कुंभ: भगवाधारियों ने पहुंचाया सनातन को नुकसान

पैसा कमाने और चाटुकारिता में मग्न दिखे कथित भगवाधारी


हरिद्वार।
शांभवी पीठाधीश्वर स्वामी आनन्द स्वरूप महाराज ने श्रीमहंत, मण्डलेश्वर, शंकराचार्य, जगद्गुरु के पदों की अखाड़ों में बिक्री होने का आरोप लगाकर एक नई बहस छेड़ दी है। जिसको लेकर सनातन के पतन का मुख्य कारण भी नजर आने लगा है। इसको देखते हुए यह कहना भी गलत नहीं होगा की जिनके कंधों पर सनातन की रक्षा का भार सौंपा गया था, वही उसे पलीता लगाने का कार्य कर रहे हैं। धर्मध्वज वाहक कहे जाने वाले संत व अखाड़े पैसों के लिए सनातन की कब्र खोदने का कार्य कर रहे हैं।


वैसे कुंभ में जहां आस्था का सैलाब उमड़ा और प्रगाढ़ आस्था लोगों में देखने को मिली उसको देखते हुए सनातन की जड़े मजबूत दिखायी देती हैं। मगर जब जड़ों में दीमक लग जाए तो वह वृ़क्ष कितने दिनों तक खड़ा रह सकता है। ठीक ऐसा ही कुंभ में भी देखने को मिला। जहां चंद रुपयों के लिए अयोग्यों को मण्डलेश्वर, जगद्गुरु, शंकराचार्य जैसे प्रतिष्ठ पदों पर आसीन कर दिया गया। हालांकि स्वामी आनन्द स्वरूप में पदों का मूल्य न के बराबर लगाया। जहां पद देने के लिए करोड़ों में सौदा होता हो वहां हजारों की बात बेमानी सी लगती है।

सनातन के झंडाबरदारों की करामात तो देखिए की चंद रुपयों के लिए ऐसों को मंडलेश्वर बना दिया गया, जिन्हें न वेद, वेदांत, उपनिषद व अन्य धर्म शास्त्रों का ज्ञान है, बल्कि सनातन का भी ज्ञान नहीं है। अधिकाशं को यह ही मालूम नहीं की हमारा धर्म क्या है। हम हिन्दू हैं, सनातनी है या फिर हमारा वैदिक धर्म है।


बीबी का होटलों में केक काटकर जन्मदिन मनाने वाले व पाश्चात्य संस्कृति से ओतप्रांेत होकर व्यवहार करने वाले को जगद्गुरु की उपाधि प्रदान कर दी गई। मजेदार बात यह कि जिसको जगद्गुरु बनाया गया वह शुद्ध हिन्दी तक नहीं बोल सकता। और उसे बना दिया जगद्गुरु।


यहां तक की अखाड़ों से ऐसे आचार्य बनाए हुए हैं, जिन्हें प्रेयस और पारस मंत्र के बीच का भेद भी मालूम नहीं हैं, जो यह कहते हैं कि अखाड़ों की स्थापना आदी शंकराचार्य ने की। इतना ही नहीं दशनाम का प्रादुर्भाव भी आदी शंकराचार्य द्वारा किया गया।
सोचिए जब अखाड़ों के आचार्य ऐसे होंगे तो वह क्या सनातन का भला कर पाएंगे और क्या समाज को दिशा देंगे।


व्यापार करने वालों को भी अखाड़ों ने शंकराचार्य व आचार्य बनाया हुआ है। जो अपराधी हैं वह समाज को ज्ञान बंटा रहे हैं। तीर्थपुरोहितों का कार्य अखाड़ों के आचार्य तक करने लगे हैं। जिन संन्यासी को कर्म काण्ड शास्त्रानुसार वर्जित बताया गया है वह कर्मकाण्ड करवाने में मस्त है। यह सब केवल पैसे के लिए किया जा रहा है।


कुछ अखाड़ों ने तो मर्यादाओं की सीमाओं को भी लांघ दिया। अखाड़ों में देवता के स्थान के बाद सबसे महत्वपूर्ण स्थान चेहरा-मोहरा होता है, जहां अखाड़ों के संत, मण्डलेश्वर व विशिष्ट लोग बैठते हैं और अखाड़े की कुंभ की गतिविधियों का संचालन होता है, किन्तु चेहरा-मोहरा पर अन्यों की ही भीड़ नजर आई। केवल और केवल कुंभ को येन-केन-प्रकारेण पैसा कमाने, पब्लिसिटी करने और अपना प्रभाव दिखलाने तक सिमटा दिया गया। विशिष्टजनों की चाटुकारिता भी भगवाधारियों द्वारा बड़े पैमाने पर देखने को मिली। भले ही कुछ संत कुंभ को लेकर बड़े-बड़े दावे करते हों, किन्तु कुंभ में इस बार सनातन संस्कृति का जो ह्ास भगवा वेशधारियों के द्वारा देखने को मिला इससे पूर्व कभी देखने में नहीं आया।


अब स्थिति यह आ गई है की वोट बैंक की राजनीति को दरकिनार कर सरकारों को सनातन को नुकसान पहुंचाने वाले कथित भगवाधारियों के खिलाफ ठोस कदम उठाना होगा, अन्यथा जिस प्रकार से यह सनातन का नाश करने में तूले हुए हैं कहीं ऐसा न हो की सनातन प्रेमी इनके ही खिलाफ बिगुल बजा दें। यदि ऐसा होता है तो यह सबसे लिए ही विनाशकारी होगा।

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