अपनों के खिलाफ ही लामबंद होने लगे नागा साधु
हरिद्वार। तीर्थनगरी में संतों की राजनीति इन दिनों चरम पर है। कहीं अखाड़ा परिषद के दो फाड़ होने को लेकर संत आपस में उलझे हुए हैं तो नरेन्द्र गिरि मौत मामले ने भी संतों की छिछालेदार करवायी है। वहीं अखाड़ों की भूमि पर बने अपार्टमेंट में स्टाम्प ड्यूटी चोरी के मामले में भी संतों की फजीहत हुई है। समाज में संतों की हो रही छिछालेदार को रोकने के लिए अब एक अखाड़े के नागा साधु कुछ बड़ा करने की रणनीति पर अमल कर रहे हैं।
सूत्र बताते हैंं कि एक सन्यासी अखाड़े के साधु कुछ अन्य संतों के द्वारा अपने ही समाज के विरोध में आवाज उठाने के कारण जोश में आ चुके हैं। सूत्र बताते हैं कि दीपावली के पश्चात एक अखाड़े के नागा साधु हरिद्वार में बड़ी संख्या में एकत्र होंगे। यहां वे अखाड़े के पदाधिकारियों से अखाड़ों के असली मालिक नागा साधुओं की बेची गयी जमीनों और अखाड़ों में प्राप्त आय का हिसाब-किताब लेंगे। सूत्र बताते हैं कि नागा साधुओं को कहना है कि अखाड़ों की जमीनें बिकती जा रही हैं। जो भी पदाधिकारी बनता है वह जमीनों को बेचने में लग जाता है। जमीन से प्राप्त आय का पूरा हिसाब नहीं दिया जाता। 10 रुपये आने पर दो रुपये ही अखाड़े में जमा कराए जाते हैं। उनका कहना है कि अखाड़ांे के असली मालिक अखाड़ों के संविधान के मुताबिक नागा साधु हैं। पदाधिकारी केवल अखाड़ों की व्यवस्था के संचालन के लिए होते हैं। ऐसे में अब अखाड़ों की व्यवस्था सुधारने के साथ हिसाब लेना जरूरी हो गया है। कारण की अखाड़ों की सम्पत्ति जो राजा-महाराजाओं ने संतों को दान में दी थी, घटती जा रही हैं और आय भी कम होती जा रही है। जबकि अखाड़े के पदाधिकारी बनने वाले मलायी चाटने में लगे हैं। सूत्रों के मुताबिक नागा साधुओं को जोड़ने के लिए सम्पर्क अभियान शुरू हो चुका है। संभवतया नवम्बर के दूसरे सप्ताह के बाद नागा साधु धावा बोल सकते हैं।

अखाड़े के नागा साधु कुछ बड़ा करने की तैयारी में!


