हरिद्वार। शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती महाराज के ब्रह्मलीन होने के बाद उनके स्थान पर शंकराचार्य की नियुक्ति विवाद का विषय बन गई है। द्वारिका व ज्योतिष पीठों में से सबसे अधिक विवाद ज्योतिष पीठ पर स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद सरस्वती की नियुक्ति को लेकर उत्पन्न हुआ है। जहां सुप्रीम कोर्ट ने उनके पट्टाभिषेक पर रोक लगा दी है। वहीं संतो ंका एक धड़ा भी उनके पट्टाभिषेक के खिलाफ खड़ा है। जबकि स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद सरस्वती के शिष्यों का कहना है कि 17 अक्टूबर होने वाला कार्यक्रम पट्टाभिषेक नहीं अभिनन्दन समारोह है। पट्टाभिषेक तो पहले ही किया जा चुका है। उन्होंने सुप्रीम कोर्ट के फैसले का स्वागत किया है। बता दें कि स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती के समय से ही ज्योतिष पीठ पर विवाद चल रहा है और मामला आज भी सुप्रीम कोर्ट मंे विचाराधीन है।

वहीं दो फाड़ हो चुकी अखिल भारतीय अखाड़ा परिषद का एक गुट स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद के शंकराचार्य बनने को फर्जी बता रहा है। वहीं दूसरे गुट ने इस विवाद से दूरी बनाई हुई है। अखिल भारतीय अखाड़ा परिषद के एक गुट के अध्यक्ष व निरंजनी अखाड़े के सचिव रविन्द्र पुरी महाराज किसी भी कीमत पर स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद को शंकराचार्य मानने के लिए तैयार नहीं है। उन्होंने स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद को फर्जी शंकराचार्य बताया।

जबकि शंकराचार्य का पद वसीयत या गुरु-शिष्य परम्परा का नहीं है। शंकराचार्य का पद योग्यता व शास्तार्थ के आधार पर स्वंय को सिद्ध कर अपने को श्रेष्ठ साबित करने का विषय है। इसके साथ ही आदी शंकराचार्य द्वारा प्रतिपादित किए गए नियमों का पालन व उन पर खरा उतरना आवश्यक है।
ऐसे में सवाल उठता है कि असली शंकराचार्य कौन है और नकली कौन इसका फैसला कौन करेगा। यदि स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद सरस्वती फर्जी शंकराचार्य हैं तो स्वामी राजराजेश्वराश्रम महाराज क्या हैं, जो स्वंय को शारदा-द्वारिका पीठाधीश्वर बताते हैं, जिन्हें उनके अखाड़े ने मान्यता दी हुई है। इसके साथ ही सुमेरू पीठाधीश्वर स्वामी नरेन्द्रानंद को अखाड़ा परिषद के महामंत्री श्रीमहंत हरिगिरि महाराज ने जूना अखाड़े की छड़ी यात्रा में बतौर शंकराचार्य भेजा है। ऐसे में किसी को असली और किसी को नकली बताना केवल समय देखकर पासा बदलने वाली स्थिति ही कही जाएगी। इतना ही नहीं देश भर में अखाड़ों के आचार्यों से करीब पांच गुना शंकराचार्य बने हुए हैं। इनमें कौन असली है और कौन नकली इनके लिए भी अखाड़ों को आगे आना चाहिए।
जबकि वरिष्ठ संतों का कहना है कि शंकराचार्यों की नियुक्ति अखाड़ों का विषय है ही नहीं। बताया कि पूर्व में संन्यासियों को शंकराचार्य दीक्षा दिया करते थे, किन्तु किसी विवाद के चलते शंकराचार्यों ने इससे दूरी बना ली। जिस कारण से अखाड़ों ने भी शंकराचार्यों से दूरी बनाते हुए अपने-अपने आचार्यों की नियुक्ति कर ली, तब से आचार्य ही दीक्षा देते चले आ रहे हैं और शंकराचार्यों को दरकिनार किया जा चुका है।


