गुरुवार से नया साल आरंभ होने वाला है। इस अवसर पर यदि मुझसे पूछा जाए कि मैं क्या संदेश देना चाहूँगा, तो मेरा कहना यह है— जिंदगी में नया साल उसी दिन आएगा, जिस दिन पुराने दिन की मौत होगी, जो अभी शरीर में अटका हुआ है।
जब तक यह नहीं होगा, तुम्हारी जिंदगी में कुछ नया नहीं होने वाला—यह ध्यान रखना। बाहर संसार के लिए, नया साल मनाना ठीक है, क्योंकि यह माया है और माया में तो यही सोच चलती है, जो जीवन के अंत में फिर जन्म-मरण के चक्रव्यू में लाती है। लेकिन अगर जीवन को सफल करना है तो तुम्हें यह जानना होगा कि मेरा नया साल, यानी मेरा नया जन्म, वास्तव में कब होगा। एक साल बीत गया—मैंने क्या पाया और क्या खोया? यहाँ बात बाहर की माया की नहीं है। माया में खोना और पाना तो होता ही रहता है।
चाहे कोई हजारों करोड़ का मालिक बन जाए, अंत में सब कुछ यहीं छूट जाना है। तो फिर सवाल यह है कि खोया क्या और पाया क्या? पाया यह कि मैंने जीवन के सार को समझा—मैं कौन हूँ। मैं इस मरे हुए शरीर के भीतर एक यात्री हूँ। जिस दिन यह समझ आ जाए, उस दिन तुम जाग जाओगे और पा लोगे जो मीरा बाई ने कहा — “पायो रे पायो मैंने राम रत्न धन पायो”, जैसा मीराबाई ने कहा। यह अमर धन है, जिसे तुम अपने साथ लेकर ही जाओगे। जिस दिन तुम जान लोगे कि मेरा कुछ भी नहीं है—“तन मन धन तुझको अर्पण, क्या लागे मेरा”—उस दिन सच्ची आरती हो जाएगी। उसी दिन तुम वह पा लोगे जिसे पाने के लिए जीवन मिला था — परमात्मा। इसलिए जागो। नया साल तुम्हारे जीवन में उसी दिन आएगा, जिस दिन तुम्हारे भीतर ज्योत, यानी अंतरात्मा, प्रकट हो जाएगी और यह मरा हुआ शरीर दूसरे नंबर पर चला जाएगा।
उस दिन तुम्हारे जीवन में हर पल आनंद होगा। 31 दिसंबर वास्तव में आकलन का दिन है—यह देखने का दिन कि एक साल में क्या खोया और क्या पाया, इसका स्वयं आकलन करो।। जीवन के सत्य को जानो और उसे भीतर धारण करो। सुना है न—धारणा, ध्यान और समाधि। ये तीन सूत्र हैं, जिन्हें ब्रह्मज्ञान प्राप्त करने वालों ने बताया है। धारणा यानी दृढ़ निश्चय कि मुझे अपना मनुष्य जन्म सफल करना है ।ध्यान कोई साधारण, आँख बंद करके बैठने वाला अभ्यास नहीं है, क्योंकि मन तो बुलेट की तरह दौड़ता है। सच्चा ध्यान है—गुरु के वचनों पर ध्यान। चाहे भगवद्गीता हो, गुरु ग्रंथ साहिब हो, बाइबिल, कुरान, धम्मपद या उपनिषद—सबमें ज्ञान की ही बात कही गई है। श्रीकृष्ण ने अर्जुन को ज्ञान दिया, कहीं यह नहीं कहा कि केवल ध्यान लगाओ।
गुरु नानक देव जी ने भी अंगद को ज्ञान दिया, केवल ध्यान लगाने को नहीं कहा। यह सब तब संभव होता है, जब मन में धारणा आती है—दृढ़ निश्चय। फिर समाधि अपने आप घटित होती है। यानी जिंदगी का समाधान हो जाता है। तब समझ में आ जाता है कि जीवन क्या है—मैं इस शरीर में एक भूमिका निभाने आया हूँ, एक अभिनेता की तरह। समाधि का अर्थ है अपने घर लौटना—गॉडहोम लौटना। इसलिए आज के दिन अपने भीतर यह संकल्प धारण करो कि मुझे मंज़िल को पाना है। जीवन के सत्य को जानोगे, तो जीवन अपने आप आनंदमय हो जाएगा, क्योंकि आनंद तुम्हारा जन्मसिद्ध अधिकार है। जीवन को व्यर्थ मत करो।
मैं यह नहीं कहता कि कर्म मत करो, बच्चों से प्रेम मत करो, घूमो मत या खाओ मत। कुछ भी छोड़ने की बात नहीं है। केवल भीतर से माया की पकड़ छोड़नी है। बाहर से सब मौज करो, क्योंकि सब तुम्हारे लिए ही बना है। लेकिन भीतर से मत पकड़ो। भीतर से पकड़ना है तो सत्य को पकड़ो, माया को नहीं। तब तुम्हारे जीवन में प्राप्ति होती जाएगी, तुम्हारा जन्म सफल होगा और तुम स्वयं आनंदित रहोगे। तब तुम संसार से भी कभी-कभी कह सकोगे— “नया साल मुबारक हो।”
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