उनके बाद उनके शिष्य स्वामी महेशानंद गिरि महाराज को आचार्य पद पर बैठाया गया। उनके पश्चात स्वामी कृष्णानंद गिरि महाराज को आचार्य पद पर अभिषिक्त किया गया। उन्होंने बताया कि स्वामी कृष्णानंद गिरि आचार्य महेशानंद गिरि के शिष्य नहीं थे। उन्हीं के कहने पर बनारस के तोताराम मठ से इनको लाया गया। और संन्याय दीक्षा दी गयी। इसके बाद उज्जैन में स्वामी कृष्णानंद को आचार्य मण्डलेश्वर बनाया गया। उनके पश्चात स्वामी पुण्यानंद गिरि महाराज को आचार्य बनाया गया। कुछ विवादों के कारण आचार्य स्वामी पुण्यानंद महाराज ने पद का त्याग कर दिया। उन्होंने बताया कि इस पर उन्होंने एतराज भी जताया। उनका कहना था कि अखाड़े का आचार्य पद प्रतिष्ठित पद होता है। आचार्य पद कोई खरबूजे की दुकान नहीं जो सस्ता-मंदा जैसा मिले वैसा खरीद लेते हो। उन्होंने कहाकि स्वामी पुण्यानंद महाराज के आचार्य पर छोड़ने के बाद अखाड़े ने स्वामी प्रज्ञानानंद गिरि महाराज को इलाहाबाद में आचार्य बनाया, किन्तु आचार्य की चादर विधि बनारस में हुई। अब हरिद्वार कुंभ में अखाड़े ने आचार्य प्रज्ञानानंद महाराज को भी अलग कर नया आचार्य ढूढ़ लिया। उन्होंने कहाकि जो भी पदाधिकारियो को पैसा दे देगा वही आचार्य बन जाएगा। हरिद्वार में नया आचार्य बनाया गया है। आने वाले प्रयागराज के कुंभ में फिर नया आचार्य बना लिया जाएगा। स्वमी मदनमोहन गिरि महाराज ने कहाकि आचार्य पद खरबूजे की तरह कर दिया है। जो दे उसे ही आचार्य बना दो। उन्होंने कहाकि अखाड़े में जो पद्वति वर्तमान में चल रही है वैसे पद्वति उन्होंने अपने जीवन में कभी नहीं देखी। पूर्व में मण्डलेश्वर बनने पर किसी से भी कोई पैसा नहीं लिया जाता था, किन्तु आज हालात बदल गए हैं। इस कारण उनका अखाड़े से मोह भंग हो गया है। वे संत हैं और अपनी मस्ती में रहकर साधना कर रहे हैं।