गुटों में बंटे संत बने हुए कुछ लोगों के लिए दूध देने वाली गाय
हरिद्वार। पायलट बाबा आश्रम का विवाद दिन प्रतिदिन बढ़ता ही जा रहा है। जिसके चलते खूनी संघर्ष की संभावना से इंकार नहीं किाा जा सकता। आश्रमस्थ संतों पर कई बार हमला भी किया जा चुका है। बावजूद इसके पुलिस प्रशासन कोई संज्ञान लेने के लिए तैयार नहीं है। लगता है कि पुलिस प्रशासन किसी बड़ी घटना के होने के इंतजार में है।
विदित हो कि सोमनाथ गिरि ऊर्फ पायलट बाबा के ब्रह्मलीन होने के बाद से आश्रम की सम्पत्ति को लेकर आश्रम के संतों में विवाद जारी है। बाबा के आश्रम व कई सम्पत्तियों को बेचा जा चुका है। आश्रम में तीन गुट बताए जा रहे हैं। प्रत्येक गुट बाबा की सम्पत्ति और परम्पराओं को अक्षुण्ण बनाए रखने और संत की मर्यादा को कायम रखने के दावे करता हैं, किन्तु सम्पत्ति का मोह कोई भी नहीं छोड़ पा रहा है। इसके चलते सभी एक-दूसरे के दावे को गलत करार दे रहे हैं।
एक गुट के खिलाफ वारंट भी जारी हैं। बावजूद इसके उस गुट के लोग खुलेआम घूम रहे है। आश्रम जहां वेद ऋचाओं और धर्म ग्रथों की वाणी के स्वर गुंजायमान होने चाहिए थे, वहां कथित बदमाशों की चहलकदमी, बाउंसरों की संख्या और गाली-गलौच के सिवा और कुछ सुनायी नहीं देता। मंदिरों में ताले जड़ दिए जाते हैं। संतों को धमकाया जाता है और आश्रम में अराजकता का माहौल उत्पन्न किया हुआ है।
यहां लड़ाई आश्रम या बाबा की परम्पराओं को बचाने के लिए नहीं बल्कि सम्पत्ति को अपने कब्जे में लेकर ऐश करने की है। यदि ऐसा नहीं होता तो आश्रम के अस्पताल को बेचा नहीं जाता, दान में मिली मध्य प्रदेश की भूमि की बिक्री नहीं होती। नेपाल का आश्रम खुर्दबुर्द न किया जाता। एक रसोईया और ड्राईवर करोड़ों की सम्पत्ति के मालिक न बनते। आश्रम पर उनका वर्चस्व न होता।
कुल मिलाकर भगवा धारण करने के बाद लालच में फंसे लोग धर्म का उपदेश देते नहीं थकते। यदि ऐसा न होता तो विगत दिन आश्रम में रह रहे कर्ण गिरि के कमरे पर ताला न लगाया जाता। मंदिर में ताला न लगता। वहीं बीती रात्रि भी कर्णगिरि ने चाकू लेकर उनके कक्ष में एक संत के आने का और उनको धमकाने का आरोप लगाया है।
वैसे आश्रम के संतों की लड़ाई काफी रोचक हो चुकी है। सूत्र बताते हैं कि एक गुट अपने बचने के लिए धन को पानी की तरह बहा रहा है। एक संगठन के नेता ने आश्रम के लोगों को दूध देने वाली गाय के समान बनाया हुआ है। प्रत्येक माह मोटी रकम लेने का दावा किया गया है। वहीं कुछ कथित कलमकार भी इस गंगा में गोते लगा रहे हैं। जिनका पत्रकारिता ने कोई दूर-दूर तक का वास्ता नहीं है। बस पत्रकार बनकर धौंस जमाए हुए हैं।
अब देखना दिलचस्प होगा की पायलट बाबा आश्रम में स्वंय को सिद्ध और श्रेष्ठ साबित करने के लिए चली जा रही चालों में कौन बाजी मारता है और एक संगठन का एक पदाधिकारी कब तक बंदरों की लड़ाई में बिल्ली के मजे वाली कहावत को चरितार्थ करते हुए रकम वसूलता है।