हरिद्वार। इस्लाम छोड़ जितेन्द्र नारायण सिंह त्यागी बने वसीम रिजवी अब संन्यास लेने ला जा रहे हैं। संन्यास दीक्षा के बाद अब उनका नया नाम कृष्णानंद होगा। दशनाम में से कौन सा नाम उन्हें मिलेगा यह अभी स्पष्ट नहीं हुआ है। हालांकि कुछ लोग भारती नामा कह रहे हैं किन्तु भारती नामा गुरु से उन्होंने दीक्षा नहीं ली है। कौन सा नाम मिलेगा यह संन्यास के समय ही स्पष्ट हो पाएगा। खबर आई है कि वसीम रिजवी कृष्णानंद पुरी हो सकते हैं। इस संबंध में शाम्भवी पीठाधीश्वर स्वामी आनन्द स्वरूप ने रविन्द्र पुरी महाराज से रिजवी को संन्या देने की अपील की है।
यह बात तो रहीं नाम की। अब चर्चा करते हैं संन्यास की। एक समय था जब शिष्य योग्य गुरु की तलाश करता था और गुरु योग्य शिष्य की, किन्तु अब भेड़चाल हो चली है। कोई आओ कोई भी बन जाओ वाली स्थिति समाज में उत्पन्न हो गयी है।
यही कारण है कि शराब कारोबारी भी महामण्डलेश्वर बना दिए जाते हैं। इसके साथ ही संन्यास को अब दिखावा बना दिया गया है। पूर्व में संन्यास देने और लेने वाले दोनों विद्वान होते थे या फिर तपस्वी, किन्तु अब ऐसी स्थिति नहीं है। संन्यास दीक्षा में भी तपस्वी और विद्वान संतों का जमावड़ा हुआ करता था। अब स्थिति चाटुकारिता वाली हो गयी है। आज विद्वानांे की सभाओं के समक्ष नेताओं को मान्यता दी जाने लगी है। आलम यह है कि पहली चादर भी अब संन्यासी को नेता ही ओढ़ाने लगे हैं। ऐसे में संन्यासी में नेता के गुण आना भी स्वाभाविक है। पूर्व में शुभ मुहुर्त देखकर संन्यास दीक्षा दी जाती थी, अब मुहुर्त के स्थान पर नेताओं का समय कब मिलेगा इसकी प्रतीक्षा होती है। जैसा की वसीम रिजवी के संन्यास में हो रहा है। कहा जा रहा है कि संन्यास दीक्षा कार्यक्रम तीन दिनों तक चलेगा। इसके साथ ही वह तीन दिन कौन से होंगे यह मुख्यमंत्री का समय मिलने पर तय किया जाएगा। यानि की मोेक्ष के मार्ग को भी राजनैतिक रूप देने का कार्य किया जा जाने लगा है। आज संन्यास का मार्ग दिखावे और धन का बना दिया गया है। आज संन्यास में विद्वता से अधिक धन की प्रबलता हो गयी है। आज धनवंत संत को ही श्रेष्ठ व विद्वान माना जाने लगा है। तभी तो इसकी घोषणा गोस्वामी तुलसीदास महाराज ने चार सौ वर्ष पूर्व मानस में कर दी थी। गोस्वामी जी ने मानस में लिखा है तपसी धनंवत दरिद्र गृही, कलि कौतक तात ना जात कही।