हरिद्वार। दशनामी संन्यास परम्परा को जीवंत रखने वाली अखाड़ों की मढ़ियांें के अस्तित्व पर भी अब संकट के बादल छाने शुरू हो गए हैं। अब मढ़ियों की भी वसीयत की नई परमपरा का सूत्रपात हो चुका है, जिस कारण से आने वाले समय में मढ़ियां समाप्त हो जाएंगी और समाप्त हो जाएगी एक प्राचीन परम्परा।
बता दें कि अखाड़ों में मढ़ियों का अपना विशेष महत्व है। मढ़ी के मुखिया के ब्रह्मलीन होने पर उसी मढ़ी के प्रमुख संत को या दावे के मुताबिक मढ़ी की कमान सौंपी जाती है। यह परम्परा अखाड़ोें में सदियों संे चली आ रही है। मढ़ी का संचालन पंचायती होता है।
एक अखाड़े के संत ने नाम न छापने की शर्त पर बताया कि विगत दिनों मढ़ी रिद्धनाथी गादी के महंत ब्रह्मलीन को गए थे। आज उनका हरिद्वार के अखाड़े में भण्डारे का आयोजन था। जिसमें उनकी मढ़ी के किसी सत-महंत को मढ़ी का महंत न बनाकर यह कह दिया गया कि महंत वसीयत कर गए हैं। इस कारण से दूसरी मढ़ी के संत को मढ़ी की कमान सौंप दी।
वहीं इस नई परम्परा से नाराज होकर ब्रह्मलीन महंत को श्रद्धांजलि देने उनके भण्डारे में आए उनकी मढ़ी के संत नाराज होकर बिना भोजन किए चले गए।
संतों का कहना था कि गुरु-शिष्य परम्परा में मढ़ी की वसीयत का खेल पहली बार देखने को मिला है। यदि मढ़ी की वसीयत का नया अध्याय अब शुरू ही हो गया है, तो आने वाले समय में मढ़ियों में संतों के स्थान पर गृहस्थों के बच्चे खेलते नजर आएंगे और समाप्त हो जाएगी हमारे पूर्वजों द्वारा बनायी गई परम्परा। जिसकी पहल आज हो चुकी है। उन्होंने बताया कि इतिहास में ऐसा पहली बार देखने को मिला है की किसी मढ़ी का महंत वसीयत के आधार पर नियुक्त किया गया हो।


