ये मत देखो अँधेरा कहाँ तक है, बस अपना दिया जला लो : शिवकृपानंद स्वामी
हिमालयीन ध्यानयोग महाशिविर के पाँचवें दिन बड़ी सामूहिकता में लोगों ने प्रवचन और ध्यान का लाभ लिया

शिवकृपानंद स्वामी की जन्मस्थली नागपुर में स्वामीजी के सान्निध्य में पहली बार महाशिविर का आयोजन हुआ है। हिमालय के महर्षि शिवकृपानंद स्वामीजी प्रेरित हिमालयीन ध्यानयोग महाशिविर का 19 दिसंबर से बहुत ही दिव्य वातावरण में प्रारंभ हुआ है। पाँचवें दिन उपस्थित मेहमान रेशिमबाग के विधायक मोहन मते, एग्रीकल्चर साइंटिस्ट रिक्रूटमेंट बोर्ड के सदस्य डॉ. बी. एस. दिवेदी, पुणे महानगरपालिका के डेप्युटी कमिश्नर अजीत देशमुख जी, सोलारिस इंडस्ट्री के एमडी सत्यनारायण नुवाल, श्री शिवकृपानंद स्वामी फाउंडेशन के निर्देशक महेश पटेल, हिमालयीन ध्यानयोग, जर्मनी के साधक वुल्फगैंग कोच तथा गुरुपुत्र एवं श्री शिवकृपानंद स्वामी फाउंडेशन के निर्देशक अंबरीष जी के करकमलों से दीप प्रज्वलित करके कार्यक्रम का आरंभ हुआ। गुरुमाँ के आगमन के बाद साधकों द्वारा बजाए गए शंखनाद के साथ स्वामीजी का आगमन हुआ।
स्वामीजी ने अपने प्रवचन के प्रारंभ में बताया कि मंदिर में भगवान के पास लोग माँगने के लिए जाते हैं पर भगवान के पास माँगो मत क्योंकि मंदिर की मूर्ति में किसी सिद्ध पुरुष ने अपनी अंतर्मुखी स्थिति प्रदान की है, तो उस मूर्ति के दर्शन करके आप भी अंतर्मुखी हो सकते हैं। अगर आप माँगोगे तो आपका चित्त मूर्ति की ऊर्जा पर नहीं होगा, आपकी समस्या पर होगा और आप वहाँ की ऊर्जा ग्रहण कर नहीं पाएँगे। मंदिर में जाकर परमेश्वर को धन्यवाद करो कि आपने मुझे बहुत कुछ दिया है। अगर ऐसा सोचोगे तो आप प्रसन्न होंगे और उस मूर्ति की एनर्जी को ग्रहण कर पाओगे।
स्वामीजी ने अहंकार के बारे में बताया कि ‘मैं (अहंकार)’ और ‘वो (परमात्मा)’ एकसाथ कभी नहीं रह सकते। या तो आपके अंदर ‘मैं’ रहेगा या फिर ‘वो’ रहेगा, इसीलिए मैं कहता हूँ योग परमात्मा से मिलने का माध्यम है। ‘मैं’ योगासन कर रहा हूँ, ‘मैं’ प्राणायाम कर रहा हूँ; सब जगह ‘मैं’ आता है। जहाँ ‘मैं’ है, वहाँ योग नहीं है। तो आवश्यकता है उस अहंकार को समाप्त करने की। जैसे अँधेरा है तो क्या हम अँधेरे को समाप्त कर सकते हैं? नहीं। कितनी भी दूर चले जाए अँधेरा तो रहेगा। इसलिए जीवन में कभी यह मत सोचो कि अँधेरा कहाँ तक है, आप बस, अपना दिया जला लो। जैसे अपना दिया जलाओगे आपके आसपास प्रकाश ही प्रकाश रहेगा। इसीलिए जीवन में अँधेरे को मिटाने की कोशिश मत करो, बस, अपना दिया जला लो। अपनी आत्मा को जागृत करो। जैसे अंधकार का अस्तित्व मिट जायेगा उसी तरह से अहंकार का भी कोई अस्तित्व नहीं रहेगा। और इसके अलावा स्वामीजी ने बताया कि भारत का भविष्य उज्ज्वल है।
प्रवचन के अंत में स्वामीजी ने ‘मैं एक पवित्र आत्मा हूँ, मैं एक शुद्ध आत्मा हूँ’, यह मंत्र से ध्यान करवाया। ध्यान में सभी को बहुत ही सुंदर अनुभूतियाँ हुईं।
शिविर में आध्यात्मिक प्रदर्शनी का आयोजन भी किया गया है। आध्यात्मिक प्रदर्शनी में ‘चैतन्य’, ‘योग से समग्र योग’, ‘बाल संस्कार’, ‘मंगलकारी कृषि’, ‘पंच महाभूत के निदर्शन’ जैसे कई विषयों पर चित्रों और प्रयोग के साथ बहुत ही अच्छे से समझाया गया है। इस प्रदर्शनी का लाभ सुबह 9:00 से शाम 5:00 बजे तक कोई भी व्यक्ति ले सकता है। कल नेपाल के सांसद हरि ढकाल और योगेश भट्टराय ने इस प्रदर्शनी की डेढ़ घण्टे मुलाकात लेकर प्रदर्शनी के सभी विषय को समझा और अभिभूत होकर प्रदर्शनी का बहुत ही अच्छा प्रतिभाव दिया।


