हरिद्वार। यूं तो मौत सभी के लिए दुखदायी होती है। किन्तु कभी-कभी किसी की मौत किसी के लिए सुख का कारण भी बन जाती है। ऐसा तीर्थनगरी में हुआ है। यह ऐसे व्यक्ति के साथ हुआ जो जन्म-मृत्यु से स्वंय को दूर मानते हैं।
बता दें कि तीर्थनगरी में एक अखाड़े में चल रहे आपसी विवाद के कारण एक महंत को नजरबंद की तरह रखा हुआ था। आलम यह था कि अखाड़े में रहने वाले कुछ संतों को छोड़कर इसकी भनक भी नहीं थी। सूत्र बताते हैं कि ऐसा इसलिए किया गया था कि महंत के खिलाफ अखाड़े की ओर से कार्यवाही की जानी थी। जिसके चलते तमाम तरह की चर्चाए संतों के बीच हुई और लगभग महंत के निष्कासन पर मुहर भी लग गयी। सूत्र बताते हैं कि कुछ विशिष्ट संत महंत के बचाव में भी आए। इ सी दौरान अखाड़े से जुड़े पहले एक संत की मौत हो गयी। उसके बाद दूसरे ने दम तोड़ दिया। महंत के खिलाफ कार्यवाही की सुगबुगाहट लगते ही कुछ को स्थान छोड़कर चले गए, किन्तु उन्हें परोक्ष रूप से निष्कासन पर अपनी सहमति जता दी। सूत्र बताते हैं कि 20 जून को गंगा दशहरा पर्व पर अखाड़े में बैठक होनी थी और उसी में महंत के निष्कासन पर मुहर भी लगनी थी, किन्तु इसी बीच दो संतों की मौत हो जाने के कारण अखाड़े के संत एकत्रित नहीं हो सके और बैठक को फिलहाल टाल दिया गया है। सूत्रों के मुताबिक इस बीच कार्यवाही से बचने के लिए महंत ने काफी हाथ-पांव मारे, किन्तु जहां बचाव में कुछ संत उतरे तो वहीं विरोध में भी काफी स्वर उठे। फिलहाल बैठक संख्या बल न होने के कारण स्थगित की जा चुकी है और महंत जी को भी विदा कर दिया गया है। सूत्र बताते हैं कि आगामी बैठक पर महंत के निष्कासन पर मुहर लगना तय है। वहीं महंत के जाने के बाद एक और बड़े संत को बाहर का रास्ता दिखाने की तैयारी हो चुकी है। किन्तु महंत को बाहर करने के बाद उस पर कार्यवाही की जाएगी।

संत की मौत महंत के लिए बनी जीवनदायिनी


