शास्त्रार्थ की चुनौती देने वाले नीलकंठ शास्त्री पर शास्त्री ने छोड़े कई अग्निबांण

स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद व स्वामी सदानदं पर बोला तीखा हमला


हरिद्वार।
हरवड, गुजरात के वेदांताचार्य नीलकंठ शास्त्री द्वारा सोशल मीडिया के माध्यम से स्वामी प्रज्ञानानंद सरस्वती महाराज को दी गई शास्त्रार्थ की चुनौती पर रूपेश शास्त्री ने पलटवार किया।


बता दंें कि 31 मार्च को स्वामी प्रज्ञानानंद सरस्वती महाराज का ज्योतिष, शारदा-द्वारिका पीठ पर शंकराचार्य के रूप में पट्टाभिषेक हुआ था। इसके बाद नीलकंड शास्त्री ने सोशल मीडिया पर स्वामी प्रज्ञानानंद सरस्वती महाराज पर तमाम तरह के आरोप लगाते हुए उन्हें शास्त्रार्थ की चुनौती दी थी। शास्त्रार्थ के लिए उन्होंने विषय भी प्रकट किया था। विषय था ब्रह्मसूत्र का चौथा सूत्र (तत्तु समन्व्यात)।


इसके बाद शास्त्रार्थ की चुनौती पर पं. रूपेश शास्त्री ने कड़ी प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए नीलकंठ शास्त्री को कहाकि स्वामी प्रज्ञानानंद सरस्वती महाराज के शंकराचार्य पद पर अभिषिक्त होने से यदि वे इतने की परेशान हैं और उन्हें शास्त्रार्थ करना है तो वह पहले गुजरात में ही स्वामी सदानंद से शास्त्रार्थ करें। जिस स्वामी सदानंद ने एक ब्राह्मण कन्या के साथ में कुकर्म किया। जब वह गर्भवती हुई तो उसकी अपने निजी सेवक दोनों भांजों से उसकी हत्या करवा दी। दोनों भांजे निजी सेवक जिनको आश्रम से सदानंद की कुटिया से गिरफ्तार किया गया। सदानंद को जगतगुरु शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती के प्रभाव से गिरफ्तारी से बचाया गया, किंतु केस अभी भी चल रहा है और दोनों निजी सेवक भांजे अभी भी जेल में हैं। क्या ऐसा कुकर्मी शंकराचार्य कहलाने योग्य है। कहा कि ऐसे पापाचारी से शास्त्रार्थ करो, जिसने आश्रम के कितने घरों को अपवित्र कर दिया, जिसके चलते एक समय प्रहलाद पटेल के भाई जालम सिंह ने इनको कितना मारा मारा था। सदानंद को मरा हुआ समझ कर छोड़कर चले गए थे।

शास्त्रार्थ अविमुक्तेश्वरानंद और सदानंद से करो जिन्होंने 2 साल तक जगतगुरु शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती को कैद में रखा। किसी से मिलने नहीं दिया। इसका प्रमाण जगतगुरु शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती के सबसे निकट रहने वाले कोलकातावासी पाटोदिया जी हैं। 2 वर्ष तक कैद में रखकर उनको मृत्यु तक पहुंचा दिया। कहाकि इसी कारण जगतगुरु रामभद्राचार्य महाराज को कहना पड़ा कि जगतगुरु शंकराचार्य जी की मृत्यु स्वाभाविक नहीं थी। ऐसे अस्वाभाविक मृत्यु को देने वाले अविमुक्तेश्वरानंद और सदानंद से शास्त्रार्थ करो, जिन्होंने इतना नीच काम किया की अपने गुरु के मृत् शरीर को सामने रखकर अपना पट्टाभिषेक करवाया।


पं. रूपेश शास्त्री ने कहाकि ऐसी स्थिति में गृहस्थी भी तेरह दिन इंतजार करता हैं। कहाकि कहा जा रहा है कि आचार्य पद एक दिन भी खाली नहीं रहना चाहिए। जबकि योग्य आचार्य के अभाव के चलते 150 वर्ष ज्योतिष पीठ की गद्दी खाली रही है। आज तक ऐसा कभी नहीं हुआ की आचार्य के मृत शरीर को सामने रखकर ऐसा पाप कर्म हुआ हो।ं पं. रूपेश शास्त्री ने कहाकि उस समय पर जब जगतगुरु शंकराचार्य जी अस्वस्थ हुए तब इन लोगों ने दबाव बनाकर दंड संन्यास की दीक्षा ले ली। अविमुक्तेश्वरानंद ने शुद्र वर्ण का होकर जगतगुरु शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती को स्वंय को ब्राह्मण बताया और दंड सन्यास ग्रहण करने का पाप किया।


उन्होंने कहाकि जगतगुरु शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती ने कभी भी किसी भी मंच पर इनको उत्तराधिकारी नहीं कहा, क्योंकि ब्रह्मचारी बनने के पहले ये उमाशंकर भांट के नाम से यह जाने जाते थे। कहाकि हनुमान घाट में एक दक्षिण भारतीय व्यक्ति रहता था, उनके पड़ोस में उसकी बेटी थी, ऐसा काशी के लोग कहते हैं कि इनका उससे प्रेम प्रसंग था, फिर भी इन्होंने ब्रह्मचारी दीक्षा ली। शंकराचार्य बनने के लालच में और अपनी प्रेमिका को अपने साथ में रखने का आश्वासन दिया। और फिर उसे हनुमान घाट स्थित अपने निवास पर रखा। तभी से जगतगुरु शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती ने श्री विद्या मठ का त्याग कर दिया और उसके बाद कभी ना जा सके। अंतिम समय में जगतगुरु शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती की इच्छा थी की श्री विद्या मठ केदारघाटी में रहे, लेकिन अविमुक्तेश्वरानंद की पाप लीला के चलते शंकराचार्य जी वहां न जा सके।


पं. रूपेश शास्त्री ने कहाकि स्वामी अविमुक्तेश्वरांनद व स्वामी सदानंद जो वसीयत बता रहे हैं, वह फर्जी है, क्योंकि उस वसीयत को लिखने वाले कोई वकील नहीं हैं। क्या जगतगुरु शंकराचार्य जी के पास में कोई अधिवक्ता नहीं थे, जो उस वसीयत को अविमुक्तेश्वरांनंद व उनकी कथित अघोषित पत्नी से लिखवाया गया और वह फर्जी वसीयत 2017 की है, क्योंकि 2020 में जब इन दोनों ने अपने-अपने को द्वारका और बदरीनाथ ज्योतिष पीठ का शंकराचार्य उत्तराधिकारी घोषित कर दिया था तब शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती महाराज को एक प्रेस नोट जारी करना पड़ा था, जिसमें उन्होंने स्पष्ट कर दिया था कि हमने अपना कोई उत्तराधिकारी और शंकराचार्य घोषित नहीं किया है, जो कह रहे हैंं वह अपने जिम्मेदारी पर कह रहे है।ं दोनों पीठों का संचालन हम स्वयं करते हैं। प्रेस विज्ञप्ति जारी कर देने के बाद वह वसीयत स्वत ही आप्रमाणिक सिद्ध हो जाती है।

उन्होंने कहाकि उस प्रेस नोट के बाद ही शुरू होता है शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती महाराज को प्रताड़ित करने का खेल। कहाकि उन्हें अंतिम समय तक खून के आंसू रूलाए गए। किसी से मिलने नहीं दिया गया। जिससे वह अपनी इच्छा किसी को व्यक्त न कर सकें। क्या ऐसे पापाचारी शंकराचार्य कहलने के योग्य हैं। उन्हांेने कहाकि इस प्रकार के खुलासे अब लगातार होंगे। कहाकि स्वामी प्रज्ञानानंद सरस्वती महाराज का ज्योतिष व द्वारिका-शारदा पीठ पर विधिपूर्वक अभिषेक हुआ है। जिस कारण से कुछ अधर्मी इसे पचा नहीं पा रहे हैं।

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