शंकराचार्य भी मठाम्नाय व्यवस्था के अधीन: आनंद स्वरूप

शंकराचार्य के लिए योग्य व्यक्ति के नाम का चयन, कोर्ट अनुमति देगा तो करेंगे नाम को सार्वजनिकः आन्नद स्वरूप


शकराचार्य की नियुक्ति की प्रक्रिया को लेकर उपजे विवाद पर हुआ मंथन


धर्म नगरी काशी में पहली बार आदि शंकराचार्य द्वारा रचित मठाम्नाय अनुशासनम पर विमर्श किया गया। इस दौरान मौजूद संतों व विद्वानों ने कहा कि धर्माचार्यों में शंकराचार्य सर्वश्रेष्ठ हैं और शंकराचार्य भी मठाम्नाय व्यवस्था के अधीन हैं। विद्वत सभा ने इस दौरान धर्मादेश भी जारी किया है। जिसमें शंकराचार्य द्वारा रचित मठाम्नाय अनुशासनम की व्याख्या और शंकराचार्य के कर्तव्य, जीवनशैली, योग्यता और अर्हता को शामिल किया गया है। जिसे 127 नवम्बर को सुप्रीम कोर्ट में पेश कर धर्मादेश को लागू किए जाने का अनुरोध किया जाएगा।

रविवार को महात्मा गांधी काशी विद्यापीठ के मदन मोहन मालवीय हिंदी पत्रकारिता संस्थान में शंकराचार्य परिषद और अखिल भारतीय विद्वत परिषद की ओर से मठाम्नाय पुस्तक पर परिचर्चा हुई। अध्यक्षता करते हुए शंकराचार्य परिषद के अध्यक्ष स्वामी आनंद स्वरूप ने कहा कि आज से कई सौ वर्ष पहले आदि शंकराचार्य ने मठाम्नाय अनुशासनम की रचना की।
इसके अनुसार ही चारों पीठ पर शंकराचार्य का चयन और अभिषेक की परंपरा है। शंकराचार्य सभी धर्माचार्यों से श्रेष्ठ हैं और शंकराचार्य पर जो अनुशासन लागू होता है, वह मठाम्नाय है। कर्नाटक के दंडी स्वामी गोविंदानंद सरस्वती ने कहा कि आदि शंकराचार्य ने चारों पीठों के शंकराचार्य की जीवन शैली, योग्यता और अर्हता को 75 श्लोकों में समाहित किया है।

एक आचार्य दूसरे आचार्य की व्यवस्था में अतिक्रमण नहीं कर सकते हैं। अगर कभी धर्म का संकट उत्पन्न होता है, तो वह आपस में बातचीत करके इसका समाधान प्रस्तुत करेंगे। मुख्य अतिथि प्रो. जयशंकर लाल त्रिपाठी ने कहा कि आदि शंकराचार्य ने यह व्यवस्था तय कर दी थी कि एक आचार्य एक से अधिक पीठों का आचार्य नहीं होगा। यदि किसी शंकराचार्य की पीठ खाली है तो अल्पकाल के लिए कोई शंकराचार्य इसकी व्यवस्था देख सकते हैं। काशी विश्वनाथ मंदिर न्यास के अध्यक्ष प्रो. नागेंद्र पांडेय ने कहा कि सनातन धर्म में व्याप्त विकृतियों को खत्म करने के लिए समय-समय पर ऐसी विलुप्त प्राय पुस्तकों पर चर्चा होना जरूरी है।

चतुष्पीठ में शारदा मठाम्नाय, गोवर्धन मठाम्नाय, ज्योर्ति मठाम्नाय, और श्रृंगेरी मठाम्नाय की प्राचीन व्यवस्था को मठाम्नाय महानुशासनम ग्रंथ के अनुसार सर्व स्वीकृत किया जाए। किसी भी पीठ पर शंकराचार्य को लेकर कोई भ्रम व विवाद न रहे।

वर्तमान में मठों के केंद्र जहां हैं, वे मर्यादापूर्वक प्रतिष्ठित रहेंगे। मठों के क्रम, देवता, देवी में कोई बदलाव नहीं किया जा सकता है। एक आचार्य एक समय दो या तीन अलग गोत्रों को धारण नहीं कर सकता, न ही एक साथ दो या तीन संप्रदायों का अधिकारी बन सकता है। भ्रमणशील शंकराचार्य राष्ट्र की प्रतिष्ठा के लिए होते हैं। एक पीठ पर एक ही शंकराचार्य का अभिषेक किया जा सकता है। शांभवी पीठाधीश्वर स्वामी आन्द स्वरूप ने कहाकि सभा में जारी धर्माेपदेश को 17 नवम्बर को सुप्रीम कोर्ट में प्रस्तुत किया जाएगा। उन्होंने कहाकि उनका किसी व्यक्ति विशेष से कोई बैर नहीं है। आपत्ति केवल पीठ पर नियुक्ति के लिए अपनाई गई प्रक्रिया पर है और हमने ऐसा धर्माेपदेश तैयार किया है जो आने वाली समस्या का भी समाधान करेगा। उन्होंने बताया कि शंकराचार्य के लिए व्यक्ति के नाम का चयन कर लिया गया है, जिसे कोर्ट के समक्ष रखा जाएगा। यदि कोर्ट अनुमति देता है तो उस नाम को सार्वजनिक करेंगे।

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