मठों की माया, मौत का संतों पर साया

हरिद्वार। अखिल भारतीय अखाड़ा परिषद के अध्यक्ष महंत नरेंद्र गिरि की संदिग्ध परिस्थितियों में मौत के बाद एक बार फिर से अखाड़ों और संतों के पास अकूत सम्पदा को लेकर सवाल खड़े होने लगे हैं। नर्रेन्द्र गिरि की हत्या भी सम्पत्ति विवाद की ओर ही इशारा कर रही है। नरेन्द्र गिरि ऐसे पहले शख्स नहीं हैं जिनकी इस प्रकार से मौत हुई हो। संतों में ऐसे कई मामले हैं जहां सम्पत्ति को लेकर उन्हें मौत के घाट तक उतार दिया गया। या फिर कुछ संत ऐसे हैं जो आज तक लापता हैं।
दुनिया को मोह माया से दूर रहने का उपदेश देने वाले संत खुद मोह माया के फेर में फंस हैं। साधना को छोड़कर साधन के पीछे भागने की परिणति ही इनकी मौत का कारण बनती जा रही है। नरेन्द्र गिरि ने आखिर ऐसा कदम क्यों उठाया, इसका खुलासा तो जांच के बाद ही हो पाएगा, किन्तु आज तक जो भी इस प्रकार के मामले सामने आए हैं वह कहीं न कहीं सम्पत्ति को लेकर ही हुए है। बात यदि संतनगरी हरिद्वार की करें तो यहां भी दर्जनों संत अपने जीवन से हाथ धो बैठे हैं। कुछ ऐसे भी हैं जिनका आज तक पता ही नहीं चल पाया है। इतना ही नहीं हरिद्वार की व हरिद्वार से बाहर की अदालतों में संतों के सम्पत्ति विवाद से जुड़े अनेक मुकद्में चल रहे हैं। बात हरिद्वार की करें तो संतों से जुड़े मुकद्मों की लम्बी फेहरिस्त है।
यह सब इस कारण से हुआ की साधना के लिए सब कुछ त्याग कर भागवा धारण करने वाले आज अखाड़ों की जमीनों को लेकर रियल स्टेट के कारोबार, प्रार्प्टी डीलिंग, दलाली, ट्रैवल्स एजेंसी, और सरकार और अधिकारियों के बीच सेंटिग-गेटिंग जैसे कार्य करने में मशगूल हो गए। जिसकी परिणति यह हुई की सतों को अपनी जान से हाथ तक धोना पड़ा। विडम्बना यह कि इतना सब होने के बाद भी कुछ भगवाधारी मोह माया का त्याग नहीं कर पा रहे हैं। यह कहा जा सकता है कि अपने प्रवचनों मात्र से ही किसी भी राह भटक चुके व्यक्ति को रास्ते पर ले आने वाले संत खुद रास्ता भटक गए हैं। इतना ही नहीं व्यापार के साथ संतों की जीवन शैली में भी बड़ा बदलाव आया है। आज संत जंगल की कुटिया छोड़कर फाइव स्टार सरीखे आश्रमों में आ बैठे हैं। आलिशान आश्रम, मंहगी गाडि़यों में घुमना इनकी नियति बन गयी है। यही सब कारण इनकी मौत के जिम्मेदार कहे जा सकते हैं।
अब तक हरिद्वार में करीब दो दर्जन के करीब संतों की हत्या की जा चुकी है। एक-दो मामलों को छोड़ दें तो किसी भी मामले में आरोपी गिरफ्त से बाहर ही रहे।
25 अक्टूबर 1991 को रामायण सत्संग भवन के संत राघवाचार्य को स्कूटर सवार लोगों ने गोली मारने के बाद चाकूओं से गोद कर उनकी हत्या कर दी थी। 09 दिसम्बर 1993 को रामायण सत्संग भवन के ही संत राघवाचार्य आश्रम के साथी रंगाचार्य की ज्वालापुर में हत्या कर दी गई। 1 फरवरी 2000 को सुखी नदी स्थित मोक्षधाम ट्रस्ट के सदस्य गिरीश चंद को एक जीप ने टक्कर मार दी थी जिसमें उनके साथी रमेश मारे गये। 5 अप्रैल 2001 को बाबा सुतेन्द्र बंगाली की हत्या की गई। 6 जून 2001 को हचमगादड़ टापू में बाबा विष्णुगिरि समेत चार साधुओं की हत्या की गयी। 26 जून 2001 को ही एक अन्य बाबा ब्रह्मानंद की हत्या हुई। पानप देव कुटिया के बाबा ब्रह्मदास को दिनदहाड़े गोली से उड़ा दिया गया। 17 अगस्त 2002 बाबा हरियानंद व उनके चेले की हत्या हुई। संत नरेन्द्र दास को भी मौत के घाट इसी वर्ष उतारा गया। 06 अगस्त 2003 को संगमपुरी कोठी नं. 14 में रहने वाले संत प्रेमानंद उर्फ भोले बाबा गायब हो गए। 07 सितंबर 2003 को उनकी हत्या का खुलासा हुआ जिसमें आरोपी गोपाल शर्मा पकड़ा गया। 28 दिसम्बर 2004 को संत योगानंद की हत्या के आरोपियों का आज तक पता नहीं चला। 15 मई 2006 को पीली कोठी के स्वामी अमृतानंद की हत्या के बाद 25 नवंबर को इंडिया टैम्पल के बाल स्वामी की गोली मारकर हत्या कर दी गयी जिसमें तीन हत्यारे गिरफ्तार किए गए। 08 फरवरी 2008 को निरंजनी अखाड़े के 7 साधुओं को दिया गया जहर। जिसमें कई संत नरेन्द्र गिरि के गुरु भाई थे। जिनमें से एक अम्बिका पुरी का हाल ही के दिनों में निधन हो गया। 14 अप्रैल 2012 निर्वाणी अखाड़े के महंत सुधीर गिरि की हत्या हुई। 26 जून 2012 लक्सर में हनुमान मंदिर में देर रात तीन संतों के ऊपर हमला कर तीनों को मौत के घाट उतार दिया गया। ये सभी मामले सम्पत्ति विवाद से जुड़े रहे। इसके साथ ही कनखल स्थित श्री पंचायती अखाड़ा उदासीन बड़ा के कोठरी महंत मोहन दास रेल में सफर करते हुए गायब हो गए, उनका भी आज तक कोई सुराग नहीं लग पाया।

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