हरिद्वार। 30 जुलाई को उत्तराखण्ड उच्च न्यायालय द्वारा हरिद्वार जनपद के 48 स्टोन क्रेशरों के संचालन पर रोक लगाने का ऐतिहासिक आदेश दिया गया था। इस आदेश के विरुद्ध 48 में से 33 स्टोन क्रेशर मालिकों ने अन्य कई क्रेशरों के साथ मिलकर, माननीय उच्चतम न्यायालय में विशेष अनुमति याचिका दाखिल की थी। इन स्टोन क्रेशर मालिकों ने अधिवक्ता डॉ. अभिषेक मनु सिंघवी के माध्यम से न्यायालय से राहत पाने की भरपूर कोशिश की।
मातृसदन के मुताबिक वहीं, उत्तराखण्ड सरकार का पक्ष देश के एक अन्य वरिष्ठ अधिवक्ता मुकुल रोहतगी ने रखा। परन्तु जब स्टोन क्रेशरों ने तरह-तरह की दलीलें देकर न्यायालय को प्रभावित करने का प्रयास किया, तो मातृसदन ने उन दलीलों का पुरजोर विरोध किया। मुख्य न्यायाधीश जस्टिस बीआर गवई तथा न्यायमूर्ति एन वी अंजारिया की पीठ ने सभी तथ्यों एवं तर्कों को सुनने के पश्चात् स्टोन क्रेशरों की याचिका को कोई महत्व न देते हुए, उनकी विशेष अनुमति याचिका खारिज कर दी। मातृसदन द्वारा उठाए गए बिंदु ही न्यायोचित और जनहितकारी साबित हुए। यह निर्णय न केवल मातृसदन की, बल्कि गंगा और पर्यावरण की रक्षा हेतु निरंतर तप, त्याग और संघर्ष कर रहे परमहंस संत, स्वामी शिवानंद महाराज की एक ऐतिहासिक विजय है।
मातृसदन के मुताबिक स्टोन क्रेशर माफिया और उनके संरक्षक वर्षों से न्यायालयों का दरवाजा खटखटाकर जनहित को कुचलने का प्रयास करते आए हैं, परन्तु हर बार सत्य और तप के बल पर मातृसदन विजयी हुआ है। यह ताजा निर्णय एक बार फिर सिद्ध करता है कि जब न्यायालय के समक्ष गंगा और उसकी अविरलता की बात आती है, तो सच्चाई की ही विजय होती है। मातृसदन का यह संघर्ष गंगा, पर्यावरण और भविष्य की पीढि़यों के लिए है दृ और आज का यह निर्णय सम्पूर्ण समाज के लिए प्रेरणास्रोत बनेगा।